कांग्रेस पार्टी और चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के बीच बीजिंग में 2008 को हुए समझौते को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई कि याचिकाकर्ता को पहले हाईकोर्ट जाना चाहिए। ख़ास बात यह है कि कोर्ट ने न सिर्फ याचिकाकर्ता को फटकार लगाई,बल्कि हैरानी भी जताई कि ”कैसे एक राजनीतिक पार्टी का किसी विदेशी सरकार के साथ समझौता हो सकता है, यह कानून में है ही नहीं”।
दरअसल याचिकाकर्ता दिल्ली के वकील शशांक शेखर झा और गोवा से संचालित ऑनलाइन न्यूज पोर्टल गोवा क्रोनिकल के संपादक सेवियो रॉड्रिग्स ने याचिका में कहा था कि यह एमओयू राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर चिंता पैदा करता है और यूएपीए कानून के तहत एनआईए या सीबीआई को इसकी जांच करनी चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश होते हुए कहा कि इस समझौते का मकसद ठीक नहीं हैं।लिहाजा इस समझौते को सार्वजनिक किया जाए। उन्होंने याचिका में बदलाव की भी अनुमति मांगी। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि वे पहले हाई कोर्ट क्यों नहीं गए। जेठमलानी ने उत्तर दिया, ”यह केस राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। लेकिन बेंच ने कहा कि यह याचिका को हाई कोर्ट में दाखिल करने से नहीं रोकता है।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि चीन के साथ खराब रिश्तों के बावजूद कांग्रेस पार्टी ने केंद्र सरकार में रहते हुए एमओयू साइन किया। इस समझौते के तथ्यों और ब्योरों को सार्वजनिक नहीं किया गया।
इस मामले में कांग्रेस पार्टी के साथ सोनिया और राहुल गांधी को भी पक्ष बनाया गया है। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले की यूएपीए के तहत एनआईए से जांच कराने को लेकर आदेश देने की मांग की थी। गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन कानून (यूएपीए) के तहत आतंकवादी गतिविधियों या भारतीय संघ से देश के किसी हिस्से में अलगाव लाने का इरादा रखने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। विकल्प के तौर पर याचिकाकर्ताओं ने सीबीआई जांच की भी मांग की।
हाल ही में पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद कांग्रेस पार्टी ने मोदी सरकार को घेरते हुए कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर विफल होने का आरोप लगाया था। सत्ताधारी बीजेपी ने पलटवार करते हुए कांग्रेस पार्टी की ओर से सोनिया गांधी और राहुल गांधी द्वारा चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एमओयू साइन करने का मुद्दा उठाया।
कहा गया कि यूपीए की चेयरपर्सन रहीं सोनिया गांधी की मौजूदगी में एमओयू पर बीजिंग में साइन किया गया। मीडिया रिपोर्ट्स का जिक्र करते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 2008 से 2013 के बीच चीनी सैनिकों ने 600 बार घुसपैठ की थी।