एक देश एक चुनाव की दिशा में सरकार ने पहला कदम उठा दिया है। सरकार ने इसकी संभावनाओं पर विचार के लिए एक कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी का अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बनाया गया है। हालांकि सरकार के लिए भी इस फैसले को लागू करना और इस संबंध में कानून बनाना आसान नहीं होगा। दरअसल एक साथ चुनाव कराने के लिए कई विधानसभाओं के कार्यकाल में कटौती करनी पड़ेगी। जिसका विरोध होना तय है। लेकिन मोदी सरकार ने जी-20 सम्मेलन के तुरंत बाद संसद का विशेष सत्र बुलाकर एक बार फिर विपक्षी खेमे में ही नहीं, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी है।
इस सत्र को लेकर बड़े-बड़े कयास लगाए जा रहे हैं।
राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा है कि एक देश एक चुनाव, समान नागरिक संहिता मुद्दा बन सकते हैं तो संसद भी भंग हो सकती है। महिला आरक्षण बिल पेश हो सकता है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों ने इन सभी संभावनाओं से नकार दिया है। उनका कहना है कि जहां तक एक देश एक चुनाव का सवाल है, इसके लिए पीपुल्स रिप्रजेंटेशन एक्ट-1951 में संशोधन करना पड़ेगा। इस संशोधन के लिए जहां संसद में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होगी। वहीं उससे पहले देश के 50 फीसदी राज्यों से भी इस प्रस्ताव को पास कराना पड़ेगा। इसलिए जो मोदी सरकार की कार्यशैली समझते हैं, वो जानते हैं कि आने वाले चुनावों के पहले मोदी सरकार ऐसा जोखिम नहीं उठाएगी। वहीं कुछ राजनीति के जानकारों का मानना है कि एक देश, एक चुनाव अगर देश में लागू हो जाता है तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान क्षेत्रीय दलों को होगा। लोकसभा चुनाव में आमतौर पर मतदाता राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर और राष्ट्रीय पार्टी को वोट देना पसंद करते हैं। ऐसे में अगर लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव होंगे तो हो सकता है कि क्षेत्रीय दलों को इसका नुकसान झेलना पड़े।
दरअसल जिस समय विपक्ष मुंबई में इंडिया गठबंधन की बैठक कर 2024 के लोकसभा चुनाव में केंद्र सरकार को घेरने की योजना बना रहा था, उसी बीच अचानक यह खबर आई कि सरकार संसद का विशेष सत्र बुलाने जा रही है। 18 से 22 सितंबर के पांच दिवसीय विशेष सत्र में क्या होगा, इस पर कयासबाजी जारी है। इस विशेष सत्र को बुलाने के पीछे सरकार की मंशा को लेकर भी तमाम तरह के प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं। विपक्ष ने अभी से इसे बौखलाहट में उठाया हुआ कदम करार दे दिया है।
इस तरह के कई मुद्दे हैं जो सरकार की प्राथमिकता में रहे हैं, लेकिन अलग-अलग कारणों से उन पर अमल नहीं हो पाया है। जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समान नागरिक संहिता लाने की बात करते रहे हैं, लेकिन अभी तक इसे नहीं लाया जा सका है। इस पर लोगों की राय ली जा रही है। उत्तराखण्ड में इसका ड्राफ्ट भी तैयार कर लिया गया है, लेकिन अभी तक इसे लागू करने पर स्थिति स्पष्ट नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार एक देश, एक चुनाव कराने की बात कहते रहे हैं। उनका कहना रहा है कि बार-बार चुनाव कराने से देश पर अनावश्यक खर्च बढ़ता है और सरकारों पर दबाव रहता है। यदि पांच साल में एक ही बार चुनाव हों तो सरकारें इस दबाव से मुक्त होकर जनहित के निर्णय ले सकेंगी।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा बड़े निर्णय लेने के लिए इसी तरह की पहल करते हुए देखे गए हैं। नोटबंदी का निर्णय हो या पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक करने का, सरकार ने इसी तरह के निर्णय लिए हैं जिससे लोगों को अचंभा हुआ। इस बार भी केंद्र सरकार कोई बड़ा निर्णय लेने जा रही है, यह विशेष सत्र के बुलाने से स्पष्ट हो गया है।