कॉमन सिविल कोड भाजपा के लिए हमेशा से राजनीतिक मुद्दा रहा है। पिछले दिनों विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता को लागू करने की सिफारिश की थी और इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बयान देकर इस मुद्दे को फिर से गरमा दिया है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि भाजपा की यह कवायद हिंदुत्व के एजेंडे को धार देना है
साल के अंत में होने वाले कई राज्यों और अगले साल लोकसभा के चुनाव से ठीक पहले एक ओर जहां नीतीश कुमार के नेतृत्व में विपक्षी एकता का जुटान जारी है वहीं दूसरी तरफ केंद्र की भाजपा सरकार अपने अहम मुद्दों और वायदों में से एक मुद्दे को फिर गरमाने की कवायद में जुट गई है। पिछले दिनों विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता को लागू करने की सिफारिश की थी। इसके बाद गत सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता पर बयान देकर चुनावी एजेंडा सेट करने की कोशिश की है। भोपाल में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा है कि दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा।
पीएम मोदी ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि समान नागरिक संहिता पर मुसलमानों को उकसाया जा रहा है। इसके साथ ही बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दलों की बैठक को उन्होंने फोटो खिंचवाने का अवसर करार दिया। पीएम मोदी ने कहा बीजेपी सरकार ‘तुष्टिकरण’ की बजाय ‘संतुष्टिकरण’ की राह पर चलेगी। एक घर में परिवार के एक सदस्य के लिए एक कानून हो, दूसरे के लिए दूसरा, तो क्या वह परिवार चल पाएगा। फिर ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? हमें याद रखना है कि भारत के संविधान में भी नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है। उन्होंने पसमांदा मुसलमानों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े मुसलमानों के साथ भी बराबर व्यवहार नहीं किया जाता है। जबकि सरकार ने बिना किसी भेदभाव के वंचित पसमांदा मुस्लिमों के लिए काम किया है। तीन तलाक का समर्थन करने वाले लोग सिर्फ वोट बैंक के भूखे हैं जो मुस्लिम बेटियों के साथ अन्याय कर रहे हैं।
ध्रुवीकरण हो सकता है, जो विपक्षी एकता पर भी भारी पड़ेगा। खासतौर पर हिंदी पट्टी के राज्यों में इसका गहरा असर दिख सकता है। इसलिए भाजपा चुनाव से ठीक पहले समान नागरिक संहिता के मसले पर जोर दे रही है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि भाजपा की यह कवायद चुनावों से पहले हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने की कोशिश है। यही नहीं जनवरी 2024 में राम मंदिर के लोकार्पण की भी तैयारी है। यह एक भव्य आयोजन होगा और कई दिनों तक कुछ कार्यक्रम भी चलाने की योजना है। उत्तराखण्ड और गुजरात जैसे भाजपा शासित राज्यों में तो समान नागरिक संहिता को लेकर पैनल भी बनाए गए हैं।
आर्टिकल 370 को 2019 में हटा दिया गया और अदालत के फैसले से राम मंदिर निर्माण भी हो रहा है। ऐसे में इन दोनों मुद्दों को भाजपा अपनी कामयाबी के तौर पर प्रचारित करना चाहती है। अब तीसरा और आखिरी मुद्दा समान नागरिक संहिता का बचता है, जिस पर भाजपा आगे बढ़ना चाहती है। असल में यह मसला विपक्षी एकता की स्थिति में भाजपा को फायदे का लग रहा है।
आजादी है। समान नागरिक कानून के मुताबिक पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिए विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक होंगे। संविधान के अनुच्छेद 44 में भारत में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून का प्रावधान लागू करने की बात कही गई है। अनुच्छेद-44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है। इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है।
ऐसा नहीं है कि कॉमन सिविल कोड यानी समान नागरिक कानून की बात आजादी के बाद की अवधारणा है। इतिहास में खंगालने पर इसका जिक्र वर्ष 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में मिलता है। जिसमें कहा गया है कि अपराधों, सबूतों और कॉन्ट्रेक्ट जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है। इसके साथ ही इस रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई है। लेकिन साल 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव की समिति भी बनाई गई। इसी समिति की सिफारिश पर साल 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के उत्तराधिकार मामलों को सुलझाने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम विधेयक को अपनाया गया। लेकिन मुस्लिम, ईसाई और पारसी लोगों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानून थे।

अभी क्या है यूसीसी की स्थिति भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882, भागीदारी अधिनियम, 1932, साक्ष्य अधिनियम, 1872 जैसे मामलो में सभी नागरिकों के लिए एक समान नियम लागू हैं। लेकिन धार्मिक मामलों में सबके लिए अलग-अलग कानून लागू हैं और इनमें बहुत विविधता भी हैं। देश में सिर्फ गोवा एक ऐसा राज्य जहां पर समान नागरिक कानून लागू है।
भारतीय समाज ही नहीं, घर-घर में भी अलग-अलग रीति- रिवाज हैं। देश में हिंदुओं की आबादी सबसे ज्यादा है। लेकिन हर राज्य में अलग धार्मिक मान्यताएं और रिवाज हैं। उत्तर भारत के हिंदुओं के रीति-रिवाज दक्षिण भारत के हिंदुओं से बहुत अलग हैं। संविधान में नागालैंड, मेघालय और मिजोरम के स्थानीय रीति -रिवाजों को मान्यता और सुरक्षा की बात है। इसी तरह मुसलमानों के पर्सनल लॉ बोर्ड के भी समुदाय के लिए अलग-अलग नियम हैं। ईसाइयों के भी अपने अलग धार्मिक कानून हैं। इसके अलावा किसी समुदाय में पुरुषों को कई शादी करने की इजाजत है। किसी जगह पर विवाहित महिलाओं को पिता की संपत्ति में हिस्सा न देने का नियम है। समान नागरिक कानून लागू होने के बाद ये सभी नियम खत्म हो जाएंगे। ऐसे में इस कानून को लागू करना कई चुनौतियों को न्योता देने जैसा है।
1. साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में अलग-अलग पर्सनल लॉ की वजह से ऊहापोह या भ्रम के हालात बने रहते हैं। सरकार अगर चाहे तो एक कानून बनाकर ऐसी परिस्थितियां खत्म कर सकती है। क्या सरकार ऐसा करेगी? अगर आप ऐसा करना चाहते हैं तो आपको यह कर देना चाहिए।
2. साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में अब तक समान नागरिक कानून लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। जबकि संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 44 में नीति निदेशक तत्व के तहत उम्मीद जताई थी कि भविष्य में ऐसा किया जाएगा।