पिछले कुछ समय से कांग्रेस को चुनावों में लगातार मिल रही हार के बाद एक ओर जहां हाल ही में हिमाचल प्रदेश में मिली जीत को अहम माना जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ अगले साल होने वाले मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा और नागालैंड में कांग्रेस के सामने अपना अस्तित्व बचाने की चुनौती है।
इन प्रदेशों में पार्टी के सामने भाजपा और दूसरी स्थानीय पार्टियों से ज्यादा तृणमूल कांग्रेस से निपटने की चुनौती है। क्योंकि टीएमसी पूर्वोत्तर में कांग्रेस का विकल्प बनने की तैयारी कर रही है। पूर्वोत्तर के इन चारों प्रदेशों में तृणमूल कांग्रेस लगातार संगठन को मजबूत करने में जुटी है। वर्ष 2018 के चुनाव में टीएमसी को यहां कोई सीट नहीं मिली थी। लेकिन कांग्रेस के 17 में से 12 विधायक टूटकर टीएमसी में शामिल हो गए। इसके बाद मेघालय विधानसभा में टीएमसी को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा मिल गया।
त्रिपुरा लेफ्ट पार्टियों का गढ़ रहा है। सीपीएम के माणिक लंबे वक्त तक मुख्यमंत्री रहे और अब टीएमसी सांसद सुष्मिता देव अपने पिता की विरासत के जरिए टीएमसी के लिए जगह बना रही हैं। उनके पिता संतोष मोहन देव पांच बार असम और दो बार त्रिपुरा पश्चिम से जीतकर लोकसभा में पहुंचे थे। ऐसे में तृणमूल कांग्रेस की तरफ से मिल रही चुनौती का सामना करने के लिए कांग्रेस सीपीएम के गठबंधन के विकल्प पर विचार कर रही है। प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक सीपीएम सहित कई दलों के साथ गठबंधन पर बातचीत चल रही है। कांग्रेस दूसरी पार्टियों के साथ तालमेल कर चुनाव लड़ेगी। भाजपा के दो विधायक सुदीप रॉग बर्मन और आशीष कुमार साहा इस साल की शुरुआत में कांग्रेस में शामिल हुए थे। इसके बाद हुए उपचुनाव में बर्मन जीत कर विधानसभा पहुंचे। त्रिपुरा विधानसभा में वह कांग्रेस के एक मात्र विधायक हैं। हालांकि कुछ दिन पहले पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सहित कई नेता टीएमसी में शामिल हो गए थे।
दूसरे राज्यों की तरह नागालैंड में भी पार्टी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। प्रदेश में लंबे वक्त तक कांग्रेस की सरकार रही लेकिन वर्ष 2018 में पार्टी दो तिहाई सीट पर अपने उम्मीदवार तक खड़े नहीं कर पाई। पार्टी 60 में से सिर्फ 18 सीट पर चुनाव लड़ी, मगर पार्टी को कोई सीट नहीं मिली। चुनाव में पार्टी को सिर्फ बीस हजार वोट मिले।
वर्ष 2015 में पूर्वोत्तर के आठ में से पांच राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी। पिछले वर्षों में एक के बाद एक सभी राज्यों में कांग्रेस भाजपा और उसके सहयोगियों से हार गई। इस वक्त कांग्रेस सिर्फ असम में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है। मेघालय में वर्ष 2018 के चुनाव में पार्टी 21 सीट पर जीत दर्ज की। पार्टी को 28 फीसदी वोट मिले। हालांकि कई विधायक भाजपा और टीएमसी में शामिल हो गए थे। वहीं त्रिपुरा में वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 59 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन पार्टी एक भी सीट जीत नहीं पाई थी। पार्टी को सिर्फ 42 हजार 100 वोट मिले थे। नागालैंड के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 18 सीट पर चुनाव लड़ी थी लेकिन पार्टी एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई। इन चुनाव में पार्टी को सिर्फ दो फीसदी वोट मिले थे। ऐसा ही हाल मिजोरम में भी रहा। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में दस साल तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस सिर्फ पांच सीट हासिल कर पाई। यहां तक कि मुख्यमंत्री लाल थनहावला खुद दोनों सीट से चुनाव हार गए थे।