[gtranslate]
Country

खतरे में चौथा स्तंभ!

देश की वर्तमान सरकार पर लगातार आरोप लगता रहता है कि वह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर लगाम कसने का प्रयास कर रही है। विपक्षी दलों का मानना है कि केंद्र सरकार औद्योगिक घरानों की मदद से स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति पर नकेल डालने में जुटी हुई है। इसका ताजा उदाहरण तब देखने को मिला जब केरल के मलयालम समाचार चैनल ‘मीडिया वन’ के प्रसारण पर सुरक्षा के आधार पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने ‘मीडिया वन’ पर केंद्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को खारिज कर दिया है। एक तरफ जहां उच्चतम न्यायालय मीडिया की स्वतंत्रता से जुड़े मामले में अपना महत्वपूर्ण फैसला सुना रही थी तो दूसरी ओर केंद्र सरकार सोशल मीडिया के पर कतरने के लिए कानून ले आई

मीडिया की आजादी को लेकर इन दिनों काफी घमासान मचा हुआ है। देश की वर्तमान सरकार पर लगातार आरोप लगता रहता है कि वह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर लगाम कसने का प्रयास कर रही है। विपक्षी दलों का मानना है कि केंद्र सरकार औद्योगिक घरानों की मदद से स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति पर नकेल डालने में जुटी हुई है। इसका ताजा उदाहरण तब देखने को मिला जब केरल के मलयालम समाचार चैनल ‘मीडिया वन’ के प्रसारण पर सुरक्षा आधार पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने ‘मीडिया वन’ पर केंद्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को को खारिज कर दिया और बिना तथ्यों के ‘हवा में राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी मामले उठाने को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय पर नाराजगी जताई।

कोर्ट ने कहा कि सरकार लोगों को उनके अधिकारों से वंचित रखने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का सहारा ले रही है। यह कानून के राज के मुताबिक नहीं है। राष्ट्रीय सुरक्षा के दावे बिना पुख्ता सबूत के नहीं हो सकते हैं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने ‘मीडिया वन’ के प्रसारण पर सुरक्षा आधार पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखने संबंधी केरल हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।
पीठ ने कहा कि सरकार प्रेस पर अनुचित प्रतिबंध नहीं लगा सकती, क्योंकि इसका प्रेस की आजादी पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। सरकार की नीतियों के खिलाफ ‘मीडिया वन’ चैनल के आलोचनात्मक विचारों को सत्ता-विरोधी नहीं कहा जा सकता क्योंकि मजबूत लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र प्रेस आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के दावे हवा में नहीं किए जा सकते। प्रेस का कर्तव्य है कि वह सत्ता से सच बोले और नागरिकों के समक्ष उन कठोर तथ्यों को पेश करे, जिनकी मदद से वे लोकतंत्र को सही दिशा में ले जाने वाले विकल्प चुन सकें।

साकेंतिक तस्वीर : मीडिया पर प्रतिबंध

सामाजिक, आर्थिक, राजनीति से लेकर राजनीतिक विचारधाराओं तक के मुद्दों पर एक जैसे विचार लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकते हैं। न्यायालय ने कहा कि किसी चैनल के लाइसेंस का नवीनीकरण न करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध है। चैनल के शेयरधारकों का जमात-ए-इस्लामी हिंद से कथित संबंध चैनल के अधिकारों को प्रतिबंधित करने का वैध आधार नहीं है। सरकार कानून के तहत नागरिकों के लिए किए गए प्रावधानों से उन्हें वंचित करने के वास्ते राष्ट्रीय सुरक्षा का इस्तेमाल कर रही है। ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के दावे हवा में नहीं किए जा सकते। इन्हें साबित करने के लिए ठोस तथ्य होने चाहिए।’
जस्टिस हिमा कोहली भी इस पीठ में शामिल थीं। पीठ ने कहा कि सुरक्षा कारणों से मंजूरी नहीं देने के कारण का खुलासा नहीं करने और केवल अदालत को सीलबंद लिफाफे में जानकारी देने से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है। अदालतों को गोपनीयता के दावों का आकलन करने और तर्कपूर्ण आदेश देने में अदालत की मदद करने के लिए न्यायमित्र नियुक्त करना चाहिए।

एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया की स्वतंत्रता से जुड़े अपना महत्वपूर्ण फैसला सुना रही थी तो दूसरी तरफ केंद्र सरकार सोशल मीडिया के पर कतरने के लिए कानून ले आई है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और इंटरनेट पर अन्य वेबसाइट्स को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे आर्टिकल्स या कोई अन्य सामग्री, जिन्हें पीआईबी यानी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो की ओर से ‘फेक न्यूज’ घोषित किया गया हो, तत्काल प्रभाव से हटा लिए जाएं। ऐसी पोस्ट के लिए पीआईबी की ओर से संबंधित प्लेटफॉर्म्स को अलर्ट किया जाएगा। आईटी मंत्रालय ने बीते 6 अप्रैल को नए नियमों को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) फेसबुक, ट्वीटर, गूगल को केंद्र सरकार के खिलाफ चल रहीं झूठी, गलत या भ्रामक खबरों का फैक्ट चेक करके उन्हें हटाने के लिए बोल सकता है। ऐसा नहीं करने पर उन्हें नियमों के तहत कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।

‘सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023’ के जरिए आईटी नियम, 2021 में यह बदलाव किया गया है। मंत्रालय की ओर से इन परिवर्तनों को अधिसूचित भी कर दिया गया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक पीआईबी की फैक्ट चेक टीम संबंधित सरकारी विभागों से संपर्क करेगी, ताकि उनका विचार प्राप्त किया जा सके कि समाचार फेक है या नहीं, और तदनुसार आगे का निर्णय लेगी। अगर कंपनियां ‘पीआईबी फैक्ट चेक टीम’ के आदेश का पालन करने से इनकार करती हैं तो वे अपनी ‘सेफ हार्बर इम्यूनिटी’ खो देंगी, जो उन्हें अपने प्लेटफॉर्म पर यूजर्स द्वारा पोस्ट की गई किसी भी फ्रॉड या झूठे कॉन्टेंट के खिलाफ सुरक्षा की गारंटी देता है।

आईटी एंड इलेक्ट्रॉनिक्स राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने इस बारे में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस कदम के पीछे का मकसद मीडिया को सेंसर करना नहीं है, बल्कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर किसी भी नकली या गुमराह करने वाली जानकारी के प्रसार को रोकना है। केंद्रीय मंत्री के मुताबिक पीआईबी में फिलहाल कोई फैक्ट चेकिंग यूनिट नहीं है और नए नियमों के अनुसार इसे बनाने की जरूरत होगी। राजीव चंद्रशेखर के मुताबिक पीआईबी फैक्ट चेक यूनिट की जवाबदेही भी तय की जाएगी और इसके कामकाज की प्रक्रिया तैयार होगी। गलत सूचना से निपटने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से यह एक स्पष्ट और ईमानदार प्रयास है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा ‘मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि यह पहले से कुछ ज्यादा अलग नहीं होगा, जहां पीआईबी फैक्ट चेक यूनिट सरकारी विभाग प्रकार का संगठन होगा। हम निश्चित रूप से एक विश्वसनीय तरीके से तथ्यों की जांच करना चाहते हैं। यह न केवल सरकार के लिए बल्कि उस इंटरमीडियरी के लिए भी फायदेमंद है, जो उस विशेष फैक्ट चेक पर निर्भर होने वाला है। दूसरी तरफ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा फैक्ट चेक यूनिट बनाए जाने को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सूचना प्रसारण (आईटी) मंत्रालय के इस फैसले पर चिंता जाहिर की है और कहा है कि इससे मीडिया पर सेंसरशिप को बढ़ावा मिलेगा। एडिटर्स गिल्ड ने केंद्र से कहा है कि सरकार नए आईटी नियमों को वापस ले।

दरअसल, नए नियमों के मुताबिक आईटी मंत्रालय एक फैक्ट चेक यूनिट बनाएगी। यह यूनिट तय करेगी कि कौन-सी खबर फर्जी, झूठी या भ्रामक है। यदि केंद्र सरकार से संबंधित किसी ख़बर को यह यूनिट गलत या भ्रामक बताती है तो मीडिया संस्थाओं को उसे हटाना पड़ेगा। इन नए कानून पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि ‘वह एक सेल्फ-अपाइंटेड फैक्ट चेकिंग यूनिट के जरिए सोशल मीडिया पर कानून लादने के लिए सरकार के कदमों से बहुत परेशान है। यह सब प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है और सेंसरशिप के समान है। मंत्रालय की इस तरह के कठोर नियमों वाली अधिसूचना खेदजनक है। गिल्ड फिर से मंत्रालय से इस अधिसूचना को वापस लेने और मीडिया संगठनों और प्रेस निकायों के साथ परामर्श करने का आग्रह करता है।’

You may also like

MERA DDDD DDD DD