राजस्थान में कांग्रेस का संकट बेशक अभी टल गया हो, लेकिन इस बीच वहां पार्टी के मतभेद जिस तरह खुलकर सामने आए और बड़े नेताओं को सरकार बचाने के लिए जिस तरह मोर्चे पर आकर जूझना पड़ा उससे साफ है कि भविष्य में भी कांग्रेस के सामने अपना कुनबा बचाने की चुनौती बनी रहेगी। राज्य में पार्टी की गुटबाजी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सचिन पायलट की नाराजगी सामने आने पर तत्काल प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय से उनके पोस्टर हटा दिये गये। हालांकि अब आलाकमान के बीच में आने पर बेशक शाम को उनके पोस्टर फिर से लगा दिये गये, लेकिन इन्हें हटाने में जो तत्परता दिखाई गई यहां तक कि आलाकमान की प्रतीक्षा भी नहीं की गई उससे साफ है कि राज्य के नेताओं के दिलों में आपसी कड़वाहट इतनी खतरनाक है कि कांग्रेस कुनबे में आगे भी शांति रहनी मुश्किल है।
सचिन पायलट के यह दावा करने पर कि 25 विधायक उनके साथ हैं और राजस्थान सरकार अल्पमत में है। कांग्रेस में खलबली मच गई। पार्टी के अंदरूनी मतभेदों से उपजे इस संकट से निपटने के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी समेत रणदीप सिंह सुरजेवाला, अजय माकन जैसे बड़े नेताओं को मोर्चे पर उतरना पड़ा
सचिन पायलट के यह दावा करने पर कि 25 विधायक उनके साथ हैं और राजस्थान सरकार अल्पमत में है। कांग्रेस में खलबली मच गई। पार्टी के अंदरूनी मतभेदों से उपजे इस संकट से निपटने के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी समेत रणदीप सिंह सुरजेवाला, अजय माकन जैसे बड़े नेताओं को मोर्चे पर उतरना पड़ा। जयपुर पहुंचे सुरजेवाला ने सचिन पायलट समेत सभी असंतुष्ट विधायकों से अपील की कि उनकी नाराजगी आलाकमान सुनेगा। कांग्रेस महासचिव प्रियंका ने गहलोत और सचिन दोनों से बात की। आखिर में मीडिया के जरिये संदेश दे दिया गया कि सरकार पर कहीं भी संकट नहीं है। सबकुछ ठीक है या मैनेज कर लिया गया है।
कांग्रेस ने अभी तो संकट टलने का संदेश दे दिया है, लेकिन राज्य में सचिन पायलट और उनके समर्थक असंतोष के जिस मोड़ पर पहुंच गए हैं वहां उन्हें मनानकर भी स्थिति समान्य कर देना आसान नहीं है। कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि पार्टी विधायकों को बैठक में बुलाने के लिए ह्विप का भय तक दिखाना पडा़। ठीक है कि सचिन पायलट अब पार्टी में ही बने रहेंगे, लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि अपने समर्थक विधायकों के लिए वित्त और गृह मंत्रालय और अपने लिए प्रदेश अध्यक्ष का जो पद वे मांग रहे हैं, उसे गहलोत गुट आसानी से पचा लेगा। मान लें कि आज के हालात में गहलोत गुट सचिन पायलट के आगे झुक जाए, फिर भी क्या गारंटी है कि आगे मतभेद नहीं रहेंगे? सवाल यह है कि मतभेदों के बीच अब यह कौन तय करेगा कि राज्य के विकास में कैस-कैसे आगे बढ़ना है? क्या हर काम में आलाकमान को ही नजर रखनी होगी? राज्य में कांग्रेस के लिए आगे काफी चुनौतियां हैं।
-दाताराम चमोली