जिस तरह से एकनाथ शिंदे ने एक झटके में ठाकरे परिवार और शिव सेना के वजूद को हिला दिया है, उससे ठाकरे सरकार को इस संकट से निकलने का रास्ता ही नहीं सूझ रहा है। हालात यह है कि इस्तीफे से पहले ही उद्धव मुख्यमंत्री आवास छोड़ चुके हैं
महाराष्ट्र की उद्धव सरकार वेंटिलेटर पर है और उसमें ऑपरेशन लोटस के कामयाब होने की आवाज बीजेपी को बीच-बीच में सुनाई दे रही है। एकनाथ शिंदे अपने रिजॉर्टवीर विधायकों के साथ पूरी तरह कॉन्फिडेंट हैं। एक कहावत है ‘बंद मुट्ठी तो लाख की, खुल गई तो खाक की’। महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार के साथ इस समय यही हो रहा है। क्योंकि महाराष्ट्र की राजनीति में किंग मेकर रहे बाला साहेब ठाकरे परिवार के बेटे उद्धव ठाकरे ने जब ढाई साल पहले, किंग मेकर की जगह किंग बनने का रास्ता चुना तो उसी समय बंद मुट्ठी खुल गई थी और जिस तरह से एकनाथ शिंदे ने एक झटके में ठाकरे परिवार और शिव सेना के वजूद को हिला दिया है, उससे तो उन्हें निकलने का रास्ता ही नहीं सूझ रहा है। हालात यह है कि इस्तीफे से पहले ही उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री आवास छोड़ चुके हैं और उनकी भावनात्मक अपील के बाद भी बगावत का सिलसिला रूकने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। अब इसकी आंच विधायकों से बढ़कर शिवसेना सांसदों तक पहुंच गई है।
दरअसल, बीते करीब ढाई साल से चली आ रही उद्धव ठाकरे सरकार को यह झटका उनके ही करीबी नेता एकनाथ शिंदे ने दिया है। शिंदे के बारे में जानने वाले लोग बताते हैं कि वह शिवसेना के संकटमोचक रहे हैं। ऐसे में उनकी ओर से दिए गए झटके से शिवसेना का संभलना मुश्किल होगा। एकनाथ शिंदे की शिवसेना पर कितनी पकड़ रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह बाल ठाकरे के भी बेहद करीबी रहे हैं। यही नहीं एक दौर में जब नारायण राणे और राज ठाकरे जैसे दिग्गजों ने बगावत की थी तो एकनाथ शिंदे ही शिवसेना के संकटमोचक बनकर उभरे थे और पार्टी को बड़ी टूट से बचाया था। मुंबई के नजदीक ठाणे से आने वाले एकनाथ शिंदे को मुंबई और उसके आस-पास के क्षेत्रों में गहरी पकड़ रखने वाला लीडर माना जाता है। वह लगातार 4 बार महाराष्ट्र विधानसभा के लिए चुने जा चुके हैं। 2014 में शिवसेना ने उन्हें विधायक दल का नेता बनाया था। एकनाथ शिंदे को कार्यकर्ताओं में पकड़ के साथ ही धनबल और बाहुबल के लिए भी जाना जाता रहा है। उनके बेटे श्रीकांत शिदे भी शिवसेना से ही लोकसभा सांसद हैं।
शिवसेना के सूत्रों का कहना है कि एकनाथ शिंदे कुछ वक्त से पार्टी में किनारे लगाए जाने से नाराज थे। खासतौर पर एनसीपी के नेताओं को तवज्जो मिलने से एक बड़ा धड़ा शिवसेना की लीडरशिप से खफा रहा है। इन नेताओं का मानना रहा है कि एनसीपी से हमने लंबे समय तक जमीन पर मुकाबला किया है और गठबंधन के बाद से अपनी साख बचाना मुश्किल हो रहा है। वैचारिक संकट के साथ ही सियासी महत्व को लेकर भी असंतोष रहा है। ऐसे में इस बड़े गुट ने एकनाथ शिंदे के समर्थन में बगावत करने का फैसला ले लिया। यह संकट उद्धव सरकार के लिए कितना बड़ा है। इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि सरकार में शामिल तीन मंत्री भी बागियों में शामिल हैं।
एकनाथ शिंदे ज्यादातर पुराने नेताओं को लेकर निकले हैं। वह जिन नेताओं को लेकर सूरत गए हैं, उनमें से ज्यादातर कई बार विधायक रह चुके हैं और पार्टी की स्थापना के दौर से ही साथ रहे हैं। कल्याण डोंबिवली से उनके बेटे सांसद हैं। इनमें से कई नेताओं की एनसीपी से नाराजगी है, लेकिन पार्टी प्रमुख की ओर से सुनवाई न होने पर नाराजगी बढ़ती चली गई। कहा जा रहा है कि उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे अब सरकार में हैं, ऐसे में असंतुष्टों के लिए एकनाथ शिंदे नेता बनकर उभरे हैं। गौरतलब है कि बागियों का नेतृत्व शिवसेना के कद्दावर नेता नगर विकास मंत्री एकनाथ शिंदे कर रहे हैं। बीते सोमवार को विधान परिषद चुनावों के बाद मध्यरात्रि में ही शिंदे और उनके साथी चुपचाप निकल गए। किसी को कानों-कान खबर तक नहीं लगी। गुजरात की सीमा पार करने के बावजूद किसी को कोई भनक नहीं लगी। पुलिस का गुप्तचर विभाग फेल हो गया। रात्रि में वे ‘नॉट रिचेबल’ होने से तलाश हुई और फिर पता चला कि वे सूरत में पंचसितारा होटल ‘ला मेरिडियन’ में हैं।
मंगलवार सुबह से ही अटकलें तेज हो गईं। रात में सूरत एयरपोर्ट पर स्पाइस जेट के चार्टर्ड विमान तैयार रखे गए थे। मध्यरात्रि को विमान निकले और गुवाहाटी हवाई अड्डे पर उतरे। उनकी अगुवानी असम बीजेपी के विधायक सुशांत बोरगोहेन और सांसद पल्लब लोचन ने की। बोरगोहेन ने तो यहां तक कहा कि वह विधायकों को लिवा लाने के लिए सूरत गए थे। ये विधायक फिलहाल गुवाहाटी के आलीशान होटल रैडिसन ब्लू में ठहरे हुए हैं। होटल की सुरक्षा व्यवस्था बहुत चाकचौबंद की गई है। मुंबई से चुपचाप सूरत और वहां से नाटकीय तरीके से गुवाहाटी पहुंचने से पता चलता है कि ‘ऑपरेशन लोटस’ की योजना बहुत पहले बनी थी।
अभी जो खबरें छनकर आ रही हैं, उनसे पता चलता है कि इस योजना का खाका करीब दो महीने पहले बुना गया, लेकिन इसे बेहद गोपनीय रखा गया। कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई में इस योजना पर अमल हुआ। गृहमंत्री अमित शाह इस योजना के मूल शिल्पकार हैं। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की निगरानी में योजना की हर बारीकी तय की गई। सब कुछ तय योजना के अनुसार ही हुआ। इन सबके बीच कांग्रेस और एनसीपी खेमे इस समय अपना किला बचाने में जुट गए हैं। कमलनाथ को कांग्रेस ने इसी काम के लिए महाराष्ट्र भेजा है। उन्होंने कांग्रेस विधायकों से बैठक की। सभी कांग्रेस विधायक उसमें मौजूद थे। एनसीपी की बैठक में भी उनके सभी विधायक आए। कमलनाथ और पवार दोनों राजनीतिक ‘ट्रबल शूटर’ माने जाते हैं। असल में कमलनाथ ने ही सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।
इस हाल में बीजेपी अपना दावा पेश करेगी। उसके पास 106 विधायक हैं। एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना के 37 विधायकों के अलावा 7 निर्दलीय विधायक भी हैं। वे बीजेपी को अपने समर्थन का पत्र राज्यपाल को दे सकते हैं। इस तरह यह संख्या 150 हो जाती है। विधानसभा की कुल 288 सीटों में से एक रिक्त है। इस तरह बहुमत के लिए केवल 144 सीटों की जरूरत है। बीजेपी और एकनाथ शिंदे गुट तथा उनके समर्थक निर्दलियों को मिलाकर यह संख्या पूरी हो जाती है तो फिर भी सरकार वेंटिलेटर पर ही रहेगी। बहरहाल स्थिति साफ नहीं है। कुछ भी हो सकता है। विधानसभा कायम रखकर राष्ट्रपति शासन भी लगाया जा सकता है। बाद में सरकार की संभावना को टटोला जा सकता है। दूसरा विकल्प यह है कि बागी विधायक इस्तीफे देकर उपचुनावों का सामना करें। वे यदि चुनाव जीतते हैं तो वे बीजेपी के साथ जा सकते हैं। अब देखना होगा कि महाराष्ट्र की सियासत का ऊंट किस करवट बैठता है।
शिंदे का असर पुराने बागियों से कहीं ज्यादा
ऐसा नहीं है कि शिवसेना में पहली बार बगावत हुई है। बाला साहेब ठाकरे के समय ही उनके भतीजे राज ठाकरे ने शिव सेना से अलग होकर महाराष्ट्र नव निर्माण सेना बनाई थी। इसके अलावा इस समय भाजपा में शामिल नारायण राणे और एनसीपी नेता छगन भुजबल भी शिव सेना से बगावत कर चुके हैं। लेकिन इन पिछली बगावत और शिंदे की बगावत में सबसे बड़ा अंतर संगठन में पकड़ का है। उद्धव ठाकरे के दौर में शिंदे शुरू से पार्टी में नंबर 2 रहे हैं। और वह विधायक दल के नेता भी थे। इसके अलावा बीमारी और राजनीति में कम सक्रिय रहने की वजह से उद्धव ठाकरे की कार्यकर्ताओं से दूरी ने भी शिंदे को संगठन के स्तर पर मजबूत किया है। यही कारण है कि बगावत इस स्तर पर पहुंच गई है, कि ठाकरे परिवार का रसूख घटता दिख रहा है। जिसके जरिए बाला साहेब ठाकरे हर संकट से निकल जाया करते थे।
दल-बदल के लिए इतनी संख्या जरूरी
उद्धव ठाकरे के लिए एकनाथ शिंदे की बगावत से सबसे बड़ा खतरा, शिव सेना पर अधिकार को लेकर हो गया है। क्योंकि शिंदे के दावे के आधार पर उनके पास 37 से ज्यादा शिव सेना के विधायकों का समर्थन है। इस आधार पर दल-बदल कानून के दायरे में शिंदे गुट नहीं आएगा। और उसे नए दल के रूप में मान्यता भी मिल सकती है। जिस तरह शिंदे बार-बार यह कह रहे हैं कि बाला साहेब ठाकरे की विरासत बढ़ाएंगे, उससे साफ है कि आने वाले समय में असली शिव सैनिक होने का दावा ठोकेंगे। इसी तरह 19 सांसदों वाली शिव सेना के नाराज सांसदों को शिंदे गुट में शामिल होने के लिए 13 सांसदों की जरूरत पड़ेगी। अगर ऐसा होता है तो उद्धव ठाकरे पूरी तरह से शिव सेना से अपना नियंत्रण खो चुके होंगे। इसकी बानगी विधायक संजय शिरसाट ने उद्धव ठाकरे को 3 पेज के लिए खुले लेटर में पेश कर दी है। उन्होंने लिखा है कि ढाई सालों में हमारे लिए मातोश्री के दरवाजे बंद किए गए। मातोश्री में हमें घंटों तक इंतजार कराया गया है। शिंदे ने कहा कि मंत्रालय में भी आप नहीं मिलते थे। शिंदे ने कहा कि हम ऊब गए और आपका साथ छोड़ दिया।