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केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया है जिसमें कोर्ट से फैसला आया था कि केजरीवाल सरकार के पास सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और जमीन को छोड़कर सेवाओं पर विधायी और कार्यकारी शक्तियां हैं

दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल की लड़ाई काफी पुरानी है, जहां अधिकारों को लेकर लगातार जंग छिड़ी रहती है। केंद्र सरकार की तरफ से नियुक्त उपराज्यपाल और चुनी हुई दिल्ली सरकार के बीच इस लड़ाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया कि केजरीवाल सरकार के पास सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और जमीन को छोड़कर सेवाओं पर विधायी और कार्यकारी शक्तियां हैं। जिसमें दिल्ली सरकार को ही दिल्ली का असली बॉस बताया गया था। लेकिन गत सप्ताह केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया है। दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए केंद्र सरकार यह अध्यादेश लेकर आई है। इस अध्यादेश के जरिए अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के अधिकार दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना को दिए गए हैं।

दरअसल दिल्ली का बॉस कौन होगा, इसको लेकर चल रहा विवाद थम नहीं रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने बीते 11 मई को दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल विवाद पर आम आदमी पार्टी सरकार के हक में फैसला सुनाते हुए कहा, ‘निर्वाचित सरकार को प्रशासन पर नियंत्रण रखने की जरूरत है। दिल्ली भले ही पूर्ण राज्य न हो लेकिन इसके पास कानून बनाने के अधिकार हैं। यह निश्चित करना होगा कि राज्य का शासन केंद्र के हाथ में न चला जाए। हम सभी जज इस बात से सहमत हैं कि ऐसा आगे कभी न हो। कोर्ट ने साफ कर दिया था कि दिल्ली के कल्याण से जुड़ी योजनाओं पर दिल्ली सरकार निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है। उसे राज्यपाल द्वारा रोका नहीं जा सकता है। कोर्ट के इस फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि दिल्ली के किंग केजरीवाल ही हैं। लेकिन इस फैसले के बाद गत सप्ताह केंद्र सरकार द्वारा इस फैसले को बेअसर करने वाला अध्यादेश जारी कर दिया गया है। इस पूरे विवाद से अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या दिल्ली का ड्रामा एक बड़े संकट में बदल सकता है?
चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच के फैसले में साफ तौर पर कहा गया था कि पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन को छोड़कर बाकी मामले में दिल्ली की विधायिका और कार्यपालिका के कंट्रोल में एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस होगी। कोर्ट ने तीन अपवादों का जिक्र कर कहा था कि इन तीनों अपवादों को छोड़कर बाकी मामले में कानून बनाने का अधिकार दिल्ली सरकार को है। संविधान भावना फेडरलिजम की भावना है। इसके तहत संविधान में जो दायरा तय किया गया है, उसमें केंद्र सरकार को उस दायरे में ही रहकर अपने अधिकार का इस्तेमाल करना होगा। भारत संसदीय लोकतंत्र है। उसमें जो भी ऑफिसर हैं, वे मिनिस्टर को रिपोर्ट करेंगे। जो मंत्री हैं, जो मंत्रिपरिषद है, वो सदन के प्रति उत्तरदायी होता है। जो सदन है, वो जनता के प्रति उत्तरदायी होता है। सुप्रीम कोर्ट का यह क्लियर मैसेज था। साफ तौर पर कहा गया था कि पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन को छोड़कर बाकी जो भी मामले हैं, उसमें दिल्ली सरकार की जो सिफारिश है, एलजी को उसके तहत काम करना होगा। एलजी उसके तहत बाध्य हैं। इसमें कोई भी शक की गुंजाइश नहीं है।

तीन विषयों को छोड़कर बाकी सारे विषयों में दिल्ली गवर्नमेंट की सिफारिश के हिसाब से ही एलजी को काम करना पड़ेगा। लेकिन मामला यहां थमा नहीं। केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर दिया है। चूंकि सदन अभी चल नहीं रहा है तो अध्यादेश जारी हुआ है। उसमें कहा गया है कि एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस की ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी बनाई गई है। इसमें सीएम पदेन अध्यक्ष होंगे, चीफ सेक्रेटरी होंगे, प्रिंसिपल होम सेक्रेटरी होंगे। इनके बहुमत से ट्रांसफर पोस्टिंग की सिफारिश होगी। आखिरकार एलजी ही मंजूरी के लिए फाइनल अथॉरिटी होंगे। कोई भी मतांतर होता है तो एलजी का जो फैसला होगा, वह फाइनल होगा। यह कहा गया है कि दिल्ली में पोस्टेड जो ऑफिसर हैं, उनके ट्रांसफर पोस्टिंग का जो भी सिस्टम है, वह इसी अथॉरिटी के जरिए होगा। अध्यादेश के हिसाब से देखा जाए तो कहीं न कहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो अधिकार दिया था दिल्ली सरकार को, वह अब एलजी के हाथ में चला गया है। निश्चित तौर पर यह जो मसला है वह अध्यादेश आने के बाद एक टकराव की स्थिति तो बनती नजर आ रही है।

दिल्ली के अफसरों पर किसका कंट्रोल होगा, इसका फैसला भले ही सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया, मगर केंद्र बनाम दिल्ली सरकार की तकरार का यह मामला नित नए मोड़ लेता जा रहा है। अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का मामला एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर 11 मई के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है। केंद्र सरकार का यह कदम ऐसे वक्त में आया है, जब खुद केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया है, जिसे लेकर एक बार फिर से दिल्ली सरकार से तकरार बढ़ती दिख रही है। बीते दिनों संवैधानिक पीठ ने दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर- पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार को दिया था।

केंद्र सरकार ने ‘दानिक्स’ कैडर के ‘ग्रुप-ए’ अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए ‘राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण’ गठित करने के उद्देश्य से 20 मई को एक अध्यादेश जारी किया था। गौरतलब है कि अध्यादेश जारी किए जाने से महज एक सप्ताह पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि को छोड़कर अन्य सभी सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली सरकार को सौंप दिया था। हालांकि, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अध्यादेश आने से पहले ही आरोप लगाया था कि केंद्र उच्चतम न्यायालय के फैसले को पलटने के लिए अध्यादेश जारी करने की योजना बना रही है।

अध्यादेश में कहा गया है कि ‘राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण’ नाम का एक प्राधिकरण होगा, जो उसे प्रदान की गई शक्तियों का उपयोग करेगा और उसे सौंपी गई जिम्मेदारियों का निर्वहन करेगा। प्राधिकरण में दिल्ली के मुख्यमंत्री उसके अध्यक्ष होंगे। साथ ही, इसमें मुख्य सचिव और प्रधान सचिव (गृह) सदस्य होंगे। अध्यादेश में कहा गया है, ‘प्राधिकरण द्वारा तय किए जाने वाले सभी मुद्दों पर फैसले उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से होगा। प्राधिकरण की सभी सिफारिशों का सदस्य सचिव सत्यापन करेंगे।’

अध्यादेश में कहा गया है कि प्राधिकरण उसके अध्यक्ष की मंजूरी से सदस्य सचिव द्वारा तय किए गए समय और स्थान पर बैठक करेंगे। प्राधिकरण की सलाह पर केंद्र सरकार जिम्मेदारियों के निर्वहन हेतु इसके के लिए आवश्यक अधिकारियों की श्रेणी का निर्धारण करेगी और प्राधिकरण को उपयुक्त अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध कराएगी। वर्तमान में प्रभावी किसी भी कानून के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण ‘ग्रुप-ए’ के अधिकारियों और दिल्ली सरकार से जुड़े मामलों में सेवा दे रहे ‘दानिक्स’ अधिकारियों के तबादले और पदस्थापन की सिफारिश कर पाएगा। लेकिन वह अन्य मामलों में सेवा दे रहे अधिकारियों के साथ ऐसा नहीं कर सकेगा।

केंद्र सरकार द्वारा जारी अध्यादेश को आम आदमी पार्टी ने उच्चतम न्यायालय के साथ ‘छलावा’ करार दिया है, जिसने 11 मई के अपने आदेश में दिल्ली सरकार में सेवारत नौकरशाहों का नियंत्रण इसके निर्वाचित सरकार के हाथों में सौंपा था। दिल्ली की लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) मंत्री आतिशी ने कहा कि केंद्र का अध्यादेश ‘‘स्पष्ट रूप से न्यायालय की अवमानना है। सरकार उच्चतम न्यायालय के संविधान पीठ द्वारा सर्वसम्मति से दिए गए फैसले के खिलाफ गई है।
समर्थन जुटाने में जुटे केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, एनसीपी प्रमुख शरद पवार और उद्धव ठाकरे से मुलाकात की है। केजरीवाल का इन विपक्षी नेताओं से मुलाकात का कारण केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली में लाए गए अध्यादेश को राज्यसभा में रोकना है। इसके लिए वे विपक्षी नेताओं के पास जाकर समर्थन जुटा रहे हैं। केजरीवाल ने प्रेस वार्ता कर कहा कि नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी (एनसीसीएसए) अध्यादेश लाकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दी है। यह मामला कोर्ट में पांच मिनट भी नहीं टिकेगा। हम दिल्ली में हर एक घर में जाएंगे और इस अध्यादेश के बारे में बताएंगे। साथ ही वे एक महारैली करेंगे। वे हर पार्टी से समर्थन मांगेंगे ताकि राज्यसभा में यह अध्यादेश पारित न हो।

अध्यादेश की अहम बातें
दिल्ली में सभी अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग की सिफारिश के लिए एक नेशनल कैपिटल सर्विस अथॉरिटी बनाया जाएगा। इसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और गृह विभाग के प्रधान सचिव सदस्य बनाए गए हैं और फैसला बहुमत से होगा। अथॉरिटी की बैठक के लिए कोरम 2 लोगों का होगा, यानी अगर सीएम नहीं भी आते हैं तो भी बैठक मान्य होगी। अथॉरिटी की सिफारिश उपराज्यपाल को भेजी जाएगी और अंतिम फैसला उपराज्यपाल का होगा कि वे उस सिफारिश को मानते हैं या नहीं। यह भी साफ किया गया है कि दिल्ली की विधानसभा को केंद्र और राज्य सेवा के अधिकारियों के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा।

बाकी राज्यों से कैसे अलग है दिल्ली
दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है, लेकिन बाकी केंद्र शासित प्रदेशों से यहां कुछ नियम अलग हैं। साल 1991 में संविधान में संशोधन किया गया था, जिसके बाद अनुच्छेद 239एए और 239एबी प्रभाव में आए। दिल्ली में इन दोनों के तहत ही कामकाज होता है। बाकी केंद्र शासित प्रदेशों में अनुच्छेद 239 लागू होता है।

ऐसे बदलते रहे दिल्ली के बॉस
करीब 8 साल से दिल्ली की सत्ता में अरविंद केजरीवाल की ‘आम आदमी पार्टी’ है। वहीं केंद्र की सत्ता में बीजेपी काबिज है। जिसकी वजह से लगातार दिल्ली सरकार और एलजी के बीच टकराव होता रहा है। मामला कई बार सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है और हर बार हाई वोल्टेज ड्रामा भी देखने को मिला है।

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