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‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का दौर और तेरह लाख बेटियां हुईं लापता

  •                    वृंदा यादव

 

‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते तत्र रमयन्ते देवताः’ वाले देश में 13 लाख महिलाओं और बच्चियों का गायब होना केंद्र और राज्य सरकारों की इस मुद्दे पर संवेदनशीलता का सच सामने ला देता है। संसद में पेश किए गए केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक तीन साल भीतर ही 13 लाख से अधिक लड़कियां व महिलाएं लापता हो गईं। आंकड़ों के अनुसार इन तीन वर्षों में 18 साल से ऊपर की 10 लाख 61 हजार 648 महिलाएं और उससे कम उम्र की 2 लाख 51 हजार 430 लड़कियां लापता हुई हैं। ये महिलाएं कहां गायब हो गई किस हालत में हैं इस बात की पूरी जानकारी किसी को भी नहीं है। मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि इनमें से अधिकतर महिलाओं का तस्करी व देह व्यापार आदि के व्यवसाय के लिए प्रयोग किया जा रहा है

सोलह दिसंबर 2012, ये तारीख अगर कोई भूलना भी चाहे इस दिन घटित हुआ निर्भया कांड इसे भूलने नहीं देता। एक महिला जिसका पहले सामूहिक बलात्कार किया गया फिर निर्मम हालत में उसे मरने के लिए छोड़ दिया गया। इस घटना ने हर इंसान को झकझोड़ कर रख दिया था। जिसे देखते हुए महिला सुरक्षा को लेकर कई सख्त नियम बनाए गए व कई पुराने नियमों में संशोधन भी किया गया था। लेकिन क्या इन कानूनों से महिला सुरक्षा के स्तर में सुधार आया है? अगर इस बात पर गौर करें तो शायद नहीं। क्योंकि महिलाओं के साथ किए जाने वाले अपराधों की बात करें तो देखा गया है कि, भारत जहां महिलाओं को देवी का दर्जा प्राप्त है, वही महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़न व अपराधों का केंद्र बना गया है। आंकड़े भी यही दर्शाते हैं कि देश में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के मामले कम होने का नाम नहीं ले रहें हैं। आये दिन महिलाओं के साथ होने वाले यौन शोषण, घरेलू हिंसा और अपहरण आदि के मामले सामने आते रहते हैं। जिसे खत्म करने का प्रयास केंद्र और राज्य सरकारें लगातार कर रही हैं। लेकिन अब तक इसमें सफलता हासिल नहीं हुई है। हाल ही में संसद में पेश किए गए केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 से 2021 के बीच यानी केवल तीन साल के भीतर 13 लाख से अधिक लड़कियां व महिलाएं लापता हो गई। आंकड़ों के अनुसार इन तीन वर्षों में 18 साल से ऊपर की 10 लाख 61 हजार 648 महिलाएं और उससे कम उम्र की 2 लाख 51 हजार 430 लड़कियां लापता हुई हैं। ये महिलाएं कहां गायब हो गई किस हालत में हैं इस बात की पूरी जानकारी किसी को भी नहीं है। मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि इनमें से अधिकतर महिलाओं का तस्करी व देह व्यापार आदि के व्यवसाय के लिए प्रयोग किया जा रहा है।

  • इन राज्यों से हो रही सबसे अधिक महिलाएं गायब

केंद्र सरकार ने ये आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के आधार पर प्रस्तुत किए हैं। जिसके अनुसार मध्य प्रदेश महिलाओं की गुमशुदगी के मामले में पहले स्थान पर है, जहां साल 2019 से 2021 के बीच 1 लाख 60 हजार 180 महिलाएं और 38 हजार 234 लड़कियां लापता हो गईं। इसके बाद दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल है जहां इन तीन सालों में 1 लाख 56 हजार 905 महिलाएं और 36 हजार 606 लड़कियां लापता हुई। तीसरे स्थान पर महाराष्ट्र है जहां 1 लाख 78 हजार 400 महिलाएं और 13 हजार 33 लड़कियां लापता हो गई हैं। इसके अलावा केंद्र शासित प्रदेशों में राजधानी दिल्ली इस लिस्ट में सबसे ऊपर है। यहां साल 2019 से 2021 के बीच 61 हजार 54 महिलाएं और 22 हजार 919 लड़कियां लापता हुई। साथ ही आंकड़ों में इस बात की जानकारी भी दी गई है कि लापता होने वाली अधिकतर महिलाओं की आर्थिक स्थिति खराब थी, घरेलू हिंसा का शिकार थी या उनका अपहरण कर लिया गया। हालांकि इसमें से कई महिलाओं को वक्त रहते बचा लिया गया तो वहीं दूसरी ओर कई ऐसे मामले भी हैं जहां शर्म और समाज के कारण महिलाओं की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज ही नहीं कराइ गई।

कहा गायब हो रही महिलाएं
सिर्फ तीन वर्षों के भीतर इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं की गुमशुदगी का आंकड़ा देश के लिए शर्मशार करने वाला है। इस बात को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता की इससे पहले भी इन आंकड़ों में कोई कमी नहीं थी। आंकड़ों के अनुसार लापता होने वाली कई महिलाएं वापस मिल जाती हैं लेकिन बाकी की महलाओं व लड़कियों की कोई जानकारी नहीं मिलती। पुलिस के अनुसार गुमशुदा होने वाली अधिकतर महिलाओं ने पारिवारिक कलह और नौकरी की तलाश में घर छोड़ा है। हालांकि कई लोगों ने बाद में अपनी गलती को महसूस किया और वापस घर भी लौटी हैं। ज्यादातर महिलाएं 16 से 25 साल की हैं। घरेलू झगड़े या घरवालों के साथ लगातार हो रहे झगड़े की वजह से घर छोड़ा था। लेकिन इस क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और एनजीओ ऐसे मामलों को मानव तस्करी से जोड़कर देखते हैं। जो एक सीमा तक सही भी है। आज देश में फैली गरीबी के कारण मानव तस्करी के आंकड़ों में वृद्धि हो रही है। आधुनिक सभ्यता में व्यक्तियों की तस्करी अपराध के सबसे बुरे रूपों में से एक है।

वैश्विक स्तर पर 20.9 मिलियन से अधिक लोग इसके शिकार हैं, जिनमें से अधिकांश लड़कियां और महिलाएं हैं जो यौन शोषण का भी शिकार बन चुकी हैं। महिला तस्करी आज एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गई है, जो दुनिया भर के देशों को प्रभावित कर रहा है। विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों के लिए उनकी तस्करी की जा रही है जो अपमानजनक प्रकृति के हैं। नई सूचना प्रौद्योगिकियों विशेषकर इंटरनेट के बढ़ते उपयोग के साथ इस समस्या ने एक नया आयाम प्राप्त कर लिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि तस्करी के इस जाल में फंसी अधिकतर महिलाओं को व्यापार का जरिया बना लिया गया है और वे देह व्यापार का साधन बन गई हैं।

महिलाओं के साथ होने वाले अपराध
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार केवल राजधानी दिल्ली में साल 2021 में कुल 13 हजार 892 महिलाओं के यौन शोषण के मामले दर्ज किए गए। रिपोर्ट के अनुसार 2021 के आंकडे 19 महानगरों के सर्वे के बाद पेश किए गए। जिसके अनुसार सभी महानगरों में कुल मिलाकर सिर्फ यौन उत्पीड़न के 43 हजार 414 केस दर्ज किये गए। वहीं अपहरण के 3 हजार 948 मामले सामने आए। जबकि घरेलू हिंसा के 4 हजार 674 मामले दर्ज किए गए। हत्या के 454 मामले सामने आए इसका कारण संपत्ति और परिवार से जुड़े विवाद, प्रेम प्रसंग के कारण खून खराबा, अवैध संबंधों के कारण आदि को बताया गया। इसी वर्ष साइबर क्राइम के मामले भी बढ़े, जिसमें पाया गया था कि अधिकतर क्राइम यौन शोषण के उद्देश्य से किए गए थे। साल 2021 में साइबर क्राइम के 356 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे।

महिला सुरक्षा संबंधी कानून
महिला सुरक्षा के स्तर में सुधार के लिए कई नियम कानून बनाए गए हैं, लेकिन महिलाओं में शिक्षा व जागरूकता की कमी के कारण वह खुद अपने ही अधिकारों से अवगत नहीं हैं। जिसके लिए उन्हें जागरूक बनाना आवश्यक है। महिला सुरक्षा के कुछ कानून निम्नलिखित हैं – राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 : राष्ट्रीय महिला आयोग की सांविधिक निकाय के रूप में स्थापना महिलाओं के लिए संवैधानिक और विधायी सुरक्षापायों की समीक्षा करने, उपचारी विधायी उपायों की सिफारिश करने, शिकायतों के निवारण को सरल बनाने और उन्हें प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के तहत जनवरी, 1992 में की गई।

महिला सुरक्षा कानून : साल 2016 में हुए निर्भया कांड के बाद से भारत में यौन शोषण से जुड़े कानून और भी सख्त किए गए हैं ताकि ऐसे मामलों के दोषियों को ज्यादा से ज्यादा सजा मिल सके। पहले अगर अपराध करने वाले व्यक्ति की उम्र 18 साल से कम होती थी तो उसे माइनर केस मान लिया जाता था और उस मामले को जुवेनाइल जस्टिस के अंतर्गत भेज दिया जाता था। लेकिन निर्भया केस के बाद इस कानून में बदलाव किए गए। अब अपराधी की उम्र 16 से 18 साल के बीच है तो उसे भी सख्त सजा सुनाई जा सकती है।

पॉक्सो एक्ट : यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो एक्ट) बाल यौन शोषण के मामलों को रोकने के लिए साल 2012 में लागू किया गया था। इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों को संरक्षित करने का प्रयास किया जाता है। फिर चाहे पीड़ित लड़की हो या लड़का। इस कानून के अंतर्गत अलग- अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा निर्धारित की गई है। जैसे अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे को पोर्नोग्राफी दिखाता है या उसके सामने कोई सेक्सुअल हरकतें करता है तो उसे 3 साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।

 

‘हमारा सिस्टम बिल्कुल असमर्थ है’
इन महिलाओं के लापता होने की कई वजहें हैं जिसमें यौन हिंसा, घरेलु हिंसा और मानव तस्करी आदि शामिल हैं। अगर महिला व लड़कियों के लापता होने के कारणों को देखें तो इसमें वो लड़कियां भी शामिल हैं जो अपनी मर्जी से घर छोड़कर जाती हैं, या घरेलु हिंसा या मानव तस्करी का शिकार होती हैं। इसलिए जरूरी है कि सरकार पूरे डाटा को अलग-अलग करके दिखाए। केवल एक स्टेटिंग स्टेटमेंट दे देना कि 13 लाख लड़कियां लापता हैं, ये अपने आप में बहुत बड़ा आंकड़ा है। दूसरा यह भी देखा गया है कि जब लड़कियों और औरतों के लापता होने की बात आती है तो इसे हमारा सिस्टम गंभीरता से नहीं लेता। इस बात को इस उदहारण से समझा जा सकता है कि अगर आप पुलिस स्टेशन किसी टीनएजर लड़की के लापता होने की रिपोर्ट लिखवाने जाएंगे तो उनका सबसे पहला रवैया यही होता है कि ‘अरे भाग गई होगी।’ अगर कोई घरेलु हिंसा की वजह से अपना घर छोड़ कर जाती है तो वहां एक्शन लेने की जगह कहा जाता है कि ‘अरे वापस आ जाएगी।’ वहीं जिनकी ट्रैफिकिंग हो रही है वो किस वर्ग या समुदाय से आती है ये भी देखने की जरूरत है। ज्यादातर महिलाएं जिनकी तस्करी होती है वो गरीब घर की लड़कियां या औरतें होती हैं। उन्हें बेचा जाता है तो उन्हें खोजने के लिए पूरा सिस्टम नहीं लगता है। आसान भाषा में कहें तो अगर किसी अपर क्लास या अपर कास्ट लड़की का अपहरण होता है या गुम हो जाती है तो उसके लिए जितनी तेजी से कार्यवाही होगी उतनी सही कार्यवाही गरीब लड़कियों के लिए नहीं होती है। देश का माहौल तो महिला हिंसा से जुड़ा हुआ है ही, लेकिन हमारा सिस्टम इन ‘खोई हुई’ लड़कियों का पता लगाने में बहुत ही कमजोर है। ऐसी लाखों लापता लड़कियां हर दिन फाइलों में ही रह जाती हैं, उनकी खोज-खबर हमारा सिस्टम नहीं लेता है। जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि हमारे पास वो सिस्टम या वो स्ट्रक्चर ही नहीं है कि जो लड़कियां खो रही हैं, अपने मर्जी से घर से जा रही हैं, उनका अपहरण हो रहा है या वो यौन हिंसा का शिकार हो रही हैं उनकी वापसी कराई जा सके। इसके लिए हमारा सिस्टम बिल्कुल असमर्थ है।
रितिका, मैनेजिंग एडिटर, ‘फेमिनिज्म इन इंडिया’

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