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मोल की बहुएं करें पुकार बंद करो ये अत्याचार

खेलों की राजधानी कहे जाने वाले प्रदेश हरियाणा में इन दिनों मोल की बहुएं चर्चाओं में हैं। वह युवक जिनकी किन्हीं कारणों से शादी नहीं होती है और वे ओवर एज हो जाते हैं ऐसे में वे दूसरे प्रदेशों से मोल की बहुएं लाते हैं। ऐसी शादी कराने में दलालों का पूरा गैंग होता है जो हरियाणा के हर गांवों तक फैला है। दलालों का कमीशन तय होता है। दूसरे प्रदेशों से गरीब घरों की खरीद कर लाई गई ये महिलाएं समाज में सम्मान की दृष्टि से नहीं देखी जाती हैं। ‘बिहारन’, ‘पारो’ और ‘मोल की बहुएं’ उपनाम से उनका तिरस्कार किया जाता है। हरियाणा के कई गांवों में जब ऐसी पीड़ित महिलाओं का सर्वे कराया गया तो यह भयानक सच सामने आया कि उन्हें वंश बेल बढ़ाने और कठिन काम कराने के साथ ही घरेलू हिंसा का शिकार भी बनाया जाता है। देश में ‘बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ’ का नारा बुलंद करने वाली भाजपा सरकार के राज में मोल की बहुओं पर बढ़ रहा अत्याचार का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है

कई वर्षों से किए जा रहे सर्वे में मोल की दुल्हन जैसी व्यापक रूप से प्रचलित प्रथा के बारे में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। इस प्रथा में हरियाणा जैसे राज्य में शादियों के लिए महिलाओं की कमी होने के कारण यहां के पुरुष दूसरे राज्यों से अपने लिए दुल्हन खरीद कर लाते हैं। ये दुल्हनें आम तौर पर बेहद गरीब घर से होती हैं जिनके मां-बाप दहेज न होने की वजह से उनकी शादी नहीं कर पाते। ऐसे में हरियाणा के अविवाहित पुरुष इन महिलाओं के परिवार से सौदा कर और उनसे शादी की औपचारिकता पूर्ण कर अपने राज्य ले आते हैं। इन लाई गई महिलाओं को यहां ‘मोल की बहु’, ‘पारो’ और ‘बिहारन’ उपनाम से बुलाया जाता है। इन महिलाओं को मोल की दुल्हन इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इन महिलाओं के परिजनों की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय होती है। ऐसे में वे पुरुष जो इनके साथ शादी करके बिना दहेज के इनको अपने घर ले जाते हैं। वे इन महिलाओं के परिजनों को बदले में कुछ पैसे देते हैं। जिन्हें वे शादी के दौरान देते हैं। जिसके बाद ये महिलाएं अपने पति के घर रहने लगती हैं। कहा जाता है कि इन्हें अपने घर लौटने का कोई अधिकार नहीं दिया जाता।

इस सर्वे में ऐसी महिलाओं से बात की गई जिन्हें यहां के लोग ‘मोल की बहुएं’ कहते हैं। इन महिलाओं के जीवन की बहुत सी पीड़ा है जो कई वर्षों से अनसुनी ही है। उनकी पीड़ा को सुनने के बाद पता चला कि यह प्रवृत्ति काफी समय पहले से चली आ रही है जिसे लोग पहले ‘महिला तस्करी’ के नाम से जानते थे, लेकिन वक्त के साथ इस प्रथा को वर्तमान में शादी जैसे रिश्ते की चादर ओढ़ा दी गई है। इसमें सबसे ज्यादा जाट युवाओं के नाम आते हैं जो विवाह न होने के कारण ऐसा करने पर मजबूर होते हैं।

हरियाणा कन्या भ्रूण हत्या के लिए बदनाम है। यहां के लोगों की वर्षों पुरानी पुरुष प्रधान मानसिकता और इससे जुड़े अन्य कारण लड़कियों की लगातार कम होती स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत में प्रति वर्ष पांच लाख लड़कियां भ्रूण अवस्था में ही मार दी जाती हैं। इनमें सबसे ज्यादा मामले हरियाणा में सामने आते हैं। इसके चलते ही इस प्रदेश में लगातार महिला दर गिरती हुई देखी गई है। आंकड़े दर्शाते हैं कि देशभर में वर्ष 1994 के बाद गैरकानूनी करार दी गई लिंग जांच और कन्या भ्रूण हत्या अब भी इस प्रदेश में प्रचलन में है। जिसके फलस्वरूप हरियाणा में यह समस्या बढ़ती ही जा रही है।
चंडीगढ़ स्थित इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन यानी आईडीसी के निदेशक प्रमोद कुमार की मानें तो उत्तर भारत में स्त्रियों की तादाद में कमी एक शताब्दी से भी अधिक पुरानी समस्या है। यदि हम वर्ष 1901 के भी आंकड़े देखें तो उस समय भी इसी राज्य में सबसे ज्यादा लिंग अनुपात था जो आज भी बढ़ता जा रहा है। हरियाणा के हर नौवे परिवार ने किसी न किसी समय कन्या भ्रूण हत्या को चुना है। जिस तरह से इसकी समाज में स्वीकृति बढ़ रही है, यह एक चिंताजनक स्थिति के रूप में उभर कर आ रहा है।

दलालों का गैंग सक्रिय
सर्वे में यह भी बात सामने आई कि हरियाणा के विषम लिंगानुपात के कारण यह नेटवर्क स्थानीय पुरुषों के लिए दुल्हन के रूप में देश भर से महिलाओं की खरीद कराने में दलाल की भूमिका निभाता है। शादी के लिए लाई गई यह लड़कियां मुख्य रूप से बंगाल, बिहार, असम, केरल, तमिलनाडु और झारखंड जैसे राज्यों से खरीदी जाती हैं। दुल्हनों की इस खरीद-फरोख्त में दलालों का नेटवर्क होता है। हरियाणा सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 2016 में राज्य में मानव तस्करी के ऐसे 30 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2017 में 48 दर्ज किए गए। कई सालों से महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर काम कर रही कार्यकर्ता जगमती सांगवान ने कहा कि यह कोई नया चलन नहीं है। यह पिछले पांच दशकों से चल रहा है लेकिन पिछले 30 वर्षों में हरियाणा में लिंगानुपात की स्थिति और बिगड़ी है जिसके कारणवश इस प्रथा में वृद्धि हुई है। यह प्रथा और इससे जुड़े नेटवर्क इतने ज्यादा फैल गए हैं कि हम किसी तरह से अनुपात में सुधार करने में कामयाब भी हो जाते हैं तो इसका परिणाम अगले 20 वर्षों के बाद दिखाई देना शुरू होगा और 20 वर्षों के इन प्रयासों में यह प्रथा लगातार जारी रहेगी।

दिल्ली में इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉरमेशन टेक्नोलॉजी में सामाजिक विज्ञान की सहायक प्रोफेसर पारो मिश्रा ने बताया कि ‘इन शादियों को कई दलालों द्वारा सुगम बनाया जाता है, अक्सर ऐसी महिलाओं से शादी की जाती है जिनकी शादियों में इन दलालों को अच्छा कमीशन मिलता है।’ हरियाणा के जींद जिले में मोल की आई बहु सुशीला ने खुलासा किया कि एक दलाल जुबैर ने उसकी शादी के समय उसके पति से 10,000 रुपए का कमीशन लिया था। जुबैर की पत्नी रिजवाना भी झारखंड की हैं। जिसे उसकी ससुराल में ‘पारो’ उपनाम दिया गया।

रिजवाना बताती हैं कि उन्होंने सुशीला की स्थिति देखते हुए उसे कई बार भाग जाने को कहा, लेकिन वह जाने से मना कर देती है और रोजाना पिटती रहती है। प्रोफेसर मिश्रा कहती हैं कि ‘आमतौर पर एक पीड़िता और उसका पति अब इस नेटवर्क में एजेंट का काम करने लगे हैं। पीड़ित महिला मोल की बहु जो अब इस धंधे में उतर गई है और अपने इलाके की गरीब लड़कियों को ढूंढकर लाती हैं और हरियाणा में शादी करा देती हैं।’
हरियाणा के बरसौला गांव के एक दलाल (नाम न बताते हुए) ने कहा कि वह अपनी पत्नी के गांव से गरीब घर की लड़कियां मंगाता है। खुद की शादी भी नेपाल की लड़की से हुई थी। उसके बाद उसने अपने गांव के 4-5 लड़कों की शादी उन मंगाई हुई लड़कियों से तय कर दी। वह दलाल बताता है कि मेरी पत्नी का परिवार हिमाचल के एक गांव में बसा है। मैं अपनी पत्नी के साथ गरीब परिवार की लड़कियों की तलाश के लिए नियमित रूप से वहां जाता रहता हूं। इसी से थोड़ा कमीशन भी कमा लेता हूं।

अहिरका गांव के एक दलाल ने बताया कि ‘इस प्रथा के शुरू होने और बढ़ने का एक बड़ा मकसद यह भी है कि ‘हरियाणा जैसे राज्य में पुरुष प्रधान प्रवृति होने के कारण यहां वंश चलाने के लिए एक उत्तराधिकारी की आवश्यकता है, इस कारण मोल की बहुएं अपने से बड़े पुरुषों की दूसरी पत्नियां बन जाती हैं। इस बारे में बिहार के सासाराम से लाई गई खुशबू कहती हैं ‘मेरे पति को पहली शादी से कोई बेटा नहीं था। इसलिए मुझे मेवात लाया गया, लेकिन बेटा पैदा होने के बाद मुझे खेतों में काम पर लगा दिया गया।’ ऐसे विवाहों का एक दिलचस्प पहलू यह है कि उनमें से अधिकांश अंतरजातीय समूह के होते हैं, जिनमें से कई में दुल्हन दलित और दूल्हा उच्च जाति के शामिल हैं। हरियाणा की कुख्यात खाप पंचायतें, जो अक्सर अंतरजातीय विवाह की निंदा करती है, वे भी अपने पारिवारिक वंश को बढ़ने के लिए इस प्रथा को स्वीकार कर चुके हैं। जींद की बरसोला खाप के प्रमुख सतबीर पहलवान ने कहा, ‘खाप दूसरे राज्यों से लड़कियों को लाए जाने के खिलाफ नहीं है। जो हमारे घर लाई जाती हैं वे हम में से एक बन जाती हैं। जाट के घर में जब कोई लड़की आती है तो जाटनी बन जाती है। इसी तरह अगर किसी हरिजन के घर किसी को लाया जाता है तो वह हरिजनों में से एक हो जाती है। हमें समस्या है तो वह एक ही गोत्र में शादी करना है। मेवात के गोहाना गांव के मुखिया ने भी माना कि इन मोल की बहुओं के कारण लिंगानुपात में सुधार हुआ है। बिगड़ते लिंगानुपात ने इस प्रवृत्ति को और बढ़ावा दिया था।’

हरियाणा में पुरुषों को अपने वंश बढ़ाने के साथ ही घर के कामों की देखभाल करने और खेतों में मदद करने के लिए पत्नी की जरूरत होती है। इसके चलते ही शादी करते हैं। देखा जाए तो यह विवाह पवित्र बंधन नहीं बल्कि एक समझौते की तरह होता है। सामाजिक दृष्टिकोण से हरियाणा के हर गांव में कम से कम 100 से लेकर 150 लड़के ऐसे होते हैं जिन्हें समाज शादी के निर्धारित मानदंडों के अनुरूप नहीं मानता है। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति जिसके पास कोई जमीन नहीं है, कोई सरकारी नौकरी नहीं है, कोई ऐसा व्यक्ति जो शारीरिक रूप से विकलांग है। ऐसे अविवाहित लड़के अपने लिए दुल्हन खोजने के लिए देश के दूसरे हिस्सों में मोल की बहुएं लेने जाते हैं।

ऐसी महिलाओं के साथ मुश्किल यह होती है कि इनमें से कई को उन परिवारों में सामाजिक रूप से सम्मान की दृष्टि से स्वीकार नहीं किया जाता है। मेवात के गोहाना गांव की चार बेटियों की मां सुशीला ने कहा कि बेटा नहीं होने पर उन्हें अपने परिवार से लगातार गाली-गलौज का सामना करना पड़ता है। इसकी यह दुर्दशा को रोजाना इसके मोहल्ले वाले सुनते हैं। सुशीला कई साल पहले झारखंड से मेवात में लाई गई थीं, जब उनसे बात की गई तो वह अपने ससुर से डर गई थीं और दबी जुबान में अपनी कहानी सुनाने लगीं, मुझे नहीं पता था कि यह मेरे पति की दूसरी शादी है। क्योंकि मैं शादी से पहले अपना पेट भरने के लिए काम किया करती थी तो मुझे बताया गया कि मुझे अब काम नहीं करना पड़ेगा। लेकिन शादी के बाद से ही मुझे भट्ठों से ईंटें ढोने से लेकर खच्चर पालने तक हर तरह का काम करना पड़ता है। कई बार काम करते-करते मुझे नींद आ जाती थी और ईंटें मेरे पैरों पर गिर जाती थीं। मेरे हाथ भी जख्मी हो गए थे। तमाम तरह का काम करने के बावजूद भी मुझे घरेलु हिंसा का सामना करना पड़ता है। ऐसे में मैं घरेलू हिंसा के मामले में खुद को पूरी तरह अकेली पाती हूं। हमारे लिए पुलिस के पास जाने का कोई रास्ता नहीं है, न ही हम मायके लौट सकते हैं।

पीड़िताओं का दर्द
हरियाणा के नूंह जिले के गोहाना गांव में एक ऐसी ही पीड़ित 70 साल की महबूबा नामक महिला हैं। वह मुंबई से यहां लाई गईं। 50 साल पहले शादी करने के बाद उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था, जिसके बाद वह मुंबई कभी नहीं लौटी। वह बताती हैं, जब वह 20 वर्ष की थीं तब एक ट्रक ड्राइवर मेवात से मेरे गांव आया था, उस ड्राइवर ने मुझे अपनी अर्द्धांगिनी के रूप में चुना और उसके बाद मैं कभी अपने मायके नहीं लौट सकी। हरियाणा के लगभग हर गांव में 10-12 ऐसी बहुएं हैं। बड़े गांवों में यह आंकड़ा 200 को भी पार कर जाता है। सर्वे में ऐसी ही एक और पीड़िता जो बिहार के भागलपुर जिले की 18 वर्षीय महिला सोमी दास की आपबीती सुनें तो उसकी शादी 2018 में 33 वर्षीय विकलांग संदीप सिंह से हुई थी। वह जींद के अहिरका गांव की रहने वाली हैं। संदीप सिंह ने ही उनकी शादी के लिए पूरा खर्चा किया था। आज स्थिति यह है कि सोमी दास पूरी तरह से अपने पति पर निर्भर हैं। इन विवाहित महिलाओं से बात करने पर यह भी पता चला कि इस तरह के विवाह आमतौर पर जाट ही नहीं, बल्कि ब्राह्मण, यादव और रॉड जातियों में भी किए जाते हैं।

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