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सपा के सामने गढ़ बचाने की चुनौती

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी सीट पर लोकसभा और रामपुर व खतौनी विधानसभा उपचुनाव के लिए 5 दिसंबर को चुनाव होना है। इसके नतीजे 8 दिसंबर को आएंगे। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट पर एक ओर जहां समाजवादी पार्टी ने साख बचाने के लिए डिंपल यादव को मैदान में उतारा है,तो वहीं भारतीय जनता पार्टी ने रामपुर और आजमगढ़ के बाद सपा का एक और मजबूत किला भेदने के लिए रघुराज शाक्य को मैदान में उतारा है। ऐसे में कहा जा रहा है कि शाक्य डिंपल यादव को हरा समाजवादी पार्टी का किला मैनपुरी को ढ़हा सकते हैं। वहीं सपा के लिए अपना गढ़ बचने की चुनौती है।

 

पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी आजमगढ़ लोकसभा सीट गंवा चुकी है,लेकिन इस चुनाव में पार्टी अपने संस्थापक मुलायम सिंह यादव की विरासत बचाने की लड़ाई में किसी भी तरह उससे पिछड़ने को तैयार नहीं है। इसलिए कभी ‘दूध की जली’ मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीती दिखाई देती है और कभी नहले पर दहला मारने के फेर में है। समाजवादी पार्टी इस झांसे में नहीं ही रहना चाहती कि इस उपचुनाव में तो मुलायम के निधन से उनके प्रति उमड़ी सहानुभूति लहर ही जीत दिला देगी। चूंकि भाजपा व सपा दोनों में कोई किसी से कम नहीं है, इसलिए सर्दियों के इस मौसम में उत्तर प्रदेश में चुनावी मौसम गरमा गया है।

 

इस उपचुनाव की घोषणा हुई नहीं कि भाजपा की ओर से कहा जाने लगा कि इस बार वह पूरी ताकत से लड़ेगी और सपा से यह सीट छीनकर ही दम लेगी, जो राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है । क्योंकि पिछले चुनाव यानी साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा बिना पूरी ताकत लगाए ही समाजवादी पार्टी के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हुई थी । लेकिन मैनपुरी में तब समाजवादी पार्टी ने मुलायम सिंह यादव के आखिरी चुनाव का इमोशनल कार्ड खेलकर जीतने में कामयाबी हासिल थी,लेकिन इस बार भाजपा का आत्मविश्वास चरम पर है। क्योंकि भाजपा ने पहले ही सपा के गढ़ आजमगढ़ और रामपुर को ढहा दिया है। इसी के बूते मैनपुरी को ढहाना चाहती है जो आसान नहीं है।

मैनपुरी सीट 1996 से सपा का गढ़ मानी जाती है। इस सीट पर कभी भी भाजपा ने विजय नहीं दर्ज की है। मुलायम सिंह यादव साल 1996 में इसी सीट से लोकसभा पहुंचे थे। इसके बाद 1998 और 1999 का चुनाव सपा के टिकट पर बलराम यादव ने जीता था। 2004 में मुलायम सिंह यादव एक बार फिर जीते, लेकिन कुछ दिन बाद ही मुख्यमंत्री बनने के कारण मुलायम सिंह यादव ने सीट छोड़ दी थी। इसके बाद हुए उपचुनाव में धर्मेंद्र यादव जीते थे। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव फिर जीते थे।साल 2014 का लोकसभा चुनाव मुलायम सिंह यादव ने दो सीटों (मैनपुरी और आजमगढ़) लड़ा और दोनों पर जीत हासिल की थी, जिसके बाद मुलायम ने मैनपुरी सीट छोड़ दी, जिस पर हुए उपचुनाव में तेज प्रताप यादव जीते थे। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मुलायम फिर मैनपुरी सीट से जीते थे।इसलिए राजनीतिक विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव का जादू हमेशा चला है।

इस सीट के रास्ते ही सैफई परिवार की तीन पीढ़ियों ने संसद का सफर तय किया है। मैनपुरी में चुनावी रथ पर सवारी चाहे किसी की भी रही हो, लेकिन उस रथ के सारथी हमेशा मुलायम ही रहे हैं । मुलायम सिंह यादव के जादू के सामने अन्य राजनीतिक दलों के सारे समीकरण ध्वस्त हो जाते थे,लेकिन इस बार भाजपा ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल यादव के करीबी रहे रघुराज शाक्य को मैनपुरी से अपना प्रत्याशी बनाया है। वो इसी साल फरवरी में ‘प्रसपा’ छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे । रघुराज शाक्य दो बार सांसद रह चुके हैं और वह प्रसपा के प्रदेश उपाध्यक्ष के पद पर भी रहे हैं। शाक्य 1999 और 2004 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर इटावा से लोकसभा के लिए चुने गए थे। इसके अलावा उन्होंने 2012 में सपा के टिकट पर इटावा सदर सीट से विधानसभा का चुनाव भी जीता था। उन्होंने सपा से 27 जनवरी 2017 को इस्तीफा दे दिया था। एटा, बदायूं, मैनपुरी, इटावा तथा इसके आसपास जनपदों में शाक्य समाज काफी प्रभावी है। इसलिए भाजपा ने यादव परिवार के गढ़ में सेंध लगाने के लिए जाति समीकरण को देखते हुए शाक्य समुदाय का उम्मीदवार मैदान में उतारा है।

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