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धर्मांधता की जकड़ में शिक्षा का मंदिर

काशी विश्वविद्यालय मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद में आग में घी डालने का काम एक यूट्यूब चैनल में हुई बहस ने कर डाला है। लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत चंदन ने इस बहस में हिस्सा लेते हुए ख्याति प्राप्त साहित्यकार कमलेश्वर की पुस्तक ‘कितने पाकिस्तान’ के हवाले से कुछ ऐसा कह डाला जिससे उग्रपंथी हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को कथित रूप से ठेस पहुंच गई। एक तरफ प्रोफेसर चंदन की जान पर संकट तो दूसरी तरफ उन पर लखनऊ पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर डाला है

वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद का मुद्दा इन दिनों देशभर में छाया हुआ है। न्यायालय के आदेश पर वहां सर्वे कर सच का पता लगाया जा रहा है। प्रदेश और केंद्र की सरकार वाराणसी में सांप्रदायिक माहौल को बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इसी दौरान एक डिबेट में लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर का काशी विश्वनाथ मंदिर पर टिप्पणी करना विवाद का केंद्र बन गया है। इस चलते वाराणसी के मंदिर-मस्जिद का मुद्दा लखनऊ यूनिवर्सिटी में जा पहुंचा है। हालात यह है कि यहां छात्रों के दो गुट आमने-सामने आ गए हैं। एक गुट वह है जो विवाद का केंद्र बने प्रोफेसर के कमरे के आसपास 24 घंटे पहरा देकर उनकी सुरक्षा कर रहे हैं तो दूसरी तरफ इसी विश्वविद्यालय के छात्र उनके लिए सुरक्षा का खतरा बन कर सामने आए हैं। पुलिस अगर बीच बचाव न करती तो आरोपी प्रोफेसर के साथ ‘मॉब लिंचिंग’ की घटना भी घट सकती थी। फिलहाल, प्रोफेसर के खिलाफ हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप लगाकर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया गया है। जबकि प्रोफेसर के साथ हुए दुर्व्यवहार पर कोई मामला दर्ज न किए जाने से सरकार पर सवालिया निशान लग रहे हैं। इस मामले में अभी तक आरोपी छात्रों के विरुद्ध न तो पुलिस की ओर से कानूनी कार्रवाई हुई है और न विश्वविद्यालय प्रशासन ने कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की है।

10 मई को एक यूट्यूब चैनल ‘सत्य हिंदी डॉट कॉम’ पर ऑनलाइन बहस हुई। जिसमें बहस के दौरान दलित चिंतक और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर रविकांत चंदन ने लेखक स्वाधीनता सेनानी और राजनेता पट्टाभि सीतारमैया की किताब ‘फेदर्स एंड स्टोन्स’ का जिक्र किया। इसमें औरंगजेब के काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने और ज्ञानवापी मस्जिद को बनाने की एक कहानी है। यही नहीं बल्कि प्रोफेसर ने पट्टाभि सीतारमैया की उस किताब के पेज की फोटो भी ट्वीट किए हैं। ट्वीट में प्रोफेसर चंदन ने लिखा है कि कमलेश्वर ने अपने विख्यात उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ में काशी विश्वनाथ मंदिर के औरंगजेब द्वारा तोड़े जाने की घटना का जिक्र पट्टाभि सीतारमैया की किताब के जरिये किया है। मैंने इसी का हवाला दिया है। जिन्हें गलतफहमी है वे देखें। संवाद के लिए पढ़ना और एक-दूसरे से सीखना अच्छा होता है।

किताब के अनुसार ‘एक बार औरंगजेब बनारस के करीब से गुजर रहा था। सभी हिंदू दरबारी अपने परिवार के साथ गंगा स्नान और विश्वनाथ दर्शन के लिए काशी आए। विश्वनाथ दर्शन कर जब लोग बाहर आए तो पता चला कि कच्छ के राजा की एक रानी गायब है। खोज की गई तो मंदिर के नीचे तहखाने में वस्त्राभूषणविहीन, भय से त्रस्त रानी दिखाई पड़ी। जब औरंगजेब को पंडों की ये काली करतूत पता चली तो वे बहुत क्रुद्ध हुआ और बोला कि जहां मंदिर के गर्भ गृह के नीचे इस प्रकार की डकैती और बलात्कार हो, वो निस्संदेह ईश्वर का घर नहीं हो सकता। उसने मंदिर को तुरंत ध्वस्त करने का आदेश जारी कर दिया। इसके बाद किताब में लिखा है कि विश्वनाथ मंदिर तोड़े जाने के औरंगजेब के आदेश का तत्काल पालन हुआ लेकिन जब ये बात कच्छ की रानी ने सुनी तो उन्होंने शहंशाह से कहलवा भेजा कि इसमें मंदिर का क्या दोष है, दोषी तो वहां के पंडे हैं। रानी ने इच्छा प्रकट की कि मंदिर को दोबारा बनवा दिया जाए। लेकिन औरंगजेब के लिए अपने धार्मिक विश्वास के कारण फिर से नया मंदिर बनवाना संभव नहीं था। इसका जिक्र उसने अपने बनारस फरमान में भी किया है। इसलिए उसने मंदिर की जगह मस्जिद खड़ी करके रानी की इच्छा पूरी की।’

हालांकि उस किताब के हवाले से प्रोफेसर रविकांत चंदन ने अपनी बात कही और साथ में यह भी कहा कि यह कहानी है या इसमें तथ्य कितना है, फैक्ट कितना है, यह किसी को नहीं मालूम है। कहा जा रहा है कि इसके बाद किताब का और
सीतारमैया का नाम हटा कर छोटी सी क्लिप डाल कर वीडियो को चलाया गया। इसके बाद टीचर्स एसोसिएशन के ग्रुप पर अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया। आरोप है कि आरएसएस से जुड़े लोगों ने प्रोफेसर रविकांत पर व्यक्तिगत टिप्पणी भी की। एबीवीपी और हिंदूवादी विश्वविद्यालय परिसर में घुस गए। हिंदी विभाग को घेर लिया और प्रोफेसर चंदन के खिलाफ हिंसात्मक नारेबाजी की गई। बताया तो यहां तक जा रहा है कि प्रोफेसर चंदन इतने भयभीत हो गए कि उन्हें विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर के कार्यालय में शरण लेनी पड़ी। कहा तो यहां तक जा रहा है कि इस दौरान कुछ छात्रों ने उनकी मॉब लिंचिंग करने की भी कोशिश की।

लखनऊ पुलिस ने उपद्रवियों को गिरफ्तार करने की बजाय प्रोफेसर चंदन के खिलाफ ही रिपोर्ट दर्ज कर ली। रविकांत चंदन पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) द्वारा मुकदमा दर्ज करा दिया गया है। इसी मामले में 10 मई की शाम हसनगंज थाने में रविकांत चंदन के विरुद्ध धारा 153-ए (धर्म, मूलवंश, भाषा, जन्म-स्थान, निवास-स्थान इत्यादि के आधारों पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता का संप्रवर्तन और सौहार्द्र बने रहने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले कार्य करना।), धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना), धारा 505 (2) ऐसी सामग्री के प्रकाशन तथा प्रसार को अपराध बनाती जिससे विभिन्न समूहों के बीच द्वेष या घृणा उत्पन्न हो सकती है और सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम 2008 की धारा 66 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया।

फिलहाल, इस मामले में सियासी मोड़ आ गया है। जहां एक तरफ अखिल भारतीय स्टूडेंट एसोसिएशन और प्रबुद्ध समाज का एक बड़ा वर्ग रविकांत चंदन के साथ खड़ा है तो वहीं आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष और भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद भी उनके समर्थन में आ गए हैं। उन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर) पर लिखा है ‘क्या ज्ञान का ठेका चंद जातियों ने ही ले रखा है? वंचितों के मुद्दे पर मुखर एलयू प्रोफेसर रविकांत के खिलाफ एफआईआर, ‘गोली मारो ़ ़ ़को’ जैसी नारेबाजी का मतलब बहुजन विचार की हत्या है। हम साथ खड़े हैं, किसी कीमत पर अन्याय नहीं होने देंगे। अराजकता फैलाने वालों को गिरफ्तार किया जाए।’

प्रोफेसर रविकांत चंदन का कहना है कि उनके खिलाफ दुष्प्रचार किया गया क्योंकि वह दलित समुदाय से आते हैं। मैं लिखता-पढ़ता और बोलता हूं। मुझे लगता है कि मैं इनके निशाने पर पहले से ही था। इस मामले में एबीवीपी ने धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। एबीवीपी कार्यकर्ताओं की मांग थी कि प्रोफेसर रविकांत माफी मांगें। इसके बाद भी रविकांत नरम हुए और कहा कि अगर आपकी भावनाएं आहत हुई हैं तो मैं खेद प्रकट करता हूं। प्रोफेसर रविकांत के अनुसार माफी मांगने के बाद उनसे कहा गया था कि मामला खत्म हो गया है, फिर मैं घर पर आ गया तो मेरे खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया। प्रो ़रविकांत चंदन के अनुसार उन्होंने खुद पर हुए जानलेवा हमले की शिकायत हसनगंज पुलिस में की है। लेकिन लिखित शिकायत के बावजूद भी आरोपी छात्रों के विरुद्ध अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। प्रोफेसर रविकांत अपने ऊपर हुए हमले की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए पुलिस के आला-अधिकारियों के चक्कर लगा रहे हैं।

हिंदी विभाग में प्रोफेसर रविकांत चंदन ने इस बाबत एक शिकायती पत्र भी लिखा है। जिसमें उन्होंने कहा है कि एक बहस के दौरान उनके द्वारा दिए गए बयान को एबीवीपी और कुछ असामाजिक तत्वों ने तोड़-मरोड़ कर पेश किया, ताकि उनके खिलाफ नफरत का माहौल बनाया जा सके। उनके अनुसार भीड़ में आए छात्र ‘देश के गद्दारों को गोली मरो सा . . .को’ जैसे उग्र नारे लगा रहे थे। पुलिस को दी गई अपनी शिकायत में यह भी कहा है कि उनको और उनके परिवार की जान को खतरा है। आखिर वही हुआ जिसका डर था। गत 18 मई को सिक्योरिटी गार्ड के साथ रविकांत चंदन क्लास लेने जा रहे थे, तो उसी दौरान उन्हें किसी ने थप्पड़ जड़ दिया। शिक्षक रविकांत का आरोप है कि प्राक्टर ऑफिस के सामने ‘समाजवादी छात्र सभा’ के इकाई अध्यक्ष कार्तिक पांडेय ने उनके साथ मारपीट की और उन्हें जातिगत गालियां दी। इसका वीडियो वायरल हो रहा है, जिसके कुछ लोग आपस में धक्का-मुक्की करते हुए देखे जा सकते हैं। विश्वविद्यालय परिसर में अध्यापक पर कथित हमला करने वाले छात्रों के विरुद्ध अभी तक कोई कार्रवाई नहीं होना सिद्ध कर रहा है कि सरकार आरोपियों को शह दे रही है। प्रो ़रविकांत चंदन ने कहा है कि उनके खिलाफ प्रदर्शन उनकी निजी स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ है।

इस मामले में आल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) जैसे छात्र संगठन भी उतर आए है। आइसा के प्रदेश अध्यक्ष आयुष ने इस घटना की निंदा करते हुए कहा है कि आज एबीवीपी ने गुरु-शिष्य की मर्यादा पर हमला किया है। जिस तरह एबीवीपी ने दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू और जामिया में हिंसा का माहौल बनाया है वैसा ही माहौल लखनऊ विश्वविद्यालय में बनाने का प्रयास किया जा रहा है। जबकि नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) की सदफ तसनीम का कहना है कि अफसोस की बात है कि विश्वविद्यालय परिसर में पुलिस- प्रशासन की मौजूदगी में भी एबीवीपी ने हिंसा की और हिंसक छात्रों के खिलाफ कोई कार्रवाई अभी तक नहीं हुई है। सदफ तसनीम ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सवाल किया है कि क्या वह लखनऊ विश्वविद्यालय की संपत्ति का नुकसान करने वालों को वसूली का नोटिस भेजेंगे?

बात अपनी-अपनी
यह विवाद हमारे चैनल से ही हुआ था। हालांकि प्रोफेसर रविकांत चंदन को पट्टाभी सीतारमैया की किताब के उस सबूत का हवाला देने की जरूरत नहीं थी। इससे उन्हें बचना चाहिए था। हम पूर्व में लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के पदाधिकारी रह चुके हैं। तब एबीवीपी छात्र संगठन की कोई हैसियत नहीं थी। इस मामले में एबीवीपी और कुलपति ने बड़ी भूमिका निभाई है। उन्होंने पूरे मामले का भगवाकरण कर दिया। आरोपियों की तो एफआईआर तक दर्ज करा दी गई जबकि प्रोफेसर साहब की एफआईआर न होना ही कई सवाल खड़े कर रहा है।
अंबरीश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

जो भी कुछ प्रोफेसर रविकांत ने व्यक्त किया उससे आप सहमत या असहमत हो सकते हैं, परंतु किसी को भी उसके द्वारा व्यक्त किए विचारों को लेकर अराजकता और हिंसा का अधिकार नहीं है। जो भी घटना घटित हुई है वो निंदनीय है और लोकतंत्र में इस प्रकार की अराजकता का कोई स्थान नहीं हो सकता।
मुदित माथुर, वरिष्ठ पत्रकार

 

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