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सुप्रीम कोर्ट ने की केंद्र से नया जमानती कानून बनाने की सिफारिश

भारतीय जेलों में बढ़ रही कैदियों की संख्या को देखते हुए हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से नया जमानती कानून बनाने की सिफारिश की है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि देश के जेलों में लगभग दो तिहाई कैदी जो विचाराधीन हैं अर्थात जिन्हें किसी आरोप में गिरफ्तार किया गया है और उनका गुनाह साबित नहीं हुआ हो , जिनकी सुनवाई चल रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार भारत के जेलों में कैद हर चार कैदियों में से तीन कैदी विचाराधीन हैं। इनमें से भी अधिकतर अशिक्षित व गरीब हैं। इसके कारण जेल में कैदियों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि लोकतंत्र पुलिस तंत्र की तरह नहीं लगना चाहिए कि वे किसी को भी जेल में डाल दें क्यूंकि कई कैदी ऐसे भी हैं जिन्हे कैद करने की जरुरत ही नहीं थी उन्हें जमानत दी जा सकती थी।


सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”लोकतंत्र में कभी भी पुलिस राज नहीं हो सकता। भारत में आपराधिक मामलों में दोष सिद्धि की दर बहुत कम है। ऐसे में यह कारक नकारात्मक अर्थों में जमानत आवेदनों का निर्णय करते समय कोर्ट के विवेक पर असर डालता है। कोर्ट यह सोचती है कि दोषसिद्धि की संभावना निकट है। ऐसे में जमानत आवेदनों पर कानूनी सिद्धांतों के विपरीत सख्ती से निर्णय लेना होगा। हम एक जमानत आवेदन पर विचार नहीं कर सकते हैं। जो कि ट्रायल के माध्यम से संभावित निर्णय के साथ प्रकृति में दंडात्मक नहीं है। इसके विपरीत, निरंतर हिरासत के बाद आखिरी में बरी करना घोर अन्याय का मामला होगा।”

क्या कहता है कानून

भारतीय कानून के अनुसार अपराध को दो श्रेणियों में बाटा गया है, संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध। भारत में अपराध कानून की दो संहिताएं हैं भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) जिसके तहत अपराधी को सजा सुनाई जाती है और भारतीय दंड प्रक्रिया (सीआरपीसी) जिसके तहत अपराधी की सजा को निर्धारित किया जाता है। अपराधी को सजा सुनाने के साथ यदि उसके व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन आए हैं तो उसकी जमानत के प्रावधान भी किये गए हैं। कानून व्यवस्था के आधार पर जमानत का अर्थ किसी अपराधी को आरोप मुक्त घोषित करना नहीं है। इसमें कुछ शर्तों के आधार पर अपराधी को स्वतंत्र कर दिया जाता है। जैसे कि अपराधी शहर से बहार न जाये और जिस तारीख पर आरोप के मामले में कोर्ट में उसकी पेशी तय की गई हो उस दिन आरोपी को अदालत में उपस्थित होना होगा।

जमानत भी कई प्रकार की होती है। जैसे – साधारण बेल जो किसी अपराधी द्वारा मांग करने पर साधारण तौर पर दे दी जाती है, अग्रिम जमानत के अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किये जाने की आशंका होती है तो वह पहले ही कोर्ट से बेल ले लेता है जिससे वह गिरफ्तार होने से बच जाता है, अंतरिम जमानत में जमानत की सुनवाई से पहले ही अपराधी की कुछ समय के लिए बेल दे दी जाती है और पुलिस थाने से मिली जमानत का अर्थ है किसी छोटे अपराध के मामले में स्थानीय पुलिस ही अपराधी को बेल दे देते हैं। लेकिन जमानत के इन कानूनों के बावजूद भी कुछ वर्षो से जेल में कैदियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हाल ही में जारी हुई राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2020 में देशभर की जेलों में कैदियों की कुल संख्या लगभग 4 लाख 88 हजार 511 थी जिनमें से 3 लाख 71 हजार 848 (विचाराधीन) कैदी ऐसे थे जिन्हे जमानत दी जा सकती थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसी समस्या को लेकर कहा कि विचराधीन कैदियों की जमानत की शर्तों का पालन करना चाहिए।

आजादी के अमृत महोत्सव पर होंगे हजारों कैदी रिहा

सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बढ़ रहे कैदियों की संख्या को लेकर पहली बार चिंता व्यक्त नहीं की है बल्कि यह काफी समय से चिंता का विषय बना हुआ है। शायद इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह आदेश जारी किया है कि जेल में कैद अपराधी जिनके व्यवहार में सुधार आया है उन्हें रिहा कर दिया जाये। इनमें नियम के अनुसार भी केवल कुछ कैदियों को ही बेल मिलेगी। जैसे 50 वर्ष की महिलाऐं व ट्रांसजेंडर , 60 या उससे अधिक आयु के पुरुष व दिव्यांग और वे कैदी जो अपनी सजा तो पूरी कर चुके हैं लेकिन गरीबी के कारण जुर्माना भरने में असमर्थ हैं।

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