मौजूदा समय में पूरा देश जहां आजादी के 75 वर्ष पूरे होने की खुशी में जश्न मानाने की तैयारी में जुटा हुआ है वहीं दूसरी ओर जम्मू कश्मीर में टारगेट किलिंग के बढ़ते मामले थमने का नाम नहीं ले रहें हैं। यहां तक कि जम्मू – कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त किए तीन साल बीत चुके हैं बावजूद इसके यहां टारगेट किलिंग की घटनाएं कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रही है। कल यानी 11 अगस्त को कश्मीर के बांदीपोरा जिले के सदुनारा गांव में बिहार के एक प्रवासी मजदूर मोहम्मद अमरेज को टारगेट किलिंग शिकार बनाया गया है।
क्यों हो रही है टारगेट किलिंग
टारगेट किलिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत आतंकी किसी एक व्यक्ति की पूर्ण गतिविधियों पर ध्यान रखकर उसके बारे में पूरी जानकारियां एकत्रित्त करते हैं और अंत में उसे मार देता है। इसमें आम जनता, मजदूर , पुलिस अधिकारी , स्कूल टीचर्स व कश्मीरी पंडित आदि की हत्या में शामिल हैं । टारगेट किलिंग का जम्मू कश्मीर पुलिस द्वारा एक बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि, इस ऑपरेशन के पीछे आतंकवादी समूहों का हाथ है। राज्य पुलिस के अनुसार भारतीय सुरक्षा सेना बल की कड़ी निगरानी के कारण कई आतंकी जो सीमा पार से जम्मू कश्मीर में घुसने का प्रयास कर रहे है वो अपने प्रयासों में असफल सिद्ध हो रहें हैं जिसके कारण वे बौखला गए हैं और अपनी राह से भटके हुए स्थानीय युवकों को अपना हथियार बना रहे हैं। कहा जा राहा है कि ये आतंकी उन युवकों बिना प्रशिक्षण के पिस्तौल मुहैया करवा देते है फिर उन्हें एक टारगेट और उसका पता दे देते हैं। जिसे उन युवकों को पूरा करना होता है। महत्वपूर्ण बात यह है की सभी टारगेट भीड़ वाले स्थानों पर दिए जाते हैं जिसकी वजह से कश्मीर की आम जनता में दहशत का माहौल बना हुआ है।
इस पर यह भी टिप्पणी की जा रही है कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 तो हटा दिया गया लेकिन आज भी कश्मीर में कश्मीरी पंडित सुरक्षित नहीं हैं क्योंकि अधिकतर उन्हें ही टारगेट किलिंग का शिकार बनाया जा रहा है। आज़ादी के बाद से ही जम्मू – कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के को प्रताड़ित करने उन्हें मारने की ख़बरें सामने आती रही हैं। जिसे रोकने के लिए सरकार ने कई कदम उठाये। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 जिसके तहत जम्मू कश्मीर को विशेषाधिकार प्राप्त थे , को हटाया जाना इसी प्रयास का परिणाम है। अनुच्छेद 370 को हटाए जाने को लेकर यह उम्मीद की जा रही थी कि इससे कश्मीरी पंडितों की स्थिति में सुधार आएगा। लेकिन बीते कुछ समय की घटनाओं को लेकर कहा जा रहा है कि कश्मीरी पंडितों स्थिति आज भी वैसी ही है उसमे कुछ सुधार नहीं आया है।
कश्मीर घाटी में जून, 2021 से अब तक हुई हत्याएं
2 जून, 2021 : त्राल में आतंकियों ने बीजेपी काउंसलर राकेश पंडिता की गोली मारकर हत्या कर दी। उनकी हत्या पर बहनोई संजय रैना ने कहा कि ऐसा लगता है कि गांव में राकेश के होने की सूचना किसी ने आतंकवादियों को दी है।
22 जून, 2021 : जम्मू-कश्मीर में इंस्पेक्टर परवेज अहमद पर आतंकियों ने घात लगाकर हमला किया। यह वारदात तब हुई, जब परवेज अहमद मस्जिद में नमाज अदा करने जा रहे थे। इस दौरान दो हथियारबंद आतंकवादियों ने उन पर अंधाधुंध फायरिंग कर उनकी जान ले ली।
15 जुलाई, 2021 : सोपोर में बीजेपी लीडर मेहराजुद्दीन मल्ला को अगवा किया गया। हालांकि उन्हें 10 घंटे में ही छुड़ा लिया गया। इस घटना के करीब एक महीने पहले 8 जून को अनंतनाग में कांग्रेस नेता और सरपंच अजय पंडिता की हत्या कर दी गई थी।
17 सितंबर, 2021 : आतंकियों ने कुलगाम के बंटू शर्मा को नजदीक से गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। बंटू का परिवार पिछले 30 सालों से भी ज्यादा समय से कश्मीर में रह रहा था।
5 अक्टूबर, 2021 : आतंकियों ने श्रीनगर के इकबाल पार्क के पास माखन लाल बिदरू पर गोलियां बरसा कर उनकी हत्या कर दी। इसी दिन श्रीनगर में लाल चौक के बाद लाल बाजार में आतंकियों ने हमला किया, जिसमें भेलपुरी बेचने वाले शख्स वीरेंद्र पासवान की हत्या कर दी गई। इसके अलावा आतंकियों ने बांदीपोरा के हाजिन इलाके में मोहम्मद शफी पर फायरिंग की, जिसमें वह घायल हो गया।
7 अक्टूबर, 2021 : श्रीनगर के सफाकदल एरिया में गवर्नमेंट ब्यॉज हायर सेकेंडरी स्कूल के भीतर घुसकर आतंकियों ने दो टीचरों की गोली मारकर हत्या कर दी। इनकी पहचान स्कूल की प्रिंसिपल सुपिंदर कौर और टीचर दीपक चंद के रूप में हुई।
16 अक्टूबर, 2021 : आतंकियों ने पुराने श्रीनगर और पुलवामा में दौ गैर-कश्मीरियों को निशाना बनाया। इनमें एक देवेंद्र साहा, बिहार का रहने वाला था और दूसरा सगीर अहमद, यूपी के सहारनपुर का निवासी था।
14 अप्रैल, 2022 : दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले के काकरान इलाके में आतंकवादियों ने सतीश सिंह राजपूत की गोली मार कर हत्या कर दी। पुलिस के मुताबिक पेशे से ड्राइवर सतीश सिंह की हत्या की जिम्मेदारी कश्मीर फ्रीडम फाइटर्स नाम के एक आतंकी संगठन ने ली थी।
12 मई, 2022 : जम्मू कश्मीर के बडगाम में आतंकियों ने राजस्व विभाग के अफसर को गोली मार दी। तहसील ऑफिस में आतंकियों ने राहुल भट्ट को निशाना बनाया। राहुल की अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई।
25 मई, 2022 : एक्ट्रेस अमरीन भट्ट अपने घर के बाहर 10 साल के भतीजे संग खड़ी थीं। तभी अचानक आए हमलावरों ने उन पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी। बाद में अमरीन ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। हालांकि, 24 घंटे के अंदर ही सुरक्षाबलों ने दो आतंकियों को ढेर कर हत्या का बदला ले लिया।
31 मई, 2022 : कुलगाम के गोपालपोरा इलाके में हाई स्कूल टीचर रजनी बाला पर आतंकियों ने गोलियां बरसाईं। सांबा की रहने वाली रजनी ने अस्पताल में दम तोड़ दिया।
2 जून, 2022 : बड़गाम के चदूरा में बिहार के एक मजदुर दिलखुश कुमार और एक बैंक में काम करने वाले विजय कुमार की गोली मरकर हत्या कर दी गई।
11 अगस्त, 2022 : बिहार के एक प्रवासी मजदूर मोहम्मद अमरेज को एक गोली मारी जिसकी अस्पताल मौत हो गई। इसके अलावा भी इसी महीने में 7 हत्याएं हो चुकी हैं।
उल्लेखनीय है कि तीन साल पहले 5 अगस्त 2019 वो तारीख, भारत की संसद के निचले सदन लोकसभा में संविधान के आर्टिकल 370 को हटाने का प्रस्ताव पेश किया गया था। 370 की बेड़ियों ने देश को एक देश, दो विधान, दो प्रधान और दो निशान का एहसास कराया। अनुच्छेद 370 के मुताबिक, जम्मू- कश्मीर राज्य को विशेष अधिकार मिले हुए थे जिसमें जम्मू- कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान था। रक्षा, विदेश और संचार के विषय छोड़कर सभी कानून बनाने के लिए राज्य की अनुमति जरुरी थी। जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती थी। दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे। अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता था, लेकिन ये संविधान के ही उन मूल अधिकारों पर भी चोट करता था, जिसे संविधान निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर ने संविधान की आत्मा कहा था। 72 सालों तक जम्मू-कश्मीर और देश के बीच अनुच्छेद 370 की जो फांस थी, जिसे लगभग तीन साल पहले इतिहास बना दिया गया और एक नए कश्मीर की कहानी जरूर लिख दी गई लेकिन अभी तक जम्मू-कश्मीर में बदलाव नजर नहीं आ रहा है।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के अलावा केंद्र सरकार ने देश की सुरक्षा को लेकर पूरे देश में नोटबंदी का फैसला भी किया था। जिसे 8 नवम्बर 2016 की रात आठ बजे प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अचानक राष्ट्र को किए गए संबोधन के द्वारा किया गया। इस घोषणा में 8 नवंबर की रात से देश में 500 और 1000 रुपये के नोटों को खत्म करने का एलान किया गया। इसका उद्देश्य केवल कालेधन पर नियंत्रण, जाली नोटों से छुटकारा पाना ही नहीं बल्कि इसके जरिए आतंकवाद पर रोक लगाना भी पहली प्राथमिकता थी। लेकिन इसके बाबजूद आतंकवादी गतिविधियां चलती रही हैं। आये दिन आतंकवादी हमले की घटनाएं आती रहती हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री द्वारा की गई नोटबंदी का फॉर्मूला कामयाब होता दिख नहीं रहा है। नोटबंदी पूरी तरह फेल हो गई। जिससे फायदा कम नुकसान जरूर उठाने पड़े हैं। इतना ही नहीं जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करना भी आतंकवादी गतिविधियों को कम करना था लेकिन यह भी खासा कुछ काम नहीं आया।