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भाजपा को वेस्ट यूपी में जाटों के साथ ही गुर्जर समुदाय की नाराजगी महंगी पड़ेगी 

पिछले साल जब से किसान आंदोलन शुरू हुआ तब से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान खासकर जाट समुदाय की भाजपा से नाराजगी जगजाहिर है। जाटों को अपने पाले में बनाए रहने के लिए भाजपा ने जी तोड़ मेहनत शुरू कर दी है। यहां तक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि बिल भी वापस ले लिए हैं। हालांकि इसके बावजूद भी भाजपा से जाटों की नाराजगी जस की तस है। बावजूद इसके कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर जातिवाद का कार्ड खेला था। राजा महेंद्र प्रताप सिंह के जाट समाज से होने की याद दिला कर अलीगढ़ में उनके नाम पर यूनिवर्सिटी का शिलान्यास किया गया। लेकिन इससे भी जाट समाज कि भाजपा से नाराजगी कम नहीं हुई।
 लेकिन वहीं दूसरी तरफ भाजपा के लिए अब गुर्जर समुदाय की नाराजगी महंगी पड सकती है। जाटों के साथ ही जहां भाजपा ने गुर्जरों को अपने पाले में बनाए रखने के लिए भारी प्रयास किए। इसी तरह गुर्जरों की राजधानी कहे जाने वाले दादरी शहर में सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति का अनावरण कार्यक्रम कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुर्जरों को साधने की कोशिश की। लेकिन मुख्यमंत्री का यह दाव उल्टा पड़ गया। गुर्जरों को साथ लेकर चलने के उनके यह प्रयास काम नहीं आए। फलस्वरूप पश्चिमी उत्तर प्रदेश का गुर्जर मतदाता भाजपा से पूरी तरह से खिन्न नजर आ रहा है। इसी के साथ ही त्यागी मतदाता भी भाजपा से दूर होता दिखाई दे रहा है। वेस्ट यूपी में भाजपा 2017 के विधानसभा चुनाव में जाटों गुर्जरों और त्यागियो के समर्थन से भारी बहुमत सी जीत दर्ज करा चुकी है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को वैसे तो जाटलैंड कहा जाता है। लेकिन जाटों के अलावा गुर्जर और त्यागी मतदाता भी यहां  बहुल्य संख्या में है। गुर्जर मतदाता की भाजपा से  नाराजगी की शुरुआत 22 सितंबर को दादरी से हुई थी। इस दिन प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैली में सम्राट मिहिर भोज के नाम के आगे से गुर्जर शब्द हटा दिया गया था। इसके बाद गुर्जर नेता सम्राट मिहिर भोज को नाम और सम्मान के नाम पर जगह-जगह जाकर रैली कर रहे हैं और भाजपा की जमकर खिंचाई कर रहे हैं।
देखा जाए तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों का प्रभाव ज्यादा विधानसभा सीटों पर दिखाई पड़ता है। जबकि यहां की राजनीति में गुर्जर समुदाय का असर भी कम नहीं है। वेस्ट यूपी की 110 सीट में अकेले गुर्जर समाज 20 से 28 सीटों पर अपनी दमदार उपस्थिति बनाए हुए है। ऐसे में भाजपा का ये सोचना ग़लत है कि वह कुछ जातियों को एक साथ लाकर अपने नुक़सान की भरपाई कर सकती है। बहरहाल, किसानों, जिनमें जाट, गुर्जर, त्यागी और मुसलमान सभी शामिल हैं, की नाराजगी से पैदा हुई चुनौती का सामना करना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर बनता दिखाई दे रहा है।
2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 110 विधानसभा सीटों में से 88 सीटों पर भाजपा का कब्जा था। जबकि इससे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां से महज 38 सीटें मिली थी । इसके 1 साल बाद ही यानी कि 2013 में मुजफ्फरनगर में जाट और मुस्लिम दंगे हुए। जिसमें दोनों संप्रदाय के लोगों में गहरी खाई आ गई थी। जिसका राजनीतिक फायदा भाजपा को मिला । जो 2014 के लोकसभा चुनाव में दिखाई दिया।तब 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी बनकर आई। इस चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी लोकसभा सीटों पर भाजपा की एकतरफा जीत हुई। इसके बाद 2019 का लोकसभा चुनाव आते-आते भाजपा का प्रभाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कम होना शुरू हो गया। जिसके चलते भाजपा को इस लोकसभा चुनाव में 5 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि इस लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल के साथ ही समाजवादी पार्टी और बसपा का गठबंधन था।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुर्जर मतदाताओं की बात करें तो यह समुदाय गाजियाबाद, गौतम बुध नगर बिजनौर, संभल, मेरठ, सहारनपुर, कैराना जिले की करीब दो दर्जन सीटों पर गुर्जर निर्णायक भूमिका में हैं। जहां 20 से 70 हजार के करीब इनका वोट है। एक दौर में गुर्जर समाज के सबसे बड़े और सर्वमान्य नेता भाजपा के बाबू हुकुम सिंह हुआ करते थे, जो कैराना के साथ-साथ पश्चिम यूपी की सियासत पर खास असर रखते थे। बाबू हुकुम सिंह की मृत्यु के बाद बने शून्य को भरने के लिए भाजपा ने बिजनौर के  एमएलसी अशोक कटियार को आगे बढ़ाया और 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले योगी सरकार की कैबिनेट में जगह देकर उन्हें साधे रखा है।
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा  के टिकट पर पांच गुर्जर विधायक जीतकर आए थे। इनमें पूर्व सांसद रहें अवतार सिंह भड़ाना, डॉ. सोमेंद्र तोमर, तेजपाल नागर, प्रदीप चौधरी और नंदकिशोर गुर्जर शामिल हैं।  लेकिन अवतार भड़ाना अब भाजपा का साथ छोड़ चुके हैं। अवतार सिंह भड़ाना फिलहाल भाजपा के खिलाफ जमकर बयानबाजी कर रहे हैं । वह सम्राट मिहिर भोज के मुद्दे पर लगातार भाजपा की घेराबंदी कर रहे हैं।
पश्चिम उत्तर प्रदेश में डैमेज कंट्रोल करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले दिनों कई रैलियां की। यह रैली कैराना, मेरठ, मुजफ्फरनगर और खतौली के साथ ही बागपत में की गई। लेकिन इन रैलियों में उम्मीद के मुताबिक भाजपा को उपस्थित लोगों की कमी बेहद खली। इससे कयास लगने शुरू हो गए कि अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में योगी का जादू काम नहीं कर रहा है।
हालांकि भाजपा कैबिनेट मंत्री अशोक कटारिया और राज्यसभा सांसद सुरेंद्र नागर के दमखम पर गुर्जर समुदाय में अभी भी अपना जनाधार बनाए रखने का सपना पाले हुए हैं। सुरेन्द्र नागर के अलावा समाज के दूसरे दिग्गज नेता नरेंद्र सिंह भाटी को समाजवादी पार्टी से तोड़कर भाजपा में लाने को भी इसी कड़ी में देखा जा रहा है। नरेंद्र सिंह भाटी समाजवादी पार्टी में विधान परिषद सदस्य थे। पिछले दिनों नरेंद्र सिंह भाटी की भाजपा में जॉइनिंग होने से पार्टी के नेता गदगद है। जाटों की नाराजगी से पैदा हुई चुनौती का सामना गुर्जर समाज से करने की कोशिशों में जुटी भाजपा को इसमें कितनी सफलता मिलती है यह तो समय ही बता पाएगा।
फिलहाल 2022 के विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश बढ़ रही है। ऐसे में मुख्यमंत्री योगी सूबे की गुर्जर से लेकर तमाम जातियों को साधने की कवायद में जुटे हुए हैं।

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