[gtranslate]
Country

पक्ष-विपक्ष की अग्नि परीक्षा!

कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीख का एलान हो चुका है। दक्षिण भारत में बीजेपी के सामने अपने इकलौते गढ़ की सत्ता को बचाए रखने की चुनौती है तो कांग्रेस के लिए वापसी की। वहीं जेडीएस कुमारस्वामी के दम पर किंगमेकर बनने का ख्वाब देख रही है। ऐसे में राज्य की सत्ताधारी भाजपा के लिए यह चुनाव एक ओर जहां 2024 के आम चुनाव के लिहाज से किसी अग्नि-परीक्षा से कम नहीं है, दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी का ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद यह पहला ही चुनाव है, जिसमें बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस के प्रदर्शन पर सबकी नजरें टिकी हैं। विपक्षी खेमे में कांग्रेस की स्थिति भी कमोबेश इस प्रदर्शन पर निर्भर करेगी

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान हो चुका है। राज्य में 10 मई को मतदान होना है एवं 13 मई को इसके नतीजे आएंगे। राज्य में 224 सदस्यीय विधानसभा है। कर्नाटक में इस वक्त भाजपा की सरकार है। चुनाव आयोग के अनुसार, इस चुनाव में कुल पांच करोड़ 21 लाख 73 हजार 579 मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। इनमें 2.59 करोड़ महिला, जबकि 2.62 करोड़ पुरुष मतदाता हैं। राज्य में कुल 9.17 लाख मतदाता ऐसे होंगे, जो पहली बार वोट डालेंगे। इनकी उम्र 18 से 19 साल के बीच है। चुनावी रणभेरी बजने के साथ ही सियासी पार्टियों ने कमर कसना शुरू कर दिया है। भाजपा नेता और राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने एक बार फिर से दक्षिण राज्य की सत्ता में वापसी के लिए ताल ठोंक दी है तो वहीं कांग्रेस भी कर्नाटक की राजनीति का किंग बनने के लिए बेकरार है। लेकिन पार्टी अब तक अपने मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा नहीं कर पाई है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अगर कांग्रेस कर्नाटक की सत्ता में वापसी करती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा? कांग्रेस के मुख्यमंत्री चेहरे के लिए पूर्व सीएम सिद्धारमैया और प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार में लड़ाई पिछले काफी समय से देखी जा रही है। दोनों ही नेताओं के अपने गुट बने हुए हैं जो समय-समय में अपने नेता को सीएम चेहरा बनाने की मांग करते आये हैं। हालांकि कभी भी खुलकर सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार ने खुद को सीएम का चेहरा नहीं बताया है। हाल ही में जब डीके शिवकुमार से पूछा गया था कि क्या वे कर्नाटक कांग्रेस के सीएम फेस हैं? इस पर डीके शिवकुमार ने आलाकमान के कंधो पर भार डाल दिया। डीके शिवकुमार ने कहा कि राज्य के सीएम चेहरा कौन होगा इसका फैसला कांग्रेस अध्यक्ष करेंगे। आलाकमान के फैसले से ही मुख्यमंत्री चेहरे का एलान होगा।

 

वीएस येदियुरप्पा और सीएम बसावराज बोम्बई

गौरतलब है कि कर्नाटक दक्षिण का ऐसा पहला राज्य है, जहां 2008 में सरकार बनाकर बीजेपी ने अपने ऊपर लगे ‘नॉर्थ इंडियन पार्टी’ का ठप्पा हटाया था। इस बीच पार्टी पूर्वोत्तर राज्यों में भी कामयाबी के झंडे गाड़ चुकी है, लेकिन दक्षिण में आज भी कर्नाटक इकलौता राज्य है, जहां चुनाव हारते-जीतते हुए भी वह अपनी अच्छी खासी पैठ का दावा कर सकती है। इस बार वह सरकार में जरूर है, लेकिन चुनावों के लिहाज से उसके सामने चुनौतियां कम नहीं हैं। पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के रूप में उसके पास लिंगायत समुदाय का सबसे बड़ा नेता उपलब्ध है, लेकिन यह देखना बाकी है कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाकर इसी समुदाय के बीआर बोम्मई को सीएम बनाने के फैसले से उपजे द्वंद्व को पार्टी कैसे हल करती है। इस बीच ऐसे संकेत भी मिले हैं कि इस समुदाय का एक हिस्सा इन दोनों ही नेताओं से नाराज है। कुछ दिनों पहले इन दोनों नेताओं के घरों का घेराव होना इसी नाराजगी का सबूत माना गया था। लेकिन चुनाव से पहले ऐसी नाराजगी का उभरना और फिर दूर होना कोई बड़ी बात नहीं है। सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि पार्टी नेतृत्व इसे कितनी कुशलता से निपटाता है। कांग्रेस की जहां तक बात है, राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद यह पहला ही चुनाव है, जिसमें बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस के प्रदर्शन पर सबकी नजरें टिकी होंगी। विपक्षी खेमे में कांग्रेस की स्थिति भी कमोबेश इस प्रदर्शन पर निर्भर करेगी।  राजनीतिक जानकार कहते हैं कि राज्य में मुकाबला त्रिकोणीय ही होगा क्योंकि जेडीएस भी एक प्रमुख पार्टी के रूप में मैदान में है।

लिंगायत बनाम वोक्कालिंगा
लिंगायत और वोक्कालिंग कर्नाटक में आर्थिक और राजनीतिक रूप से दो प्रमुख समुदाय हैं। राज्य में लिंगायतों की आबादी अधिक है, इसके बाद वोक्कालिंगा है। पुराना मैसूर या दक्षिणी कर्नाटक वोक्कालिंगा का आधार है। वे ज्यादातर दक्षिणी क्षेत्र के किसान वर्ग से हैं। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री (कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री भी) और जनता दल (सेक्युलर) के नेता एचडी देवेगौड़ा इसी समुदाय और इसी क्षेत्र से आते हैं।
वोक्कालिंगा समुदाय मजबूती से जद (एस) का समर्थन करता रहा है। इस समुदाय के पास लंबे समय से उनका एक लोकप्रिय नेता है और चुनावी नतीजे स्पष्ट रूप से इस क्षेत्र में जेडीएस के मजबूत आधार का संकेत देते हैं। यह एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां जेडीएस को पिछले कई चुनावों में 30 प्रतिशत अधिक वोट मिले हैं और उसने महत्वपूर्ण संख्या में सीटें जीतीं। 2018 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस को दक्षिणी कर्नाटक में 38 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि राज्य में कुल वोट शेयर 18 प्रतिशत था।

बीजेपी को डीके की चुनौती
बीजेपी के लिए चुनौतियां और भी हैं। कांग्रेस के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष डी. के. शिवकुमार इसी क्षेत्र से हैं और वोक्कालिंगा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। दक्षिणी कर्नाटक में शानदार प्रदर्शन के लिए बीजेपी को वोक्कालिंगा समुदाय का पक्ष लेना होगा। कांग्रेस और जेडीएस के विपरीत बीजेपी के पास इस क्षेत्र में कोई बड़ा नेता नहीं है। शायद यही बड़ा कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में बेंगलुरु-मैसूरु राजमार्ग का उद्घाटन किया, ताकि पार्टी राज्य में बुनियादी ढांचे के विकास के माध्यम से वोटरों को आकर्षित कर सके। बीजेपी का यह दांव कितना काम आता है यह देखने के लिए 13 मई का इंतजार करना होगा।

आरक्षण के सहारे भाजपा
भाजपा लिंगायत और अगड़ों के इतर वोक्कालिंगा और दलितों में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में है। पार्टी ने जीत हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और आरक्षण को हथियार बनाया है। वोक्कालिंगा और दलितों को साधने के लिए पार्टी ने इनके आरक्षण की सीमा बढ़ाई है, जबकि मोदी-येदियुरप्पा को पोस्टर ब्वॉय के रूप में इस्तेमाल कर रही है। पार्टी ने रणनीति बनाने की जिम्मेदारी अमित शाह को दी है।

कांग्रेस नेता सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार

राहुल-डीके-सिद्धारमैया से कांग्रेस को आस
भाजपा की तर्ज पर कांग्रेस ने भी इस बार नई रणनीति बनाई है। उसकी कोशिश दलित-ओबीसी-मुस्लिम मतदाताओं को साधे रखने के साथ डीके शिवकुमार के जरिये वोक्कालिंगा समुदाय में मजबूत पैठ बनाने की है। पार्टी भाजपा पर लगातार भ्रष्टाचार का आरोप लगा रही है। पार्टी को लगता है कि उसे राहुल मामले में भी लाभ मिलेगा, इसलिए पार्टी की रणनीति उनकी अधिक से अधिक जनसभा कराने की है।

किसकी कितनी हिस्सेदारी
राज्य के मतदाताओं में लिंगायत की 14 फीसदी, वोक्कालिंगा 11 फीसदी, दलित 19.5, ओबीसी 20, मुस्लिम 16, अगड़े 5, इसाई, बौद्ध और जैन की सात फीसदी भागदारी है। इनमें लिंगायत, अगड़ों, बौद्ध-जैन में भाजपा का प्रभाव ज्यादा है। ओबीसी, दलित और मुस्लिम में कांग्रेस का प्रभाव माना जाता है, जबकि वोक्कालिंगा समुदाय में जदएस की पकड़ मानी जाती है। हालांकि बीते चुनाव में भाजपा और कांग्रेस वोक्कालिंगा समुदाय में सेंध लगाने में कामयाब हुई थी। चुनाव में जीत के लिए
राजनीतिक दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी है। सियासी उफान के बीच, कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो पूरे चुनाव पर हावी हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कर्नाटक का चुनाव भी इन्हीं मुद्दों के इर्द-गिर्द होगा। विपक्ष हो या सत्ता पक्ष हर कोई इन मुद्दों को जोर-शोर से उठा रहा है।

मुस्लिम और दलित आरक्षण
कर्नाटक में इस वक्त आरक्षण के दो मुद्दे काफी गर्म हैं। इसमें पहला मुस्लिम आरक्षण है। बीते 27 मार्च को ही कर्नाटक की भाजपा सरकार ने मुस्लिमों को मिलने वाला 4 फीसदी आरक्षण खत्म कर दिया। सूबे में करीब 13 प्रतिशत मुस्लिमों की आबादी है। यही कारण है कि भाजपा सरकार के इस फैसले के खिलाफ सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस-जेडीयू दोनों ही एलान कर चुके हैं कि सूबे में उनकी सरकार बनती है तो वह इस आरक्षण को फिर से लागू करेंगे। आरक्षण का दूसरा मुद्दा बंजारा समुदाय से जुड़ा है। इसी महीने कर्नाटक सरकार ने मुस्लिम समुदाय को मिलने वाले चार प्रतिशत आरक्षण को दो प्रमुख समुदायों, वीरशैव-लिंगायत और वोक्कालिंगा में बांटा। पहले वोक्कालिंगा समुदाय को चार फीसद आरक्षण मिलता था, इसे बढ़ाकर छह प्रतिशत कर दिया गया है। पंचमसालियों, वीरशैवों के साथ अन्य लिंगायत कैटेगरी के लिए अब सात प्रतिशत आरक्षण होगा। पहले यह पांच प्रतिशत था। राज्य का बंजारा समुदाय इसका विरोध कर रहा है। फैसला आते ही भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा के घर और दफ्तर पर इस समुदाय के लोगों ने पथराव किया।

टीपू सुल्तान पर सियासत
कर्नाटक में टीपू सुल्तान को लेकर सियासत हमेशा से गर्म रही है। चुनाव से पहले फिर यही हुआ। यह विवाद 2015 से जारी है, जब तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती मनाने का एलान किया था। उस दौरान भाजपा ने इसका विरोध किया था। अब भाजपा ने दावा किया है कि टीपू सुल्तान को वोक्कालिंगा समुदाय के लोगों ने मारा था। टीपू सुल्तान स्वतंत्रता सेनानी नहीं था। वोक्कालिंगा समुदाय के करीब 14 प्रतिशत वोट हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि टीपू सुल्तान का मुद्दा उठाकर भाजपा बढ़त बनाने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस और जेडीएस अभी भी टीपू सुल्तान की जयंती मनाती है, जबकि भाजपा ने 2019 में सरकार बनने के बाद फैसला लिया कि टीपू सुल्तान की जयंती नहीं मनाई जाएगी।

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा को घेरने की कोशिश
कांग्रेस-जेडीएस समेत अन्य विपक्षी दलों ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा को घेरने की कोशिश की है। राहुल गांधी ने एक रैली के दौरान आरोप लगाया था कि कर्नाटक में 40 फीसदी कमीशन लेकर काम होता है। हाल ही में एक भाजपा विधायक के बेटे को विजिलेंस ने घूस लेते हुए पकड़ा था। इसके बाद विधायक को भी गिरफ्तार किया जा चुका है। कांग्रेस और विपक्ष के अन्य दल इस मुद्दे को खूब उठा रहे हैं। आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ा है और बिना घूस के यहां कोई काम नहीं होता है।

 

You may also like

MERA DDDD DDD DD
bacan4d toto
bacan4d
bacan4d toto
bacan4d toto
slot gacor
toto slot
Toto Slot
slot gacor
situs slot gacor
Bacan4d Login
bacan4drtp
situs bacan4d
Bacan4d
slot dana
slot bacan4d
bacan4d togel
bacan4d game
bacan4d login
bacan4d login
bacantoto 4d
slot gacor
slot toto
bacan4d
bacansport
bacansport
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
slot77 gacor
JAVHD
Bacan4d Login
Bacan4d toto
Bacan4d
Bacansports
bacansports
Slot Dana
situs toto
bacansports
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
bacan4d
slot gacor
bacan4d
bacan4d
bacansport
bacansport
gacor slot
slot gacor777
slot gacor bacan4d
toto gacor
bacan4d
toto slot
bacansports login
Slot Gacor
slot gacor
toto qris
toto togel
slot dana
toto gacor
slot gacor
slot777
slot dana
slot gacor
bacansports
bacansport
slot gacor
100 pasaran slot
bacansport
bacansport
bawan4d
bacansports
bacansport
slot gacor
bacan4d slot toto casino slot slot gacor