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  • क्यों उठे शराब नीति पर सवालथोक लाइसेंस धारकों का कमीशन बढ़ाकर 12 फीसदी करना।
    बड़ी कंपनियों की मोनॉपोली बढ़ाना।
    नई पॉलिसी के तहत किसी भी शराब की दुकान पर सरकार का मालिकाना हक नहीं रखने का प्रावधान।
    शराब दुकानदार द्वारा भारी रियायत पर शराब बेची जानी।
    पहले से अधिक और बड़ी दुकानें खोलना

यदि अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले में जेल जाना पड़ता है तो इससे दिल्ली की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। आम आदमी पार्टी का सबसे विश्वसनीय चेहरा आरोपों में घिर गया तो इससे जनता के बीच उसके उन दावों की हवा निकल सकती है, जिसमें वह देश को एक वैकल्पिक ईमानदार राजनीति देने का दावा करती रही है। अब तक राष्ट्रीय राजनीति में अपने लिए बड़ी संभावना खोज रहे केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को भी झटका लग सकता है

आबकारी मामले में केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई और ईडी पूरी तरह एक्टिव नजर आ रही हैं। दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम और शिक्षा मंत्री रहे मनीष सिसोदिया शराब घोटाले मामले में करीब डेढ़ महीने से सीबीआई और ईडी की कस्टडी में हैं। जिनसे घोटालों को लेकर पूछताछ हो रही है। इसी कड़ी में अब सीबीआई दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की तैयारी में जुट गई है। सीबीआई का कहना है कि उसके पास सबूत है, यानी अब केजरीवाल की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। ऐसा कहा जा रहा है कि अगले कुछ दिनों में पूरी केजरीवाल सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में होगी। दरअसल, भाजपा अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले का असली मास्टर माइंड बताती रही है। उसका कहना है कि मनीष सिसोदिया केवल उनके इशारे पर काम कर रहे थे। जबकि असली खेल केजरीवाल के माध्यम से खेला जा रहा था। किसी अपराध के मामले में उद्देश्य का साबित होना सबसे अहम होता है। इस मामले में शराब घोटाले से कमाया गया पैसा अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए इस्तेमाल किया गया, इसलिए वे इसके असली आरोपी हैं। भाजपा का दावा है कि सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की जांच में ये आरोप साबित होंगे और केजरीवाल को जेल जाना पड़ेगा।

गत सप्ताह 16 अप्रैल को शराब घोटाले मामले में सीबीआई ने दिल्ली के सीएम केजरीवाल से पूछताछ की है। प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से हाल ही में दायर चार्जशीट के अनुसार, अरविंद केजरीवाल ने शराब कारोबारी और आबकारी नीति घोटाले के मुख्य आरोपी समीर महेंद्रू से फेसटाइम पर बात की थी। इस बातचीत में उन्होंने पार्टी के संचार प्रभारी विजय नायर पर भरोसा करने को कहा। ईडी का कहना है कि पिछले साल 12 नवंबर और 15 नवंबर को पूछताछ के दौरान समीर महेंद्रू ने अधिकारियों को बताया था कि विजय नायर ने अरविंद केजरीवाल के साथ उनकी मुलाकात तय की थी, लेकिन बात नहीं बनी।

ईडी के मुताबिक इसके बाद नायर ने कथित तौर पर महेंद्रू और केजरीवाल को फेसटाइम वीडियो कॉल पर जोड़ा था। अरविंद केजरीवाल ने समीर से कहा कि विजय नायर उनके आदमी हैं और वह उन पर भरोसा कर सकते हैं। नायर इस मामले के आरोपियों में से एक हैं। जांच एजेंसी का कहना है कि समीर महेंद्रू और विजय नायर ने कथित तौर पर दिल्ली शराब नीति घोटाले में दूसरों के साथ मिलकर साजिश रची थी। कानून के जानकारों के मुताबिक, दिल्ली आबकारी नीति और शराब घोटाला मामले में सीबीआई ने अभी सीधे तौर पर अरविंद केजरीवाल को अभियुक्त नहीं बनाया है, लेकिन सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद केजरीवाल की मुसीबतें भी बढ़ सकती हैं। इससे पहले प्रवर्तन निदेशालय ने शराब घोटाले से जुड़े मामले में चार्जशीट दाखिल की थी, जिसमें डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के साथ पहली बार अरविंद केजरीवाल का भी नाम शामिल किया था। 03 फरवरी, 2023 को पीएमएलए कोर्ट ने ईडी की चार्जशीट का संज्ञान लिया और सभी आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने की अनुमति दी। चार्जशीट में सीएम केजरीवाल, डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के साथ-साथ उनके करीबी विजय नायर, इंडोस्पिरिट्स के प्रमुख समीर महेंद्रू समेत अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया। ईडी ने डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के सचिव के रूप में तैनात रहे दानिक्स अधिकारी सी अरविंद के बयान के आधार पर केजरीवाल को इस घोटाले में आरोपी बनाया। ईडी के मुताबिक दानिक्स अधिकारी अरविंद ने कहा कि उन्हें उनके बॉस सिसोदिया द्वारा केजरीवाल के आवास पर बुलाया गया था, जहां एक बैठक में उन्हें आबकारी नीति पर मंत्रियों की रिपोर्ट का एक मसौदा सौंपा गया था। हालांकि इस मामले में कानूनविदों का कहना है कि किसी आरोपी के बयान की प्रमाणिकता को दूसरे प्रमाणों से प्रमाणित होने के बाद ही उसे किसी आरोपी के विरुद्ध इस्तेमाल किया जा सकता है। यदि अन्य सहयोगी साक्ष्यों से आरोप प्रमाणित नहीं हुए तो ऐसे बयानों की अदालत में कोई उपयोगिता नहीं है। इसके पहले भी ठगी के आरोपी सुकेश चंद्रशेखर के मामले में भी यही बात सामने आई थी। इसके बाद भी विस्तृत जांच के नाम पर साक्ष्य इकट्ठा करने के लिए ऐसे व्यक्ति को अदालत द्वारा उचित मानने तक हिरासत में लिया जा सकता है।

गौरतलब है कि शराब घोटाले में मनीष सिसोदिया की भूमिका क्या है? यह जानने के लिए सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय ने उनसे पूछताछ से शुरुआत की। कुछ पूछताछ के बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया। अब यह एक स्थाई हिरासत में तब्दील होती दिखाई दे रही है। इसके पहले सत्येंद्र जैन के मामले में भी यही प्रक्रिया अपनाई गई थी। लगभग उसी तर्ज पर अब अरविंद केजरीवाल से भी पूछताछ का सिलसिला शुरू हो गया है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि यदि केजरीवाल के खिलाफ कुछ सबूत मिले तो उन्हें भी जेल जाना पड़ेगा? यदि अरविंद केजरीवाल जेल गए तो इससे दिल्ली की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा?

क्या पड़ेगा असर?
यदि अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले में जेल जाना पड़ता है तो इससे दिल्ली की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। आम आदमी पार्टी का सबसे विश्वसनीय चेहरा आरोपों में घिर गया तो इससे जनता के बीच उसके उन दावों की हवा निकल सकती है, जिसमें वह देश को एक वैकल्पिक ईमानदार राजनीति देने का दावा करती रही है। अब तक राष्ट्रीय राजनीति में अपने लिए बड़ी संभावना खोज रहे केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को भी झटका लग सकता है। केजरीवाल के घिरने से पार्टी की दिल्ली में पकड़ कमजोर पड़ सकती है। पार्टी में केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के समान दूसरा लोकप्रिय नेता न होने के कारण वह राजधानी की राजनीति में भी कमजोर पड़ सकती है। इसका लाभ भाजपा और कांग्रेस को मिल सकता है जो केजरीवाल युग के बाद दिल्ली की राजनीति में अप्रासंगिक हो गई हैं। 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर भी केजरीवाल एक बड़ा गठबंधन बनाने की कोशिशों में जुटे थे। नीतीश कुमार से उनकी मुलाकात के बाद कांग्रेस के साथ विपक्षी गठबंधन में उनके साथ आने की भी अटकलें लगाई जा रही हैं। यदि केजरीवाल जेल गए तो इससे 2024 को लेकर विपक्षी दलों की रणनीति पर भी असर पड़ सकता है।

क्या है शराब घोटाला
नवंबर 2021 में दिल्ली सरकार द्वारा बड़े जोर-शोर से नई आबकारी नीति जारी कर दी गई। इससे दिल्ली में शराब काफी सस्ती मिलने लगी और रिटेलर्स को डिस्काउंट देने की छूट भी मिली। हालांकि, बीजेपी ने आरोप लगाए कि शराब लाइसेंस बांटने में धांधली हुई। चुनिंदा डीलर्स को फायदा पहुंचाया गया। अब सवाल उठता है कि दिल्ली सरकार को यह नीति लाने की जरूरत क्यों पड़ी, जिससे सिसोदिया मुश्किल में पड़ गए। इस सवाल के जवाब में सिसोदिया का कहना है कि पुरानी नीति में कुछ विसंगतियां थीं, जिन्हें दूर करना था। नई नीति लाने से दिल्ली को मिलने वाला राजस्व बढ़ जाता। पहले दिल्ली सरकार को शराब से सालाना छह हजार करोड़ रुपये की कमाई होती थी। अगर नई नीति पूरी तरह से लागू होती तो सरकार को 9500 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होता। पुरानी नीति में सरकारी शराब की दुकानें भी थीं। इससे फायदा होने की बजाय नुकसान ही हुआ। दूसरा, दिल्ली में शराब की दुकानों की संख्या तर्कसंगत नहीं थी। इसका मतलब यह हुआ कि कुछ इलाकों में एक साथ कई दुकानें थीं तो कुछ इलाकों में दूर-दूर तक एक भी दुकान नहीं थी। ऐसे में सोचा गया कि हर वार्ड में तीन-तीन दुकानें खोल दी जाएं। इसका परिणाम शराब की एक समान वितरण प्रणाली के रूप में होता। सरकार के इस कदम का फायदा लोगों को मिलना शुरू हो गया है। निजी दुकानें खुलीं तो उनमें होड़-सी मच गई। नतीजा यह हुआ कि दिल्ली में एक के साथ एक बोतल मुफ्त मिलने लगी।

कहां फंसा नीति में पेंच
यह पेंच तब सामने आया जब खुद दिल्ली सरकार के सतर्कता विभाग (विजिलेंस डिपार्टमेंट) ने इस मामले में जांच रिपोर्ट तैयार की। मुख्य सचिव ने यह रिपोर्ट दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना को सौंप दी। यह रिपोर्ट ‘लीक’ हो गई। इसके बाद दिल्ली सरकार ने खुद नई शराब नीति को खत्म कर एक सितंबर से पुरानी नीति लागू करने का फैसला किया। तभी दिल्ली के एलजी ने मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश की। जांच में अधिकारियों व कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया।

क्या है नई शराब नीति
केजरीवाल सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी में शराब की बिक्री, लाइसेंस जारी करने और ठेके-बार के संचालन के लिए नई एक्साइज पॉलिसी लागू की थी। इस नीति के जरिए दिल्ली सरकार शराब खरीदने का अनुभव बदलना चाहती थी और नई नीति में दिल्ली को 32 जोन में बांटकर लाइसेंस जारी किए गए थे। इस नीति के कारण दिल्ली सरकार पर बड़े कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के आरोप लगे जबकि छोटे कारोबारियों को नुकसान पहुंचने की बात कही गई। नई शराब नीति में होटलों के बार, क्लब और रेस्तरां को रात 3 बजे तक खुला रखने की छूट दी गई थी। इन्हें छत, गैलरी, बाहरी स्पेस समेत किसी भी जगह शराब परोसने की छूट दी गई थी। जबकि पुरानी नीति में खुले में शराब परोसने पर रोक थी। इतना ही नहीं, बार काउंटर पर खुल चुकी बोतलों की शेल्फ लाइफ पर पाबंदी हटा ली गई थी।

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