- प्रियंका यादव
वर्ष 1984 में आई शबाना आजमी अभिनीत फिल्म ‘कमला’ ने भारतीय समाज की संवेदनाओं को झकझोरने का काम किया था। इस फिल्म में इंसान ही इंसान को खरीदता-बेचता है। कहानी ‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ के पत्रकार अश्विनी की एक खोजी रपट से प्रेरित थी कि कैसे गरीबी- बेबसी के चलते ‘दो जून की रोटी’ पाने की चाह में इंसान को तन-मन समेत बिकना पड़ता है, दूसरों की गुलामी करनी पड़ती है। 21वीं सदी के भारत में आज भी असंख्य ‘कमलाएं’ गरीबी और भुखमरी के चलते खरीदी-बेची जा रही हैं। ऐसा ही मामला बीते दिनों उड़ीसा के मयूरभंज से सामने आया है जिसमें एक मां ने अपनी आठ माह की बच्ची को भुखमरी चलते बेच दिया। यह उस राज्य में हुआ है जहां का कालाहांडी क्षेत्र दशकों पहले ऐसी ही घटनाओं को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का केंद्र बना था
दुनिया कैसी दुनिया है, इंसानों को नीलाम करें, हर सुबह बिके, हर शाम बिके। 1984 में आई अभिनीत शबाना आजमी की ‘कमला’ फिल्म का यह गीत गरीबों की मजबूरियों को बयां करता है। इस फिल्म की कहानी में साफ दिखाया गया है कि कैसे गरीबी-बेबसी की चलते दो जून रोटी पाने की चाह में इंसान को तन-मन समेत बिकना पड़ता है। दूसरों की की गुलामी करनी पड़ती है। कुछ लोगों की असल जिंदगी भी इस फिल्म की तरह ही है। नाबालिक बच्चों से लेकर नवजात शिशुओं तक की खरीद-फरोख्त होती है। जिसके चलते कई मासूमों को लगातार गुलामी, देह व्यापार जैसे दलदल में धकेला जा रहा है। इंसान ही इंसान को खरीदता-बेचता है। गुलामी बंधुआ मजदूरी की समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है। नाबालिग लड़कियों की खरीद-फरोख्त की कहानी बताने वाली फिल्म ‘कमला’ उन लोगों की व्यथा और उनको दी जा रही मानसिक शारीरिक यातना को उजागर करती है। जिसके बारे में हम सोच भी नहीं सकते।
‘कमला’ फिल्म सच्ची घटना पर आधारित है। यह कहानी ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के पत्रकार अश्विनी की एक खोजी रपट से प्रेरित है। अश्विनी सरीन ने एक महिला को खरीदकर दिल्ली के प्रेस क्लब में उसे पेश किया था। इससे पहले अश्विनी ने अपनी खोजी खबर के संदर्भ में सनसनीखेज खुलासा लिखा था कि ‘कल, मैंने पास के एक गांव की एक छोटे कद की पतली महिला को खरीदा शिवपुरी मध्य प्रदेश से 2 हजार 300 रुपए में खरीदा है, मुझे इस बात पर यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि आज सुबह उस अधेड़ उम्र की महिला को मैं भैंस की कीमत से आधी कीमत पर खरीदकर राजधानी लौटा हूं।’
दरअसल, उस दौरान पत्रकार अश्विन को पता चला था कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और यूपी के जक्शन पर महिलाओं का व्यापार बड़े पैमाने पर होता है। समय-समय पर सामाजिक कार्यकर्ता इस कुप्रथा की ओर ध्यान आकर्षित करते थे और अधिकारी वर्ग इसका खंडन करते रहते थे। लेकिन कई खोजी खबरें कर चुके अश्विनी इस मामले का खुलासा करने के लिए सबूत के तौर पर महिला को पेश करना चाहते थे जिससे वह महिला को खरीद दिल्ली में ले आए। अश्विनी ने उन लोगों से सीधे संपर्क स्थापित किया जो महिलाओं को खरीदने और बेचने का कारोबार करते थे। गहन और मेहनती काम के बाद, उन्होंने मुरैना सर्किट हाउस में एक सौदा किया और महिला, ‘कमला’ को खरीद लिया।
‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्टर कूमी कपूर के अनुसार कमला बेचे जाने से लेकर एक बड़े अनजाने शहर में लाए जाने के बाद तक के असहनीय दौर से गुजरी थी। ‘कमला को बार-बार इस्तेमाल किया गया और छोड़ दिया गया था।’ कूमी कपूर के मुताबिक इन घटनाओं ने कमला को पागलपन की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था। कमला कभी-कभी, व्यथित होने के बजाय, इस तथ्य पर गर्व व्यक्त करती थी कि उसके लिए कीमत इतनी अधिक आंकी गई थी। इससे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि महिलाओं का व्यापार कितना व्यापक तौर पर किया जाता है। कभी-कभी कमला को लगता था कि नई जगह जाने से उसका भाग्य सामान्य होगा। महिला व्यापार ने लोगों की मनोस्थिति इतनी संकीर्ण कर दी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पत्रकार अश्विनी की पत्नी के अनुसार कमला का मानना था कि अश्विनी ने उसे खरीदा है इसलिए वह उसका भोग कर सकता है।
देश में कई राज्य ऐसे हैं जहां चोरी-छुपे इंसानों की खरीद- फरोख्त का धंधा आज भी धड़ल्ले से चल रहा है। इस तरह की घटनाओं को अंजाम गरीब और कम संसाधन वाले इलाकों में ही दिया जाता है। इन्हीं जगहों में से एक है कालाहांडी जिसे श्रापित क्षेत्रों में से एक माना जाता है। वर्ष 1985 में उड़ीसा का कालाहांडी काफी चर्चा में आया था। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी उड़ीसा इस त्रस्त इलाके में भुखमरी चलते आदिवासियों द्वारा अपने बच्चों तक को बेचे जाने का खुलासा ‘इंडिया टुडे’ पत्रिका में पढ़ अचानक कालाहांडी के दौरे पर अपनी पत्नी सोनिया गांधी के साथ जा पहुंचे थे। वहां जाकर वे वास्तविक स्थितियों से अवगत हुए कि किस प्रकार गांव वाले गरीबी, इंसानों की खरीद-फरोख्त, भुखमरी, बंधुआ मजदूरी के दलदल में फंसे हुए हैं। उस दौरान राजीव गांधी ने स्थितियों में सुधार होगा इसका वायदा किया था। लेकिन आज लगभग चार दशक बाद भी उड़ीसा में गरीबी इस कदर हावी है कि बच्चों की खरीद-फरोख्त के मामले आए दिन सामने आते हैं।
महज 800 रुपए में बच्ची को बेचा हाल ही में मानवता को शर्मशार कर देने वाला एक और मामला उड़ीसा के मयूरभंज से आया है। जो उड़ीसा में कालाहांडी जैसे कई अन्य जिलों की गंभीर स्थितियों को बयां करता है। जर्मनी के मीडिया संस्थान ‘डब्ल्यू’ के अनुसार नौ महीने की एक बच्ची को बेचने के लिए पुलिस ने उसकी मां समेत चार लोगों को गिरफ्तार किया है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि गरीब मां-बाप द्वारा बच्चों को बेचने का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है। पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक ओडिशा के मयूरभंज में रहने वाली 25 साल की कर्मी मुर्मू ने अपनी नौ महीने की बेटी को महज 800 रुपए में एक निसंतान दंपती को बेच दिया था।
बच्ची के माता-पिता की एक और बेटी है जिसकी उम्र सात साल है। डीडब्ल्यू की रिपोर्ट अनुसार उसके पास दूसरी बच्ची का पालन पोषण करने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने उसे बेच दिया। गिरफ्तार लोगों में से फूलमनी मरांडी ने कहा कि उन्होंने और उनके पति ने बच्ची को इसलिए खरीदा क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी। कर्मी मुर्मू ने अपनी बच्ची को तब बेचा जब उसके पति मुसु मुर्मू काम करने तमिलनाडु गए हुए थे। मुसु मुर्मू को वापस लौटने पर जब इस बात का पता चला तो उन्होंने खुद ही पुलिस में शिकायत कर दी। मयूरभंज चाइल्ड वेलफेयर समिति के अध्यक्ष जगदीश चंद्र घड़ई ने ‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ अखबार को बताया कि बच्ची को उसके पिता और दादी के हवाले कर दिया गया है।
देश भर में इंसानों की खरीद-फरोख्त
देश के कई राज्यों से गरीब माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को बेचे जाने से संबंधित मामले सामने आते रहते हैं। वर्ष 2020 और 2021 में कोरोना के चलते हजारों लोगों का रोजगार छिन जाने के कारण ऐसे मामलों में और उछाल आया है। दरअसल महामारी और लॉकडाउन ने करोड़ों गरीब परिवारों को गरीबी में धकेल दिया। सरकारी एजेंसियों के पास माता-पिता द्वारा बच्चों को बेच देने के मामलों के सटीक आंकड़े नहीं हैं, हालांकि राष्ट्रीय आपराधिक क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार देशभर में हर साल 70 हजार से भी ज्यादा बच्चे लापता हो रहे हैं, यानी हर आठवें मिनट में एक बच्चा लापता होता है। माना जाता है कि लापता बच्चों की असली संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। बच्चे बेचे जाएं या लापता हो जाएं, उनमें से बड़ी संख्या में बच्चों की तस्करी की जाती है। बच्चों को जबरदस्ती भीख मांगने, गुलामी और देह व्यापार जैसे धंधों में शामिल होने के लिए मजबूर किया जाता है। एनसीआरबी के आंकड़े दिखाते हैं कि 2019 में देश में मानव तस्करी (बच्चों और वयस्कों समेत) के जितने भी मामले थे, उनमें से सबसे ज्यादा मामले जबरन श्रम, देह व्यापार, जबरन घरों में काम और शादी के थे।
कुछ हद तक कालाहांडी की स्थितियां बदली
चुनावी दौर में मंत्रियों का आना-जाना कालाहांडी बना रहता है। चुनावी रेवड़ियों से इन ग्रामीणों को अपनी ओर हर दल खींचने का प्रयास करता है। हालांकि मौजूदा समय में यहां कुछ हद तक स्थितियां सुधरी हुई देखी जा सकती हैं पर इन्हे बेहतर नहीं कहा जा सकता। लोग अभी भी अपना जीवन-यापन बड़ी कठिनाइयों से कर रहे हैं। काम की तलास में उन्हें शहर जाना पड़ता है। पिछले साल बीबीसी की रिपोर्ट अनुसार पेंशन, अस्पताल, स्कूल, भोजन संचार जैसी कुछ सुविधाएं लोगों को मिल पा रही हैं, लेकिन बेरोजगारी और गरीबी समेत भ्रष्टाचार से कालाहांडी अभी तक उबर नहीं पाया है।
काला हांडी की आबादी करीब 16 लाख है यहां एक चौथाई आबादी आदिवासी समुदाय की रहती है। कालाहांडी आज भी उस डरावने और शर्मनाक सच को नहीं भूला है, जब लोग मुट्ठी भर चावल के लिए एड़ियां रगड़-रगड़ कर मर जाते, जहां नाबालिग छोटे बच्चों को मां-बाप ने चंद सौ रुपयों के लिए महाजन को बेच दिया या फिर चौदह साल की बनिता जिसे उसकी भाभी ने केवल 40 रुपए और एक साड़ी के बदले बेच दिया। लेकिन अब कालाहांडी की स्थितियां बदली हैं। यहां के बहुत से लोग सरकारी योजनाओं का लाभ उठा पाते हैं। लेकिन मौजूदा समय में अभी बहुत से लोग हैं जो गरीबी की वजह से भीख मांग कर गुजारा करते हैं।