सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग (एनसीपीसीआर) ने कहा है कि पिछले साल 1 अप्रैल औऱ इस साल 5 जून के बीच कोरोना महामारी के कारण 3,621 बच्चे अनाथ हो गए, 26,176 ने अपने माता-पिता को खो दिया और 274 बच्चों छोड़ दिया गया। आयोग ने स्पष्ट किया कि माता-पिता की मृत्यु, जैसा कि उसके हलफनामे में परिलक्षित होता है, केवल कोविड -19 से संबंधित नहीं थी और अन्य कारणों से भी हो सकती है।
आयोग ने कहा कि जिन 30,071 बच्चों को “देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है”, उनमें से 15,620 लड़के, 14,447 लड़कियां और चार ट्रांसजेंडर हैं। 11,815 बच्चे – 8-13 आयु वर्ग में हैं, इसके बाद 4-7 आयु वर्ग में 5,107 बच्चे हैं। शीर्ष अदालत के हालिया आदेश के बाद राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा एनसीपीसीआर के ‘बाल स्वराज’ पोर्टल पर आंकड़े अपलोड किए गए थे।
पोर्टल पर अपलोड़ आकड़ों के अनुसार सबसे ज्यादा अनाथ बच्चे मध्यप्रदेश से है दूसरे नंबर पर उत्तर-प्रदेश के। मध्यप्रदेश में 318 बच्चे अनाथ हुए, तो वहीं 104 बच्चे ऐसे है जो पूरी तरह से बेसहारा हो गए। 29 मई तक यूपी में 2110 बच्चे महामारी से प्रभावित हुए। इसमें 270 बच्चे ऐसे है जिनके माता-पिता की मृत्यु हो गई। हरियाणा में 774 बच्चों ने अपने अभिवावको को खोया है। 44 बच्चे पूरी तरह से अनाथ हो गए।
28 मई को, अदालत ने कोविड -19 के मद्देनजर संरक्षण घरों में बच्चों के कल्याण पर एक स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई करते हुए, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को मार्च 2020 से प्रभावित बच्चों की संख्या पर डेटा अपलोड करने के लिए कहा था। आयोग ने 31 मई को अदालत में 29 मई तक प्राप्त आंकड़ों के साथ एक हलफनामा दायर किया था। संशोधित आंकड़ों के साथ इस मामले में यह दूसरा हलफनामा है।
आयोग की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज द्वारा जस्टिस एल नागेश्वर राव और अनिरुद्ध बोस की पीठ को बताया गया कि दोनों राज्य पोर्टल पर विवरण अपलोड नहीं कर रहे हैं, इसके बाद सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल और दिल्ली की खिंचाई की।
बेंच ने राज्य के वकील से पूछा, आपने हमारे द्वारा पारित आदेश देखा है, हमने कहा कि मार्च 2020 के बाद अनाथ बच्चों से संबंधित जानकारी इकट्ठा करें और विवरण अपलोड करें। अन्य सभी राज्यों ने इसे ठीक से समझ लिया है और जानकारी अपलोड कर दी है। यह कैसे है कि केवल पश्चिम बंगाल ही आदेश को नहीं समझता है।
दिल्ली सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता चिराग श्रॉफ ने कहा कि यह अन्य राज्यों के विपरीत पूरी तरह से बाल कल्याण समितियों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों पर निर्भर था, जहां विभागों ने सीधे जिलाधिकारियों को डेटा प्रदान किया, जिससे जानकारी अधिक व्यापक हो गई।
बेंच ने जवाब दिया कि ऐसे राज्य हैं जिन्होंने राजस्व विभाग, जिला कलेक्टर और अन्य के अधिकारियों के साथ जिला टास्क फोर्स का गठन किया है और दिल्ली भी ऐसा कर सकती है। आयोग ने अदालत से सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को यह निर्देश देने का भी आग्रह किया कि वे बच्चों के बारे में सार्वजनिक डोमेन में न रखें या किसी व्यक्ति/संस्था/संगठन को ऐसी कोई गोपनीय जानकारी प्रदान न करें जो उन्हें तस्करी, दुर्व्यवहार, अवैध गोद लेने आदि के लिए अतिसंवेदनशील बना दे।
कोरोना महामारी ने न जाने अब तक पूरी दुनिया में कितनों बच्चों को अनाथ कर दिया होगा। भारत सरकार ने इन बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं लागू करने की बात कही है। इसके साथ ही कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी अनाथ बच्चों की देखभाल के लिए योजनाएं लागू की है। कोरोना महामारी के कारण अनाथ हुए बच्चों पर सर्वोच्च न्यायालय ने भी राज्य और केंद्र सरकार को आदेश दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया है कि जिन बच्चों ने कोरोना महामारी के कारण अपने माता-पिता को खो दिया है। उन्हें पीएय केयर फॉर चिल्ड्रन फंड के तहत सहायता दी जाएगी। इन बच्चों को 18 वर्ष तक फ्री शिक्षा दी जाएगी, उसके बाद मासिक भत्ता दिया जाएगा। जब बच्चा 23 साल का हो जाएगा उसे 10 लाख रुपए भी दिए जाएंगे। पीएम कार्यालय की और से जारी बयान में कहा गया कि अनाथ बच्चों को फ्री एजुकेशन तो दी जाएगी, इसके साथ ही यह बच्चे उच्च शिक्षा के लिए लोन भी ले सकते है। लोन की राशि पीएम केयर्स फंड के तहत दी जाएगी।
आयुष्यमान भारत योजना के तहत इन अनाथ बच्चों का बीमा भी किया जाएगा, जिसके प्रिमियम का भूगतान भी पीएम केयर्स फंड करेगा।