कर्नाटक में मुस्लिम छात्राओं द्वारा शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने को लेकर शुरू हुआ विवाद अब सियासी रंग लेता जा रहा है। कुछ संविधान विशेषज्ञ मानते हैं कि हिजाब पर प्रतिबंध लगाना संविधान प्रदत्त निजता के अधिकार का उल्लंघन है तो कई अन्य 2018 में शिक्षण संस्थानों द्वारा तय किए गए ड्रेस कोड को लेकर केरल हाईकोर्ट के एक मसौदे का हवाला देते हुए इसे निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं मानते। मामला अब कर्नाटक हाईकोर्ट के हवाले है। इस बीच इसे मुद्दा बनाने का प्रयास कर धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति तेज हो चली है
हिजाब को लेकर कर्नाटक से उठी चिंगारी अब आग में तब्दील होने लगी है। बात शुरू हुई थी हिजाब से और पहुंच गई भगवा दुशालों पर, श्री राम के नारों तक। चुनावी माहौल में ये मुद्दा राजनीतिक पार्टियों के लिए तो बिन मांगे अमृत बन गया है। राजनीतिक दलों के नेता इस पर अलग-अलग बयान दे रहे हैं तो वहीं सड़कों पर हिजाब में लड़कियां अपना हक मांग रही है। कॉलेज में धर्म ने एंट्री की तो बात नारों और हिजाब तक कैसे रहती इस वर्चस्व की लड़ाई में कॉलेज परिसर में तिरंगे को हटाकर भगवा ध्वज भी फहरा दिया गया। राजनीतिक विश्लेषक इस विवाद को पांच राज्यों में चल रहे चुनाव से जोड़ कर देख रहे हैं।
कहां से शुरू हुआ विवाद
हिजाब विवाद की शुरुआत हुई देश की राजधानी नई दिल्ली से लगभग 2 हजार किलोमीटर दूर कर्नाटक के उडुपी जिले से। अक्टूबर 2021 में सरकारी पीयू कॉलेज की कुछ छात्राओं ने हिजाब पहनने की मांग शुरू कर दी। इसके बाद 31 दिसंबर को छह छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण कॉलेज में जाने से रोक दिया गया। छात्राओं ने कॉलेज के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया। कॉलेज प्रशासन ने 19 जनवरी 2022 को छात्राओं, उनके माता-पिता और अधिकारियों के साथ बैठक की थी। लेकिन इस बैठक का कोई परिणाम नहीं निकला था। इसके बाद 26 जनवरी को एक बार फिर बैठक की। उडुपी के विधायक रघुपति भट ने कहा कि जो छात्राएं बिना हिजाब के स्कूल नहीं आ सकती हैं वो ऑनलाइन पढ़ाई करें। तीन फरवरी को पीयू कॉलेज में हिजाब पहनकर आने वाली छात्राओं को फिर से रोका गया। इसके बाद पांच फरवरी को कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी हिजाब पहनकर स्कूल आने वाली मुस्लिम छात्राओं के समर्थन में आए। छात्राओं ने कर्नाटक हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पांच फरवरी को यूनिफॉर्म का आदेश जारी हुआ
पांच फरवरी को राज्य सरकार ने कर्नाटक शिक्षा अधिनियम 1983 की धारा 133 (2) लागू कर दी। इसके अनुसार सभी छात्र-छात्राओं के लिए कॉलेज में तय यूनिफॉर्म पहनना अनिवार्य कर दिया गया। यह आदेश सरकारी और निजी, दोनों कॉलेजों पर लागू किया गया। कई राजनीतिक दलों ने राज्य सरकार के इस फैसले की आलोचना भी की।
आठ फरवरी को विवाद ने ले लिया हिंसक रूप
आठ फरवरी को विवाद ने हिंसक रूप ले लिया। कर्नाटक में कई जगहों पर झड़पें हुईं। कई जगहों से पथराव की खबरें भी सामने आईं। शिवमोगा का एक वीडियो सामने आया जिसमें एक कॉलेज छात्र तिरंगे के पोल पर भगवा झंडा लगा रहा था। मांड्या में बुर्का पहने हुई एक लड़की के साथ अभद्रता की गई। फिलहाल यह मामला हाईकोर्ट में है।
हिजाब बनाम भगवा शाल
उडुपी जिले के एमजीएम कॉलेज में हिजाब और भगवा की लड़ाई शुरू हो गई। कुछ हिजाब पहने छात्राएं कॉलेज में पहले आईं। दूसरा पक्ष भगवा पगड़ी और शाल डालकर कॉलेज आया।
हाईकोर्ट की बड़ी बेंच के पास भेजा गया मामला
हाईकोर्ट में गुरुवार (10 फरवरी) को जस्टिस कृष्णा दीक्षित की एकल पीठ ने मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया। इससे पहले 8 फरवरी को हाईकोर्ट ने पहली सुनवाई की। सीएम
बसवराज बोम्मई ने राज्य में सभी हाईस्कूलों और कॉलेजों को तीन दिनों के लिए बंद करने का आदेश जारी किया था। उन्होंने छात्रों और स्कूल-कॉलेज प्रबंधन से शांति बनाए रखने की अपील की थी।
हिजाब विवाद पर तुरंत सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इंकार
हिजाब विवाद का मामला 11 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा, जहां शीर्ष अदालत ने इस मामले में तुरंत सुनवाई से इंकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई ‘उचित समय’ पर की जाएगी।
हिजाब को लेकर प्रदेश सरकार का क्या मत है?
इस मामले के तूल पकड़ने के बाद सीएम बसावराज बोम्मई और माध्यमिक शिक्षा मंत्री बीवी नागेश ने एडवोकेट जनरल के साथ बैठक की। इसके बाद मंत्री बीवी नागेश ने कहा कि मामला पहले ही हाईकोर्ट के समक्ष है और सरकार फैसले का इंतजार कर रही है। तब तक सभी स्कूल और कॉलेजों को अपना यूनिफॉर्म कोड फॉलो करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कर्नाटक एजुकेशन ऐक्ट के तहत सभी शैक्षिक संस्थानों को अपना यूनिफॉर्म तय करने का अधिकार दिया गया है। शर्त बस इतनी है कि यूनिफॉर्म कोड की घोषणा सत्र शुरू होने से काफी पहले करनी होगी और उसमें पांच साल तक बदलाव नहीं होना चाहिए।
उडुपी जूनियर कॉलेज प्रशासन ने क्या कहा?
जहां से इस विवाद की शुरुआत हुई, वहां के प्रिंसिपल रुद्र गौड़ा ने स्थानीय मीडिया को बताया कि लड़कियां परिसर में हिजाब पहन सकती हैं। लेकिन कक्षाओं में नहीं। प्रिंसिपल गौड़ा ने कथित तौर पर दावा किया है कि छात्र पहले भी कक्षाओं में प्रवेश करने के बाद हिजाब और बुर्का हटाती रही हैं। इस मामले में स्थानीय विधायक और कॉलेज विकास समिति के अध्यक्ष रघुपति भट्ट ने कहा कि जो लड़कियां कॉलेज के बाहर बैठ कर हिजाब के लिए प्रोटेस्ट कर रही हैं वो कॉलेज छोड़कर जा सकती हैं। उन्हें किसी ऐसे कॉलेज में दाखिल ले लेना चाहिए जहां यूनिफॉर्म के साथ हिजाब पहनने की इजाजत हो। हमारे नियम स्पष्ट हैं कि उन्हें हिजाब पहनकर क्लास में बैठने की अनुमति नहीं मिलेगी।
हिजाब के पक्ष में छात्राओं का क्या तर्क है?
उडुपी कॉलेज में हिजाब के पक्ष में प्रदर्शन कर रहीं छात्राओं का कहना है कि उन्होंने बीते साल दिसंबर में ही हिजाब पहनना शुरू किया था। कॉलेज ज्वाइन करते वक्त उन्हें लगा था कि उनके अभिभावकों ने हिजाब न पहनने को लेकर कोई फॉर्म साइन किया है, इस वजह से वो हिजाब नहीं पहनती थीं। हालांकि, जो फॉर्म इन छात्राओं के पेरेंट्स ने साइन किया था उसमें हिजाब का कोई जिक्र नहीं था। छात्राओं का ये भी कहना है कि कॉलेज में बीते साल हिंदू त्योहार मनाए गए थे। हिंदू लड़कियों को बिंदी लगाने से नहीं रोका जाता है, तो फिर मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने से क्यों रोका जा रहा है? छात्राओं का कहना है कि दो महीने में उनकी परीक्षाएं शुरू हो जाएंगी, उन्हें उसकी भी तैयारियां करनी हैं। लेकिन फिलहाल तो उन्हें पढ़ने से ही रोका जा रहा है।
हिजाब विवाद नया नहीं
कर्नाटक में हिजाब पहनने को लेकर विवाद नया नहीं है। रिपोर्ट्स के मुताबिक 2009 में बंटवाल के एसवीएस कॉलेज में ऐसा मामला सामने आया था। उसके बाद 2016 में बेल्लारे के डॉ . शिवराम करांत सरकारी कॉलेज में भी हिजाब को लेकर विवाद हुआ था। 2018 में भी सेंट एग्नेस कॉलेज में बवाल हुआ था। उडुपी जैसा विवाद बेल्लारे में भी हुआ था। उस समय कई छात्रों ने हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर भगवा गमछा पहनकर प्रदर्शन किया था।
क्या कहता देश का संविधान?
संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक में धर्म की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को लेकर जिक्र किया गया है। अनुच्छेद 25(1) किसी भी धर्म को मानने, उसका अभ्यास करने और प्रचार करने का हक देता है। अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता पर दो तरह के अधिकार देता है। पहला अधिकार अंतः करण की स्वतंत्रता को लेकर है। दूसरा अधिकार धर्म को निर्बाध तरीके से मानने और उसका प्रचार करने को लेकर है। हालांकि, सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए इसमें राज्य को अंकुश लगाने की भी शक्तियां दी गई हैं।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट ने यह निर्देश दिया है कि जबतक कोई फैसला नहीं आ जाता तब तक विद्यार्थी स्कूल-कॉलेज में धार्मिक पहचान वाले ड्रेस न पहनें। परीक्षा निकट है इसलिए शिक्षा संस्थान खोले जाने चाहिए। छात्रों को जिद नहीं करनी चाहिए। विवाद को सामान्य जीवन को प्रभावित नहीं करने देना चाहिए। तीन दिन शिक्षण संस्थानों को बंद करने के बाद उनके आस-पास 200 मीटर के दायरे में इकट्ठा होने पर दो हफ्ते तक पाबंदी लगाई गई है। बात दूर चलते हुए उच्चतम न्यायालय भी पहुंच गई पर न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय को सुनवाई करने दें। उच्च न्यायालय में 15 फरवरी को हुई सुनवाई में कोई फैसला नहीं हो सकता जिसके चलते सुनवाई को 16 फरवरी के लिए स्थगित कर दिया गया है।
इस विवाद ने अनावश्यक तनाव और नफरत का माहौल खड़ा किया जिसे तूल भी दिया जा रहा है। इस बीच पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा के चुनाव में भी इसकी छाया पड़ने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। स्कूल की कार्यवाही के खिलाफ जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और मौलिक अधिकारों के हनन का प्रश्न उठाया जा रहा है।
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