कोरोना महामारी से देश और दुनिया पर मुसीबतों का पहाड़ टूटा हुआ है। कहीं मल्टीनेशनल कंपनियां बंद पड़ी हैं, तो कहीं ध्याड़ी मजदूरों को मजदूरी नहीं मिल पा रही है।शादियों और धार्मिक कार्यक्रमों के टलने से पश्चिम बंगाल के कोलकाता और आसपास के क्षेत्रों में पुजारियों की आमदनी का जरिया खत्म हो गया है। उनमें से कई जीवन-यापन के लिए दूसरे विकल्पों का सहारा ले रहे हैं। महानगर से सटे आगरपाड़ा में एक पुजारी सुशांत चक्रवर्ती अपने क्षेत्र में सब्जियां बेच रहे हैं। उनका कहना है कि कभी ऐसा नहीं सोचा था कि ऐसे दिन भी आएंगे। इसी तरह के गोराबाजार में शिव मंदिर के पुजारी राम तिवारी मास्क, सैनिटाइजर, दस्ताने और अन्य सामान बेच रहे हैं।
पुजारियों का कहना है कि पिछले कुछ दशकों से मैं जिन घरों में पूजा-पाठ के लिए जाता था, अब वे बुलाते नहीं है। मार्च से ही मैं खाली बैठा हूं। घर में चार लोग हैं। आखिरकार मैंने ठेले पर सब्जी बेचने का फैसला किया। चक्रवर्ती ने कहा कि मार्च के पहले हर महीने 35,000 से 40,000 रुपये के बीच आमदनी हो जाती थी। अब मुश्किल से रोज सौ रुपए रुपये कमा पाता हूं।
कमरहाटी में हनुमान मंदिर के कमेटी सदस्य विनोद झा ने कहा कि प्रबंधन ने तीन में से केवल एक पुजारी को रखने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि भक्तों की संख्या कम हो रही है और आमदनी भी घट रही है ।
हमने दो पुजारियों को हटाने और केवल एक पुजारी को रखने का फैसला किया है। दक्षिण कोलकाता के चक्रबेरिया इलाके में पुजारी मोंटू चक्रवर्ती का मानना है कि दुर्गा पूजा के दौरान स्थिति बेहतर हो जाएगी। उन्होंने कहा कि कुछ दुर्गा समितियों ने मुझे आश्वस्त किया कि वे मुझे आमंत्रित करेंगे। अब उन्हीं से आस है। मेरी आमदनी घटकर 6,000 रुपए प्रतिमाह रह गई है।