धरती पर बढ़ते तापमान के मद्देनजर शोधकर्ताओं ने एक नए खतरे के प्रति आगाह किया है। उनका कहना है कि तापमान बढ़ने से जंगली पशु-पक्षी अपना प्राकृतिक आवास बदलने को मजबूर होंगे और वे इंसानी आबादी वाले क्षेत्रों में आ जाएंगे। इससे उन पशु-पक्षियों से वायरस के जंप कर इंसानों में पहुंचने का खतरा नाटकीय ढंग से बढ़ जाएगा और वह स्थिति अगली महामारी का एक बड़ा कारक हो सकता है।
नेचर जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन रोगों के उभरने के लिए सबसे बड़ा अपस्ट्रीम जोखिम कारक बन जाएगा। इसके साथ ही वनों की कटाई से भी औद्योगिक और कृषि संकट पैदा होगा। अध्ययन के प्रमुख लेखक जार्जटाउन यूनिवर्सिटी के कोलिन कार्लसन ने कहा कि इसका एक जोखिम वन्य जीवों के कारोबार के जोखिम के रूप में भी दिखाई देता है।
उन्होंने बताया कि हम बाजार को लेकर भी चिंतित हैं, क्योंकि इस स्थिति में अप्राकृतिक माहौल वाले पशु-पक्षी वहां लाए जाएंगे, जिससे सार्स के फैलने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यह माना जा रहा है कि कोरोना महामारी फैलाने वाला सार्स सीओवी-19 चमगादड़ से कस्तूरी बिलाव (सीविट) में और फिर इंसानों में चरणबद्ध तरीके से पहुंचा। लेकिन इसके लिए सिर्फ बाजार ही मुफीद नहीं हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के कारण यह प्रक्रिया प्रकृति में कहीं भी हो सकती है।
इस अध्ययन में शोध टीम ने पहले व्यापक आकलन में इस बात का पता लगाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण किस प्रकार से वैश्विक स्तर पर स्तनधारी प्राणियों में विरोम (वायरसों के जुटान) में बदलाव आता है। इस क्रम में प्राणियों के भौगोलिक क्षेत्रों से स्थानांतरण और नए आवास स्थलों को लेकर अध्ययन किया गया। उन्होंने पाया कि जिन क्षेत्रों में नए स्तनधारी प्राणी देखे गए, वे अन्य प्राणियों के साथ हजारों वायरसों को साझा कर रहे थे।
यह भी पढ़ें : तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका से थर्राई दुनिया
शोध टीम का कहना है कि इस प्रकार के शिफ्ट से इबोला या कोरोना वायरस जैसे रोगवाहकों को नए क्षेत्र में फैलने के मुफीद अवसर प्रदान करते हैं। इसे ट्रैक करना भी मुश्किल होता है और इस तरह वायरस नए प्राणियों तक पहुंच जाते हैं और अंतत: चरणबद्ध तरीके से इंसानों को भी संक्रमित कर देते हैं।
शोधकर्ताओं का मानना है कि गैर-आनुपातिक रूप से बदल रहे जीवों के प्राकृतिक निवास चिंता के विषय बने हुए हैं। इससे जोखिम बढ़ने के नए हाटस्पाट भी उबर रहे हैं। इस प्रक्रिया को दुनियाभर में बढ़ते तापमान, जो फिलहाल 1.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है, तेज करने में मददगार साबित हो रहा है। इसके साथ ही ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की रोकथाम भी पर्याप्त रूप से कारगर होती प्रतीत नहीं हो रही है।
एक खास निष्कर्ष यह भी सामने आया कि तापमान में वृद्धि से चमगादड़ बहुत ज्यादा प्रभावित होता है, जो अधिकांश नए वायरस के फैलाव में अहम भूमिका निभाता है। उड़ान भरने की क्षमता के कारण वह लंबी दूरी आसानी से तय कर लेता है और वायरस का प्रसार कर देता है।