सर्वाेच्च न्यायालय ने माना है कि केंद्र द्वारा जम्मू- कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला सही था। केंद्र ने 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा खत्म कर दिया था। इसके बाद फैसले के खिलाफ सर्वाेच्च न्यायालय में 23 याचिकाएं लगाई गईं, जिन पर गत् सप्ताह सर्वाेच्च न्यायालय संविधान पीठ ने फैसला दे दिया है। इस फैसले से यह साफ हो गया है कि जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान के प्रावधान लागू हो सकेंगे। इसे केंद्र सरकार की बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है
‘हम संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए संवैधानिक आदेश जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति के इस्तेमाल को वैध मानते हैं।’ ऐसा कहकर सर्वाेच्च न्यायालय ने पिछले 4 साल, 4 महीने और 6 दिन से सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक पर चल रहे उहापोह पर पूर्ण विराम लगाते हुए जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर राष्ट्रपति और केंद्र सरकार के लगभग सभी कदमों पर अपनी मुहर लगा दी है। सर्वाेच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने 11 दिसंबर को अपने फैसले में कहा कि केंद्र सरकार द्वारा 5 अगस्त 2019 को जम्मू- कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का लिया गया फैसला बरकरार रहेगा।
न्यायालय ने माना है कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला सही था। केंद्र ने 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा खत्म कर दिया था। इसके बाद फैसले के खिलाफ सर्वाेच्च न्यायालय में 23 याचिकाएं लगाई गईं, जिन पर 11 दिसंबर, 2023 को संविधान पीठ ने फैसला दिया है। इस फैसले से यह बात अब साफ हो गई है कि जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान चलेगा।
अलग-अलग विचार होते हुए भी एकमत से फैसला
मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ द्वारा अलग-अलग विचार होने के बावजूद एकमत होकर संयुक्त फैसला दिया गया है। पहला फैसला 352 पन्नों का है, जिसमें मुख्य न्यायधीश, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जस्टिस गवई की राय शामिल है। दूसरा 121 पन्नों का है, जिसमें जस्टिस कौल की बात है। तीसरा 3 पन्नों का है, जिसे न्यायमूर्ति खन्ना ने लिखा है।
सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव
पीठ ने कहा कि 1947 में विलय के बाद जम्मू-कश्मीर के पास संप्रभुता का कोई तत्व नहीं है। इसलिए न्यायालय केंद्र के निर्णय में दखलअंदाजी नहीं करेगी। साथ ही न्यायालय द्वारा केंद्र को सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने और पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने का आदेश दिया गया है। सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा यह फैसला आशा की किरण है। जहां एक तरफ अनुच्छेद 370 पर फैसला आया तो वहीं दूसरी तरह जम्मू-कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक भी लोकसभा के बाद 11 दिसंबर, को राज्यसभा से भी पास हो गया।
याचिकाकर्ताओं के प्रश्न
इस मामले में कुल 23 याचिकाएं दायर की गई थी। इनमें नागरिक समाज संगठन, राजनेता, वकील, पत्रकार शामिल थे। कुछ नामों में जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता, मोहम्मद अकबर लोन, जम्मू-कश्मीर के पूर्व वार्ताकार राधा कुमार शामिल थे।
मोदी सरकार के इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर करने वालों की दलील थी कि भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में किसी भी कानून में बदलाव करते समय राज्य सरकार की सहमति को अनिवार्य बनाता है। ध्यान रहे कि जब अनुच्छेद 370 हटाया गया था, तब जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था और राज्य सरकार की कोई सहमति नहीं थी। याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना विधानसभा को भंग नहीं कर सकते थे। उन्होंने तर्क दिया कि केंद्र ने जो किया है वह संवैधानिक रूप से स्वीकार्य नहीं है और यह अंतिम उपाय को उचित नहीं ठहराता है। देश की सबसे बड़ी अदालत को कुछ सवालों के जवाब ढूंढ़ने थे। सर्वाेच्च न्यायालय के सामने कई सवाल थे जिनके जवाब न्यायालय ने अपने फैसले में दिए हैं।
कोर्ट के आदेश के मुख्य बिंदु
1. अनुच्छेद 370 की स्थिति पर: संविधान का अनुच्छेद 370 अस्थायी था। अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर में युद्ध की स्थिति के कारण एक अंतरिम व्यवस्था थी। इसे रद्द करने की राष्ट्रपति की शक्ति अभी भी मौजूद है।
2 अनुच्छेद 370 हटाने के सरकार के फैसले पर: हम अनुच्छेद 370 हटाने के लिए जारी किए गए राष्ट्रपति के आदेश को वैध मानते हैं। हम लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फैसले की वैधता को भी बरकरार रखते हैं। केंद्र के हर फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। ऐसा करने से अराजकता फैलेगी। अगर केंद्र का फैसला किसी तरह की मुश्किल पैदा कर रहा है तो ही उसे चुनौती दी जा सकती है।
3. जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर: जम्मू-कश्मीर को देश के अन्य राज्यों की तरह कोई आंतरिक संप्रभुता प्राप्त नहीं है। भारतीय संविधान के सभी प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू हो सकते हैं। जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाना चाहिए।
4. राष्ट्रपति के आदेश पर: मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह अदालत भारत के राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई नहीं कर सकती। अनुच्छेद 370(1)(डी) के तहत कई संवैधानिक आदेश बताते हैं कि केंद्र और राज्य ने जम्मू-कश्मीर में संविधान लागू किया था। वहां एकीकरण की प्रक्रिया चल रही थी। ऐसे में हमें नहीं लगता कि राष्ट्रपति की शक्ति का इस्तेमाल दुर्भावनापूर्ण था। इसलिए राष्ट्रपति के पास अधिसूचना जारी करने की शक्ति वैध थी। सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा दिसंबर 2018 में जम्मू-कश्मीर में लगाए गए राष्ट्रपति शासन की वैधता पर फैसला देने से इनकार कर दिया। सर्वाेच्च न्यायालय ने इसका कारण याचिकाकर्ता द्वारा विशेष रूप से चुनौती नहीं देना बताया है।
5. जम्मू-कश्मीर संविधान सभा पर: जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को कभी भी स्थाई बनाने का इरादा नहीं था। जब जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त हो गया, तो जिस विशेष शर्त के लिए अनुच्छेद 370 लागू किया गया था, उसका अस्तित्व भी समाप्त हो गया।
6. संप्रभुता के प्रश्न पर: 1949 में महाराजा हरि सिंह द्वारा विलय पत्र में सहमति और उसके बाद के संविधान ने इस तथ्य को पुख्ता किया कि जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग बन गया। यह संविधान के अनुच्छेद 1 से स्पष्ट है।
7. संघवाद: न्यायमूर्ति खन्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘अनुच्छेद 370 असममित संघवाद का उदाहरण है। यह जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता का सूचक नहीं है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाने से संघवाद खत्म नहीं होगा।’
8. आयोग की मांग: न्यायमूर्ति कौल ने फैसले में लिखा कि 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़नी पड़ी। केंद्र की ओर से उस दौरान हुए मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया जाए। कौल खुद एक कश्मीरी पंडित परिवार से हैं।
क्या है अनुच्छेद 370
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 एक ऐसा अनुच्छेद था जो जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता प्रदान करता था। यह जम्मू- कश्मीर के संबंध में संसद की विधायी शक्तियों को प्रतिबंधित करता था। 370 के तहत ऐसा प्रावधान किया गया कि विलय पत्र में शामिल विषयों पर केंद्रीय कानून का विस्तार करने के लिए राज्य सरकार के साथ परामर्श की आवश्यकता होगी। इस अनुच्छेद के तहत कश्मीर को कई विशेष अधिकार प्राप्त थे। जैसे संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए। इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती तो राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था। 1976 का शहरी भूमि कानून लागू नहीं होता था जिसके अनुसार भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का अधिकार है। यानी दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे। लेकिन अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से जम्मू कश्मीर के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं बचा है।
न्यायालय के फैसले पर ‘ओआईसी’ ने जताई चिंता
सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को बरकरार रखने के बाद पाकिस्तान सरकार ने इस मामले को ओआईसी संगठन में शामिल 57 मुस्लिम देशों के सामने उठाया है। इस पर अब इस्लामिक देशों ने एक संयुक्त बयान जारी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिंता जताई है। सऊदी अरब के नेतृत्व वाले ओआईसी के महासचिव कार्यालय ने न्यायालय के इस फैसले को भारत से एकतरफा उठाए गए सभी कदम वापस लेने को कहा है। ओआईसी ने यह भी कहा कि जम्मू-कश्मीर मुद्दे का समाधान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के अनुसार किया जाना चाहिए। हालांकि भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को लेकर इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के बयान को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, ‘मानवाधिकारों का बार-बार उल्लंघन करने वाले और सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले के निर्देश पर उठाया गया यह कदम न केवल सवालों के घेरे में आता है, बल्कि ऐसे बयानों से संगठन की विश्वसनीयता को भी नुकसान पहुंचता है।’