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साइकिल की तेज रफ्तार से मुरझाया कमल

छह चरणों के चुनाव में अब तक जो चुनावी रुझान सामने आ रहे हैं उससे भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश में सत्ता पाना टेढ़ी खीर साबित होता नजर आ रहा है। इसके चलते ही भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व यूपी में डेरा डाले हुए है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह सहित मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री सभी पार्टी को सम्मानजनक स्थिति में लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। प्रदेश में भाजपा के सामने एंटी इन्कम्बेंसी के साथ ही आवारा पशुओं का मुद्दा भी बड़ा मुद्दा बनकर सामने आ रहा है। आवारा पशु जिस तरह से किसानों के लिए आफत बन चुके हैं, उससे ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय खेती तबाह हो रही है। जिसके लिए किसान वर्ग भाजपा सरकार को मुख्य दोषी मानता है। इसका नतीजा भी भाजपा को चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। हालांकि भाजपा को भरोसा है कि लाभार्थी वोटर उसकी नैय्या पार लगा ही देगा

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे आखिरी चरण की ओर बढ़ रहा है, राजनीतिक समीकरण भी शेयर बाजार की तरह उठते-गिरते नजर आ रहे हैं। सभी राजनीतिक दल अपनी पार्टी के जीतने का दावा कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ मतदाता भी राजनीतिक दलों से चार कदम आगे दिखाई दे रहा है। साइलेंट वोटरों की तादाद बढ़ने से स्थिति स्पष्ट नजर नहीं आ रही है। सबकी नजर फिलहाल उत्तर प्रदेश में ‘एमवाई’ फैक्टर पर है। समाजवादी पार्टी जहां मुस्लिम और यादव के सहारे तो भाजपा मोदी और योगी के सहारे जीत का दावा कर रही हैं।

छह चरणों के चुनाव में अब तक जो चुनावी रुझान सामने आ रहे हैं उससे भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश में सत्ता पाना टेढ़ी खीर साबित होता दिखाई देने लगा है। इसके चलते ही भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व यूपी में डेरा डाले हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह सहित मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री सभी पार्टी को सम्मानजनक स्थिति में लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। प्रदेश में भाजपा के सामने एंटी इन्कम्बेंसी के साथ ही आवारा पशुओं का मुद्दा भी बड़ा मुद्दा बनकर सामने आ रहा है। आवारा पशु जिस तरह से किसानों के लिए आफत बन चुके हैं, फसलें बर्बाद कर रहे हैं उससे ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय खेती तबाह हो रही है। जिसके लिए किसान वर्ग भाजपा सरकार को मुख्य दोषी मानता है। इसका नतीजा भी भाजपा को चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। हालांकि भाजपा को भरोसा है कि लाभार्थी वोटर उसकी नैय्या पार लगा ही देगा।

अब तक छह चरणों में 349 विधानसभा सीटों के चुनाव हो गए हैं। बचे एक चरण में 54 विधानसभा चुनाव होने अभी बाकी हैं। सात मार्च के दिन अंतिम सातवें चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में मतदाताओं का रुख अभी सामने आना बाकी है। ऐसे में अभी से कयास लगने शुरू हो गए हैं कि क्या भाजपा एक बार फिर उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होगी या समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की ताजपोशी होगी। भाजपा के लिए मिशन 2022 का सपना कितना कठिन हो गया है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सूबे में लगातार तीन दिन तक डेरा डाले रहते हैं। वह विधानसभा चुनाव में भीड़ भी इकट्ठी नहीं कर पा रहे हैं। कई जगह तो प्रधानमंत्री की रैलियां फीकी नजर आ रही हैं। जबकि दूसरी तरफ मुख्यमंत्री योगी को बेरोजगारों के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है। कई रैलियों में छात्र योगी से नौकरी देने की गुहार लगाते नजर आए। इस दौरान मुख्यमंत्री योगी छात्रों से अपने आप को बचाते हुए तेज-तेज कदमों से निकलते बचते निकल गए।

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव की तरह इस बार उत्तर प्रदेश में त्रिकोणीय मुकाबला होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है। पिछले चुनाव में भाजपा और सपा के साथ ही बसपा मुख्य मुकाबले में शामिल थी। लेकिन इस बार बसपा मुख्य मुकाबले में शामिल नहीं है। वह पिछड़ती हुई नजर आ रही है। जिस तरह से बसपा के पक्ष में भाजपा नेताओं के बयान आ रहे हैं और बसपा सुप्रीमो मायावती का रुझान भाजपा की तरफ दिख रहा है उससे पार्टी का वोट बैंक रहा मुस्लिम और दलित मतदाता इस बार बसपा की बजाय सपा की ओर जाता हुआ दिखाई दिया है। पिछली बार यह मतदाता भाजपा के साथ था। फिलहाल, उत्तर प्रदेश की राजनीति जातिगत आंकड़ों में उलझी हुई प्रतीत हो रही है। यहां ओबीसी फैक्टर सबसे मजबूत दिखाई दे रहा है। ओबीसी के अधिकतर नेता पिछले दिनों भाजपा छोड़कर समाजवादी पार्टी में जा चुके हैं। चुनावी रुझान से सामने आ रहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट या गुर्जर मतदाता हो या मुस्लिम या यादव सभी इस बार एकजुट होकर सपा के लिए वोट डाल रहा है। उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण मतदाताओं की बात करें तो वह भाजपा और सपा दोनों की तरफ जाता दिखाई दे रहा है। हालांकि जिस तरह से विकास दुबे मुठभेड़ कांड योगी कार्यकाल में ब्राह्मण मतदाताओं की नाराजगी की वजह बना था उससे यह भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता कि ब्राह्मण भाजपा की तरफ जा रहा है।

इस बार कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी के तेवर और गुस्सा भाषणों में दिख रहा है। जिससे कांग्रेस में बदलाव की धार दिखाई दे रही है। प्रियंका गांधी मतदाताओं के बीच लोकप्रिय जरूर है लेकिन वह उनका वोट खींचने में सक्षम दिखाई नहीं दे रही हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश के लोगों को प्रियंका गांधी में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का अक्स जरूर दिखाई दे रहा है। शायद यही वजह है कि जब समाजवादी पार्टी की रैली निकल रही होती है तो उनके अधिकतर कार्यकर्ता प्रियंका गांधी का अभिवादन स्वीकार करते नजर आते हैं। उत्तर प्रदेश में चुनावी समय में दिखाई पड़ रहा है कि अगर कोई उदासीन कार्यकर्ता है तो वह भाजपा का है, जबकि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है।
भाजपा को इस चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान यह रहा है कि यहां हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण नहीं हो पाया। यही नहीं बल्कि जिस अयोध्या में जोश-खरोश के साथ राम मंदिर निर्माण का श्रीगणेश किया गया वहां भी भाजपा मजबूत नहीं दिखाई दे रही है। शायद यही वजह है कि शुरुआत में मुख्यमंत्री योगी जहां अयोध्या से चुनाव लड़ना चाहते थे वह बाद में गोरखपुर शिफ्ट हो गए।

हालांकि यहां यह भी बताना जरूरी है कि पिछले 5 साल में मुख्यमंत्री योगी अयोध्या में 72 बार आए। अयोध्या में अगर राम मंदिर का निर्माण हो रहा है तो वहां का राजनीतिक ताना-बाना भी मंदिरों के इर्द-गिर्द ही सिमटा रहता आया है। बताया जाता है कि अयोध्या में 15000 से अधिक छोटे-बड़े मंदिर हैं जहां राम जानकी की कथा लगातार चलती रहती है। अयोध्या की धार्मिक नगरी में रोजी-रोटी का जरिया धर्म ही है। लेकिन यहां का ब्राह्मण भाजपा से नाराज बताया जा रहा है। कारण यह है कि अयोध्या के विस्तारीकरण और सुधारी करण के नाम पर छोटे-बड़े मंदिरों और घरों को तोड़ा गया। हालांकि इस एवज में लोगों को उनके घर तोड़ने का मुआवजा दिया गया। शुरू में कहा गया कि घरों का मुआवजा अधिक मिल रहा था जिससे लोग अपना पक्का घर तोड़ रहे थे। लेकिन जमीनी हकीकत में यह कहीं दिखाई नहीं दिया। लोगों को इस बात का दर्द है कि उनकी रोजी-रोटी पर प्रशासन का हथौड़ा चला।

इलाहाबाद में भाजपा के लिए पुलिस की लाठियां सिर दर्द बनकर सामने आई। पिछले महीने छात्रों पर पुलिस ने जमकर लाठियां भांजी थी जसमें दर्जनों छात्र घायल हो गए थे। यही नहीं बल्कि जिस तरह पुलिस ने छात्रों को बेरोजगारी का आंदोलन करने पर हॉस्टलों से खींच-खींच कर जेलों में डाला उससे युवा वर्ग में भाजपा के प्रति खासा असंतोष पैदा हुआ। जो इस चुनाव में भाजपा का माइनस प्वाइंट बन गया। जातीय समीकरण को देखें तो भाजपा को इसमें लाभ नजर नहीं आ रहा है। इसके चलते ही भाजपा का वोट बैंक भी बिखरता हुआ प्रतीत हो रहा है। उत्तर प्रदेश में 40 फीसदी ओबीसी वोट है जिसमें 10 फीसदी यादव, 10 अन्य ओबीसी जातियां और 20 फीसदी मौर्या, शाक्य, लोधी, काछी, कुशवाहा जैसी जातियां शामिल हैं। 21 प्रतिशत सामान्य वर्ग के वोट हैं। जिनमें 10 से 11 ब्राह्मण, चार फीसदी ठाकुर, चार फीसदी वैश्य एवं दो फीसदी अन्य सवर्ण जातियां हैं। इसके अलावा 20 प्रतिशत दलित हैं, जिसमें 11 फीसदी जाटव और 9 फीसदी अन्य हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में करीब 19 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं।

उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझने वाले बताते हैं कि सूबे की सत्ता के लिए अवध को जीतना भी जरूरी होता है। क्योंकि राजधानी लखनऊ इसी क्षेत्र में आता है। यहां चौथे चरण में चुनाव हो चुके हैं। अवध क्षेत्र में भाजपा 2017 के विधानसभा चुनाव में मजबूत रही है। वर्ष 2017 में 82 सीटों में से 67 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। तब इस क्षेत्र में दूसरे स्थान पर सपा तो तीसरे स्थान पर बसपा रही है। लेकिन इस बार जो रुझान रहे हैं उनसे सपा पहले नंबर पर दिखाई दे रहे है, जबकि दूसरे नंबर पर भाजपा और बसपा तीसरे नंबर पर है। पूर्वांचल की बात करें तो पूर्वांचल को उत्तर प्रदेश की सत्ता का प्रवेश द्वार माना जाता है। पूर्वांचल में बढ़त बनाने के बाद ही यूपी की सत्ता पर कोई पार्टी काबिज हो सकती है। सूबे की करीब 30 प्रतिशत यानी 156 सीटें यहीं से आती हैं। भाजपा यहां 2014 के लोकसभा चुनाव के साथ ही 2019 के लोकसभा चुनाव और उससे पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में मजबूती से आगे बढ़ी है।

इसी चलते भाजपा ने पूर्वांचल में पूरी ताकत झोंक दी है। पूर्वांचल को तरजीह देने के चलते ही केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार मे यहां से 2 चेहरों अनुप्रिया पटेल और पंकज चौधरी को जगह दी गई थी, जबकि पूर्वी यूपी से महेंद्रनाथ पाण्डेय, स्मृति ईरानी और राजनाथ सिंह केंद्र सरकार में पहले से मंत्री हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पूर्वांचल के गोरखपुर से ही आते हैं और पीएम मोदी भी पूर्वांचल के वाराणसी से सांसद हैं। पूर्वांचल में विधानसभा की 156 सीटें हैं। अगर 2017 के विधान सभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो भाजपा ने यहां 106 सीटों पर कब्जा जमाया था, सपा को 18, बसपा को 12, अपना दल को 8, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 4, कांग्रेस को 4 और निषाद पार्टी को 1 सीट पर जीत मिली थी। इसके अलावा यहां से 3 निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी।

अब तक के छह चरणों में सबसे ज्यादा साइलेंट वोटर ने राजनीतिक दलों को सांसत में रखा है। साइलेंट वोटर उसे बताया जा रहा है जो निचले तबके का है। यह मतदाता अपने मन की बात स्पष्ट नहीं कर पाता है। अधिकतर वह दबंग जातियों के सामने उनके जैसी वोट देने की बात कहकर मामले को घुमा देता है। बताया जा रहा है कि भाजपा की खाद्यान नीति और ई श्रमिक योजना के चलते इस तबके के लोगों को यह यकीन है कि भाजपा उन्हें पिछले 2 सालों की भांति राशन भी देती रहेगी और हजार रुपए महीने ई श्रमिक स्कीम के तहत भी देगी। इससे इस तबके के लोगों का रुझान भाजपा की तरफ बताया जा रहा है। हालांकि प्रदेश में ऐसे तबके में ज्यादातर दलित समुदाय आता है। भाजपा इस लाभार्थी कहे जा रहे वोट बैंक पर सबसे अधिक भरोसा कर रही है। 10 मार्च को नतीजों के बाद ही तय हो पाएगा कि इस लाभार्थी वोट बैंक का कितना लाभ भाजपा को मिला। हाल-फिलहाल तो उत्तर प्रदेश में चौतरफा चर्चा समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने की ही हो रही है।

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