[gtranslate]
Country

टीम ‘यूपी कांग्रेस’ का भविष्य

विगत दिनों कांग्रेस हाईकमान ने गांधी परिवार के एक और सदस्य प्रियंका गांधी को राजनीति की मुख्य धारा में उतारने के साथ ही उन्हें दो महत्पवूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी हैं। पहली कांग्रेस महासचिव के पद की और दूसरी जिम्मेदारी है लोकसभा चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान। कयास लगाए जा रहे हैं कि भविष्य में प्रियंका को न सिर्फ समस्त यूपी को पुनर्जीवित करने की जिम्मेदारी सौंपी जायेगी अपितु भविष्य में वे कांग्रेस की रीढ की हड्डी भी साबित हो सकती हैं। रही बात लोकसभा चुनाव से ठीक तीन माह पूर्व अहम जिम्मेदारी सौंपे जाने पर कांग्रेस में बदलाव की तो प्रियंका भले ही कोमा में जा चुकी यूपी कांग्रेस के लिए आक्सीजन बनकर आयी हों लेकिन तीन महीनों में किसी प्रकार के करिश्मे की उम्मीद रखना यूपी कांग्रेसियों के लिए बेमानी होगा। टीम ‘यूपी कांग्रेस’ में यदि परिवर्तन की बात करें तो जल्द ही परिवर्तन देखने को मिले तो कोई आश्चर्य नही होना चाहिए क्योंकि पार्टी में अहम जिम्मेदारी संभालते ही प्रियंका गांधी ने संकेत दे दिया है कि टीम ‘यूपी कांग्रेस’ में युवाओं का जोश ही कोमा में पहुंच चुकी टीम यूपी कांग्रेस में जान फूंक सकती है।
प्रियंका के लिए यूपी कांग्रेस में जान फूंकना भी कोई आसान काम नही होगा क्योंकि तमाम वरिष्ठ कांग्रेसी यूपी कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं और प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर के नेतृत्व में जो टीम है उसमें किसी प्रकार का करिश्मा करने की क्षमता नही के बराबर है। अब यह भी जान लीजिए कि आखिर यूपी की 80 सीटों में से अधिक से अधिक सीटों पर कब्जा करने के लिए कांग्रेस को किस स्तर का परिश्रम करना होगा। विगत लोकसभा चुनाव के आंकडे़ उठाकर देख लीजिए। 80 में से 35 सीटों पर बसपा दूसरे स्थान पर थी तो 31 सीटों पर सपा को दूसरा स्थान मिला था। अपना दल के साथ ही कुछ सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी कमाल दिखाया था। यानी हर बार दान में मिलने वाली रायबरेली और अमेठी सीट को यदि छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस यूपी की 80 सीटों में कहीं टिकती नजर नही आ रही है। विगत चुनाव में उसकी स्थिति इतनी अधिक खराब थी कि कुछ नयी-नवेली पार्टियों ने भी उसे पछाड़ दिया था।
ऐसी स्थिति में सिर्फ प्रियंका को लेकर यूपी फतह की बात करना बेमानी सा लगता है।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के भविष्य को लेकर पिछले दिनों हमारी मुलाकात प्रदेश कांग्रेस के एक पुराने नेता से हो गयी। विवादों से बचने के लिए पहले उन्होंने मुझसे यह शर्त रखी कि उनका नाम कहीं नहीं आना चाहिए। भरोसा दिलाए जाने के बाद बेबाकी से बोले, ‘यूपी की जनता अब चालाक हो गयी है लिहाजा चाहें प्रियंका को लाकर खड़ा कर दो या फिर किसी अन्य बडे़ नेता को जब तक मौजूदा परिस्थितियों के अनुसार नए सिरे से रणनीति नही बनायी जाती यूपी की नैया पार होने वाली नही। इससे अधिक लापरवाही और क्या हो सकती है कि पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस लगभग पूरी तरह से साफ हो गयी थी फिर भी अभी तक पार्टी हाई कमान की तरफ से प्रत्याशियांे का चयन तो दूर की बात अभी तक यही तय नही हो पाया है कि आखिर पार्टी यूपी में कितनी सीटों पर चुनाव लडे़गी और किन दलों के साथ गठबन्धन करके। होना तो यह चाहिए था कि यदि कांग्रेस को यूपी में अपनी पकड़ बनाने का इरादा था तो उसे अन्य दलों की परवाह किए बगैर ही तीन से चार माह पहले ही प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर देनी चाहिए थी ताकि प्रत्याशी अपने-अपने लोकसभा क्षेत्र में जाकर अपनी और पार्टी की पहचान को पुनः स्थापित कर सकता लेकिन पार्टी की तरफ से कोई संकेत तक नजर नही आ रहे।’
उपरोक्त समस्त परिस्थितियों पर गौर करते हुए वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव पर यदि नजर दौड़ाएं और कांग्रेस की मौजूदा स्थिति का उससे आंकलन करें तो वास्तविकता में कांग्रेस इस बार के लोकसभा चुनाव की दौड़ में भी दूर-दूर तक नजर नही आती। पिछले लोकसभा चुनाव की लगभग 65 सीटें (यूपी की 80 सीटों में से) ऐसी थीं जिस पर सपा और बसपा दूसरे नम्बर पर रही थीं। बसपा 34 सीटों पर जबकि सपा 31 सीटों पर भाजपा के बाद दूसरे नम्बर पर थीं। शेष 15 सीटों में से अधिकतर सीटों (रायबरेली और अमेठी जैसी सीटों को छोड़कर) पर दूसरा नम्बर निर्दलीय और कुछ छोटे दल के प्रत्याशियों का था। ऐसी स्थिति को देखकर तो ऐसा नहीं लगता है कि आगामी वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस के हाथ कुछ खास लगेगा।
अब रही बात मौजूदा समय में लोकसभा चुनाव तैयारियों को लेकर तो इस बार प्रदेश कांग्रेस अपने प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर की अगुवाई में दलितों और मुसलमानों को साधने में पूरा जोर लगा रही है। राजधानी लखनऊ की सड़कों पर भले ही प्रदेश कांग्रेस की गतिविधियां नजर न आ रही हों लेकिन गांव-देहातों में कांग्रेस पूरा जोर लगा रही है। सभी राजनीतिक दल यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि ग्रामीण अंचलों से ही सर्वाधिक मतदाता मतदान के लिए जोश में रहता है। वैसे तो कांग्रेस फुल फार्म में आने के लिए विधानसभा चुनाव परिणामों पर नजर गड़ाए हुए है लेकिन इस बार प्रदेश कांग्रेस के कार्यकर्ता अपने प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर की अगुवाई में अभी से जुट गए हैं। प्रदेश अध्यक्ष ने अपने कार्यकर्ताओं को प्रति माह 1 हजार से 2 हजार सदस्यों को पार्टी से जोड़ने का लक्ष्य दे रखा है। पार्टी के एक नेता की मानें तो प्रदेश अध्यक्ष का पूरा ध्यान इस बार प्रचार तंत्र को मजबूत करना है। खासतौर से दलित और मुसलमानों को अधिकाधिक संख्या में पार्टी के साथ जोड़ना है। उन्हींे के बीच से एक व्यक्ति को पार्टी के प्रचार-प्रसार की कमान सौंपी जायेगी ताकि स्थानीय जनता अपने ही बीच के व्यक्ति पर विश्वास कर पार्टी को मजबूती प्रदान कर सके।
समस्त तैयारियों के बावजूद पार्टी के कुछ बडे़ नेता व पदाधिकारी यह मान बैठे हैं केन्द्रीय नेतृत्व की अनुभवहीनता के कारण इस बार भी पार्टी को कुछ खास हासिल होने वाला नहीं। स्थिति अभी भी जस की तस बनी हुई है। यूपी कांग्रेस में प्रदेश स्तर के कुछ बडे़ नेता संगठन के भीतर ही राजनीति का शिकार बन चुके हैं। मुश्किल इस बात की है इस बार हाईटेक अंदाज में चुनाव लड़ने का मन बना चुका हाई कमान पार्टी से रूठे कार्यकर्ताओं की सुनने को ही तैयार नहीं। यही वजह है कि पार्टी में उन कार्यकर्ताओं और नेताओं की बल्ले-बल्ले है जिनका योगदान पार्टी में नहीं के बराबर रहा है जबकि कांग्रेस की तन-मन से सेवा करने वाले हाशिए पर खडे़ हैं।
स्थिति यह है कि यूपी कांग्रेस में पार्टी पदाधिकारी से लेकर कार्यकर्ता तक पार्टी के लिए काम करने के बजाए आपस में ही एक-दूसरे को बाहर का रास्ता दिखाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। कर्मठ कार्यकर्ताओं की जड़ों में मट्ठा डालने के लिए तथाकथित चमचे दिल्ली में बैठे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी तक की परिक्रमा कर रहे हैं। रही बात प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर के हस्तक्षेप की तो उनकी गतिविधियां सिर्फ खानापूर्ति करती ही प्रतीत हो रही हैं। ऐसे समय में पार्टी के पदाधिकारी चाहते हैं कि राहुल गांधी के स्थान पर स्वयं सोनिया गांधी या फिर प्रियंका गांधी सीधे हस्तक्षेप करें तो बात बने लेकिन यूपी में सिर फुटौव्वल की जानकारी के बावजूद उनका लापरवाह रवैया बताता है कि कांग्रेस हाई कमान के एजेण्डे में यूपी कांग्रेस कहीं पर नहीं है या फिर कांग्रेस यह मान बैठी है कि यूपी से उसे कुछ खास हासिल होने वाला नहीं।
कांग्रेस का यह हाल पिछले लगभग तीन दशकों से ऐसा ही बना हुआ है। वैसे तो इस दौरान कांग्रेस हाई कमान कई प्रयोग कर चुका है लेकिन कांग्रेस की जमीन हर चुनाव में खिसकती चली गयी। पिछले लोकसभा चुनाव (वर्ष 2014) में यूपी से कांग्रेस को सिर्फ 2 ही सीटें मिली थीं। एक सोनिया गांधी के रूप में और दूसरी राहुल गांधी के रूप में। कहा जा रहा है कि यदि ये दोनों भी यूपी से बाहर चुनाव लड़ते तो निश्चित तौर पर कांग्रेस यूपी में बसपा के समकक्ष नजर आती। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी से बसपा का भी पत्ता साफ हो गया था लेकिन बात यदि जनाधार की हो तो बसपा के पास जमीन भी है और जनाधार भी, बस उसे अपना मत-प्रतिशत बढ़ाने के लिए अपनी नीति में परिवर्तन की आवश्यकता मात्र है।
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अकेले दम पर यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 71 पर कब्जा जमाया था। यह दीगर बात है कि उपचुनाव में उसे गोरखपुर, फूलपुर और कैराना जैसी अति महत्वपूर्ण सीटों पर मात मिल चुकी है। रही बात यूपी में नम्बर एक मानी जाने वाली समाजवादी पार्टी की बात तो उसे भी मोदी लहर के चलते सिर्फ 05 सीटें ही मिल सकी थीं। मोदी लहर का परिणाम था कि अपना दल ने भी यूपी की 02 सीटों पर कब्जा जमाया। यह तो रहा विगत लोकसभा चुनाव में समस्त राजनीतिक दलों की सीटों का लेखा-जोखा, अब बात यदि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर की हो तो पार्टी हाई कमान ने यूपी की 80 लोकसभा सीटों पर जंग की कमान एक ऐसे नेता के हाथों में दे रखी है जो स्वयं पिछला लोकसभा चुनाव हार गया था। इतना ही नहीं तमाम अवसरों पर विवादों के बावजूद राज बब्बर को प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखना भी पार्टी पदाधिकारियों की समझ से बाहर है।
अब यह कहा जा रहा है कि राजबब्बर की अगुवाई में लगभग टूट की कगार पर पहंच चुकी यूपी कांग्रेस में जान फूंकने की गरज से ही प्रियंका की शक्ल में गांधी परिवार के एक और सदस्य को राजनीति के अखाडे़ में उतारा गया है। प्रियंका की जिम्मेदारी सिर्फ पूर्वी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का सिक्का जमाने तक ही सीमित नही रहेगी बल्कि चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद यूपी कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की भी होगी। प्रियंका के राजनीति की मुख्य धारा में उतर आने से यूपी कांग्रेस को कितना लाभ होगा? यह तो भविष्य के गर्त में है लेकिन मौजूदा कांग्रेस की हकीकत से रूबरु होना है तो विगत लोकसभा चुनाव परिणामों पर एक नजर डालना जरूरी हो जाता है।
अभिनेता से नेता तक का सफर तय करने वाले राज बब्बर की राजनीतिक हैसियत का हाल यह है कि वे अपने गृह जनपद आगरा से कांग्रेस प्रत्याशी उपेन्द्र सिंह तक को नहीं जिता पाए। उपेन्द्र सिंह की जमानत जब्त हो गयी थी। जब परिणाम घोषित हुआ तो उपेन्द्र सिंह के साथ ही कांग्रेस का जनाधार नीचे से दूसरे नम्बर पर दिखा। दूसरी ओर भाजपा की लहर की बात करें तो 21 गंभीर आपराधिक मामलों में लिप्त होने के बावजूद राम शंकर कठेरिया कमल चुनाव चिन्ह पर चुनाव जीत गए। हालांकि अभी तक आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा हाई कमान ने कोई आधिकारिक सूची जारी नहीं की है फिर भी इस बार भी राम शंकर कठेरिया की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है।
कांग्रेस की ऐसी ही स्थिति उत्तर प्रदेश के अन्य लोकसभा सीटों पर भी नजर आयी। अम्बेडकर नगर से भाजपा के हरिओम विजयी रहे जबकि कांग्रेस के अशोक सिंह को दूसरे नम्बर पर संतोष करना पड़ा। अकबरपुर से भाजपा के देवेन्द्र सिंह उर्फ भोले सिंह विजयी रहे जबकि कांग्रेस के राजा रामपाल नीचे से चैथे नम्बर पर नजर आए। अलीगढ़ की स्थिति भी कुछ ऐसी ही रही। यहां से भाजपा के सतीश कुमार विजयी रहे तो कांग्रेस के बिजेन्द्र सिंह चैथे नम्बर पर रहे। इलाहाबाद से भाजपा के श्यामा चरण गुप्ता विजयी रहे जबकि कांग्रेसी प्रत्याशी नन्द गोपाल गुप्ता उर्फ नन्दी 13वें स्थान पर नजर आए। कांग्रेस की पुश्तैनी सीट अमेठी से कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष (उस वक्त उपाध्यक्ष) राहुल गांधी बमुश्किल विजयी हुए। अमरोहा से भाजपा के कुंवर सिंह तंवर विजयी रहे जबकि कांग्रेस का प्रत्याशी कहीं भी नजर नहीं आया। आंवला से भाजपा के धर्मेन्द्र कुमार विजयी रहे जबकि कांग्रेस प्रत्याशी सलीम इकबाल शेरवानी नीचे से तीसरे स्थान पर नजर आए। सलीम इकबाल शेरवनी कांग्रेस के पुराने दिग्गज नेताओं में गिने जाते रहे हैं। मुस्लिम बाहुल्य संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ से पूर्व सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव विजयी रहे जबकि कांग्रेस प्रत्याशी अरविन्द कुमार जायसवाल तीसरे नम्बर पर रहे। बदायूं से सपा तो अपनी नाक बचाने में सफल हो गयी और धर्मेन्द्र यादव विजयी हुए लेकिन इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी कहीं नजर नहीं आया। बागपत सीट भी भाजपा के सत्यपाल सिंह के पास चली गयी। मुस्लिम बाहुल्य संसदीय क्षेत्र बहराइच से भी कांग्रेस को जीत नहीं मिल सकी। यहां पर कांग्रेस प्रत्याशी कमाण्डो कमल किशोर दूसरे स्थान पर रहे जबकि भाजपा प्रत्याशी दलित नेता सावित्री बाई फूले ने बाजी मार ली। बलिया से भाजपा के भारत सिंह विजयी रहे जबकि कांग्रेस प्रत्याशी सुधा राय नीचे से दूसरे स्थान पर नजर आयीं। बांदा से भाजपा के बैरन प्रसाद मिश्रा को जीत मिली जबकि कांग्रेस प्रत्याशी विवेक कुमार सिंह की जमानत तक जब्त हो गयी। बांसगांव से भाजपा के कमलेश पासवान विजयी हुए जबकि कांग्रेस प्रत्याशी संजय कुमार नीचे से दूसरे स्थान पर रहे। संजय की भी जमानत जब्त हो गयी थी। बाराबंकी से भाजपा की प्रियंका सिंह रावत चुनाव जीत गयी थीं जबकि कांग्रेस के पीएल पुनिया नीचे से चैथे स्थान पर रहे। ज्ञात हो ये वही आईएएस से नेता तक सफर तय करने वाले पीएलपुनिया हैं जो कभी मायावती सरकार के कार्यकाल में मुख्यमंत्री मायावती के बेहद करीबी साथियों में से एक थे। श्री पुनिया राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। श्री पुनिया वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में अपना दम-खम दिखा चुके थे। वे वर्ष 2014 तक सांसद रहेे। दलितों के बीच अच्छी पकड़ रखने वाले पुनिया पर कांग्रेस ने दोबारा दांव लगाया और उन्हें बाराबंकी लोकसभा का टिकट देकर मैदान में उतारा लेकिन भाजपाई लहर में पुनिया की जमीन खिसक गयी। चर्चा है कि एक बार फिर से कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनाव में पीएल पुनिया पर दांव लगाने की सोंच रही है।
बरेली सीट पर भाजपा के संतोष कुमार गंगवार का जलवा कायम रहा जबकि कांग्रेस के प्रवीन सिंह ऐरन नीचे से चैथे स्थान पर रहे। बस्ती से भाजपा के हरीश चन्द्र विजयी रहे जबकि कांग्रेस के दमदार प्रत्याशी यहां भी अपना जलवा नहीं दिखा पाए। कांग्रेस के प्रत्याशी अम्बिका सिंह दूसरे स्थान पर रहे। भदोही भी कांग्रेस के हाथ नहीं आया। यहां से भाजपा के वीरेन्द्र सिंह ने बाजी मारी और कांग्रेस का प्रत्याशी नीचे से तीसरे स्थान पर आया। चन्दौली सीट महेन्द्र नाथ ने भाजपा के टिकट पर जीती, यहां पर कांग्रेस का प्रत्याशी तरुणेन्द्र चन्द्र पटेल नीचे से दूसरे नम्बर पर रहे। देवरिया से भाजपा के कलराज मिश्रा विजयी रहे जबकि कांग्रेस के सभा कुंवर नीचे से चैथे स्थान पर रहे। धौरहरा सीट भी भाजपा की रेखा को मिली जबकि यहां से कांग्रेस के प्रत्याशी कुंवर जितिन प्रसाद सातवें स्थान पर रहे। डुमरियागंज से भाजपा के टिकट पर जगदम्बिका पाल ने बाजी मारी और कांग्रेस प्रत्याशी वसुन्धरा को अपनी जमानत गंवाकर आखिरी स्थान पर संतोष करना पड़ा। समाजवादी पार्टी के गढ़ इटावा में भी भाजपा की लहर रही और यहां से भाजपा के अशोक कुमार दोहरे विजयी रहे जबकि कांग्रेस के हंसमुखी को तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। फैजाबाद से भाजपा के लल्लू सिंह विजयी रहे जबकि कांग्रेस के निर्मल खत्री को आठवें स्थान पर संतोष करना पड़ा। फर्रुखाबाद से भाजपा के मुकेश राजपूत को सफलता हाथ और कांग्रेस के कद्दावर नेता सलमान खुर्शीद नीचे से पांचवे स्थान पर नजर आए। इस सीट पर 22 प्रत्याशी मैदान में थे। फतेहपुर सीट भाजपा की साध्वी निरंजन ज्योति को मिली जबकि कांग्रेस प्रत्याशी ऊषा मौर्या नीचे से दूसरे स्थान पर रहीं। फिरोजाबाद सीट भी कांग्रेस के हाथ नहंी लग सकी। यहां से सपा के अक्षय कुमार विजयी रहे जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी अतुल चतुर्वेदी को दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। गौतमबुद्धनगर सीट भी भाजपा की झोली में गयी और कांग्रेस प्रत्याशी रमेश चन्द्र तोमर को 13वें स्थान पर संतोष करना पड़ा। गाजियाबाद की सीट भाजपा के विजय कुमार को मिली जबकि यूपी कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष राजबब्बर को छठे स्थान पर संतोष करना पड़ा। गाजीपुर की सीट भाजपा के मनोज सिन्हा ने जीती। इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद मकसूद खान नीचे से छठे नम्बर पर रहे। घोसी सीट पर भाजपा के हरिनारायण राजभर को जीत हासिल हुई और कांग्रेस के राष्ट्र कुंवर सिंह को नीचे से चैथे स्थान पर संतोष करना पड़ा। गोण्डा से कीर्ति वर्धन सिंह को भाजपा के टिकट पर जीत हासिल हुई जबकि कांग्रेस प्रत्याशी बेनी प्रसाद वर्मा को चैथे स्थान पर संतोष करना पड़ा। गोरखपुर से भाजपा के टिकट पर योगी आदित्यनाथ विजयी हुए थे लेकिन उपचुनाव के दौरान यह सीट भाजपा के हाथों से खिसक कर सपा-बसपा के गठबन्धन से सपा प्रत्याशी प्रवीण कुमार निषाद ने जीती। उप चुनाव में भी कांग्रेस का प्रत्याशी डाॅ. सुरहीता करीम चुनाव नहीं जीत सके। इससे पहले कांग्रेस के टिकट पर अष्टभुजा प्रसाद ने किस्मत आजमायी थी लेकिन वे भी चुनाव जीतने में सफल नहीं हो सके थे। हमीरपुर सीट भाजपा के कुंवर पुष्पेन्द्र सिंह ने जीती जबकि यहां से कांग्रेस प्रत्याशी प्रीतम सिंह को नौवंे स्थान पर संतोष करना पड़ा। हरदोई संसदीय सीट से भी कांग्रेस का प्रत्याशी सर्वेश कुमार 11वें नम्बर पर आया जबकि यहां से भी भाजपा के प्रत्याशी अंशुल वर्मा ने जीत दर्ज की। जालौन से भानु प्रसाद सिंह भाजपा से विजयी हुए जबकि कांग्रेस प्रत्याशी विजय चैधरी अंतिम पायदान पर नजर आए। जौनपुर से कृष्ण प्रताप भाजपा से विजयी हुए जबकि कांग्रेस का प्रत्याशी रवि किशन 14वें स्थान पर रहा। झांसी से उमा भारती को भाजपा के टिकट पर सफलता हाथ लगी जबकि कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप कुमार जैन दसवें स्थान पर रहे। कैराना से भाजपा के टिकट पर बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह ने जीत दर्ज की जबकि इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी मुकेश श्रीवास्तव उर्फ ज्ञानेन्द्र प्रताप छठे स्थान पर रहे। कानपुर से कांग्रेस के दिग्गज नेता श्रीप्रकाश जायसवाल बुरी तरह से पराजित हुए और यह सीट भाजपा के डाॅ मुरली मनोहर जोशी के हाथों में चली गयी। कौशाम्बी की सीट भाजपा के विनोद कुमार ने जीती जबकि कांग्रेस प्रत्याशी महेन्द्र कुमार को चैथे स्थान पर ही संतोष करना पड़ा। खीरी सीट पर भाजपा के अजय कुमार विजयी हुई जबकि दिग्गज कांग्रेस प्रत्याशी जफर अली नकवी को प्रत्याशियों की सूची में आखिरी स्थान पर संतोष करना पड़ा। कुशीनगर की सीट भी भाजपा के खाते में गयी थी। इस सीट से भाजपा के राजेश पाण्डेय उर्फ गुड्डू विजयी हुए थे जबकि कांग्रेस प्रत्याशी कुंवर रतनजीत प्रताप सिंह दसवें नम्बर पर लुढक गए। लालगंज संसदीय क्षेत्र से भाजपा की नीलम को जीत मिली जबकि कांग्रेस के बलिहारी को चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा। राजधानी लखनऊ से रीता जोशी को कांग्रेस के टिकट पर हार नसीब हुई थी जबकि राजनाथ सिंह भाजपा के टिकट पर विजयी हुए थे। रीता जोशी ने बाद में कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर ली और कैण्ट से विधायक बनने के बाद यूपी सरकार के मंत्रिमण्डल में मंत्री बन गयीं। मछली शहर से भाजपा के राम चरित्र निषाद को जीत हासिल हुई जबकि कांग्रेस के तूफानी निषाद को अंतिम पायदान पर ही संतोष करना पड़ा। कांग्रेस यहां से बुरी तरह से हार गयी थी। महराजगंज से भाजपा के पंकज को जीत हासिल हुई जबकि कांग्रेस के हर्षवर्धन को 12वंे नम्बर पर ही संतोष करना पड़ा। मेरठ से भाजपा के राजेन्द्र अग्रवाल चुनाव जीते थे जबकि कांग्रेस के मोरारजी नगमा अरविन्द को 10वें स्थान पर ही संतोष करना पड़ा। मिर्जापुर की सीट भाजपा के सहयोग से अपना दल की अनुप्रिया पटेल के हाथ लगी, यहां से भी कांग्रेस का प्रत्याशी मुकाबले से बाहर रहा और कांग्रेसी प्रत्याशी ललितेशपति त्रिपाठी 13वें स्थान पर नजर आए। मिश्रिख की सीट भाजपा की अंजुबाला के हाथ लगी जबकि इस सीट पर कांग्रेसी प्रत्याशी ओम प्रकाश को हार का मुख देखना पड़ा। ओम प्रकाश नवें स्थान पर रहे। इस सीट पर भी कांग्रेस की ऐसी स्थिति हुई कि वह छोटे दलों को भी क्राॅस नहीं कर पाया। राजधानी लखनऊ की तहसील और संसदीय सीट मोहनलालगंज से कौशल किशोर ने भाजपा के टिकट पर बाजी मारी जबकि कांग्रेस के नरेन्द्र कुमार 11वें स्थान पर रहे। यहां भी छोटे दलों ने एक राष्ट्रीय पार्टी को उनकी हैसियत से परिचय करवा दिया। महिला स्वाभिमान पार्टी, नैतिक पार्टी, निर्दलीय, आवामी समता पार्टी, मानवतावादी समता पार्टी, आरपीआई, राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी, समतावादी रिपब्लिकन पार्टी और एआईटीसी जैसे राजनीतिक दलों से भी कांग्रेस पिछड़ गयी। एक समय था जब मुरादाबाद संसदीय सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा करता था लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में मुरादाबाद की सीट न सिर्फ भाजपा प्रत्याशी कुंवर सर्वेश कुमार के हाथों में गयी बल्कि कांग्रेस की बेगम नूर बानों को तीसरे स्थान पर ही संतोष करना पड़ा। मुजफ्फरनगर से भाजपा के संजीव कुमार बालियान को जीत मिली जबकि कांग्रेस प्रत्याशी पंकज अग्रवाल 13वंे स्थान पर रहे। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर से कांग्रेस ने पहले मोहम्मद कैफ को टिकट देकर मैदान में उतारा था लेकिन भाजपा प्रत्याशी रहे और वर्तमान सूबे के उप मुख्यमंत्री केशव मौर्या ने उन्हें धूल चटा दी। उप चुनाव में भाजपा का इकबाल भले ही धाराशायी हो गया हो, इसके बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी मनीष मिश्रा चुनाव नहीं जीत सके। इस उप चुनाव में सपा ने बाजी मारी और सपा के टिकट पर नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल चुनाव जीत गए। पीलीभीत की सीट भाजपा की मेनका गांधी ने जीती और कांग्रेस के संजय कपूर की जमानत जब्त हो गयी। वे आखिरी से दूसरे नम्बर पर रहे। प्रतापगढ़ की सीट भाजपा के समर्थन से अपना दल के प्रत्याशी कुंवर हरिवंश सिंह ने जीती जबकि यहां से भी कांग्रेस की प्रत्याशी राजकुमारी रत्ना सिंह कोई कमाल नहीं दिखा सकीं। रायबरेली में जरूर कांग्रेस ने अपनी नाक बचा ली और कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जीत दर्ज कर नाक कटने से बचा ली। रामपुर की सीट भाजपा के डाॅ नेपाल सिंह ने जीती जबकि कांग्रेस प्रत्याशी नवाब काजिम अली खान को 9वें स्थान पर संतोष करना पड़ा। राबर्ट्सगंज से भी भाजपा के छोटे लाल ने बाजी मारी जबकि यहां से कांग्रेस के प्रत्याशी भगवती प्रसाद चैथे नम्बर पर रहे। सहारनपुर से भाजपा के राघव लखनपाल विजयी रहे जबकि कांग्रेस के इमरान मसूद को चैथे स्थान पर ही संतोष करना पड़ा। सलेमपुर की सीट पर भाजपा के रविन्द्र कुशवाहा विजयी रहे जबकि कांग्रेस के डाॅ. भोला पाण्डेय को चैथे स्थान पर संतोष करना पड़ा। सम्भल की सीट पर भले ही कांग्रेस ने कड़ी टक्कर दी हो लेकिन मोदी लहर ने कांग्रेस के मंसूबे पूरे नहीं होने दिए और भाजपा के सत्यपाल सिंह ने कांग्रेस के आचार्य प्रमोद कृष्णनम को हरा दिया। कांग्रेस यहां पर दूसरे स्थान पर रही। संतकबीर नगर की सीट भाजपा के शरद त्रिपाठी ने जीती जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी रोहित पाण्डेय इस स्थान पर अंतिम पायदान पर नजर आये। शाहजहांपुर सीट भी भाजपा के कृष्ण राज ने जीती जबकि कांग्रेस के चेतराम दूसरे स्थान पर रहे। श्रावस्ती से दद्दन प्रसाद मिश्रा ने भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की जबकि इस सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी विनय कुमार पाण्डेय आखिरी स्थान पर रहे। कांग्रेस की स्थिति ऐसी कि निर्दलीय प्रत्याशी से लेकर छोटे दल को भी कांग्रेस प्रत्याशी से अधिक वोट मिले। सीतापुर से भाजपा के टिकट पर राजेश कुमार सिंह ने जीत दर्ज की और कांग्रेस वैशाली अली को आखिरी स्थान पर संतोष करना पड़ा। एक वक्त था जब सुल्तानपुर संसदीय सीट कांग्रेसी सीट मानी जाती थी लेकिन विगत लोकसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा के वरुण गांधी ने बाजी मारी और कांग्रेस की अमिता सिंह को दूसरे स्थान पर पटखनी दे दी। गौरतलब है कि अमिता सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे संजय सिंह की दूसरी पत्नी हैं। उन्नाव से भाजपा के टिकट पर आपराधिक प्रवृत्ति के साक्षी महाराज को जीत मिली जबकि कांग्रेस के अन्नु टण्डन को छठे स्थान पर संतोष करना पड़ा। बनारस की सीट मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम गयी जबकि इस सीट पर कांग्रेस के टिकट से मैदान में खडे़ अजय राय को चौथे  स्थान पर संतोष करना पड़ा।
उपरोक्त आंकड़े बताते हैं कि यूपी में कांग्रेस की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि प्रियंका गांधी के मैदान में उतर आने के बावजूद उसकी स्थिति में जल्द सुधार की संभावना नजर नही आती। कांग्रेस के पुराने दिग्गजों की माने तो इसके लिए पार्टी को अपनी नीतियों में भारी फेरदबल करना होगा। कांग्रेस के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को सम्मान देना होगा, तभी जाकर कांग्रेस अपने पुराने स्वरूप में लौट सकती है।

You may also like

MERA DDDD DDD DD