2020 में नौ विशेषज्ञों को बड़ी धूम-धाम के साथ सरकार के विभिन्न मंत्रालयों संयुक्त सचिव बनाया। अब खबर है कि आईएएस व अन्य सेवाओं के अफसरों ने इन नौ संयुक्त सचिवों संग ऐसा असहयोग का तरीका अपनाया है कि ये विशेषज्ञ चाह कर भी अपना योगदान सरकार को नहीं दे पा रहे हैं। नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने नवीनतम् किताब ‘इडिया अनलिमिटेड: रिक्लेंमिग द लॉस्ट ग्लोरी’ में इस बात की तरह इशारा भी कर दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कड़े तेवर और उससे कहीं ज्यादा कड़ी कामकाज की शैली भी नौकरशाहों के अभेद दुर्ग को भेद पाने में विफल होती नजर आ रही है। दिल्ली के सत्ता गलियारों में बड़ी चर्चा है कि नौकरशाहों ने पीएम मोदी की सरकारी सेवाओं में विशेषज्ञ नियुक्ति करने की ‘लैटरल इन्ट्री’ स्कीम का भट्ठा बैठा डाला है। दरअसल मोदी ने देश की सत्ता पर काबिज होने के साथ ही आइएएस अफसरों पर लगाम रखने और उनके कामकाज में सुधार लाने की नीयत से केंद्र सरकार में सयुंक्त सचिव स्तर पर संबंधित विषय के विशेषज्ञों की नियुक्ति करने का निर्णय लिया था। इसे ‘लैटरल इन्ट्री स्कीम’ कहा गया। नौकाशाहों ने जितना कर सकते थे, जितना संभव था, इस स्कीम का विरोध किया। पीएम लेकिन माने नहीं। 2020 में नौ विशेषज्ञों को बड़ी धूम-धाम के साथ सरकार के विभिन्न मंत्रालयों संयुक्त सचिव बनाया। अब खबर है कि आईएएस व अन्य सेवाओं के अफसरों ने इन नौ संयुक्त सचिवों संग ऐसा असहयोग का तरीका अपनाया है कि ये विशेषज्ञ चाह कर भी अपना योगदान सरकार को नहीं दे पा रहे हैं।
नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने नवीनतम् किताब ‘इडिया अनलिमिटेड: रिक्लेंमिग द लॉस्ट ग्लोरी’ में इस बात की तरह इशारा भी कर दिया है। खबर गर्म है कि सभी नौ विशेषज्ञ नौकरशाहों के रवैये से तंग आकर इस्तीफा देने का मन बना चुके हैं। इनमें से कार्मस मिनिस्ट्री में तैनात किए गए अरुण गोयल ने तो अपना इस्तीफा दे भी डाला है। खबर यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी की इस स्कीम को हाल-फिलहाल के लिए आगे नहीं चलाने का निर्णय ले लिया गया है।