उत्तराखंड राज्य को अस्तित्व में आए 18 साल से ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन अभी तक भी इस राज्य में मानवाधिकार अदालतो का गठन तक नहीं हो पाया है। इस मामले में उत्तराखंड सहित देश के सात राज्य आते है । जहा मानवाधिकार की बात करने वाले न्याय के नाम पर लीपापोती कर रहे है। यही नही बल्कि एक साल सात महीने पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने इस बाबत सभी राज्यों को कडी हिदायत भी दी थी। लेकिन बावजूद इसके आज तक इस मामले पर अमल नही हो सका है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट सख्त हो गया है। जिसके चलते उत्तराखंड सहित सभी सातो राज्यों पर बकायदा जुर्माना भी लगा दिया गया है।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने जनवरी, 2018 के निर्देश के बावजूद मानवाधिकार अदालतों की स्थापना के बारे में शीर्ष अदालत में जवाब दाखिल नहीं करने वाले 7 राज्यों पर 1 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया है। वहीं कोर्ट इस मामले में अब 6 सप्ताह बाद आगे सुनवाई करेगा । शीर्ष अदालत ने राजस्थान और उत्तराखंड पर 1-1 लाख रुपए का जुर्माना लगाते हुये कहा कि इन राज्यों ने न तो जवाब दाखिल किया है और न ही सुनवाई के दौरान उनके वकील मौजूद थे ।
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ को बताया गया कि तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, मेघालय और मिजोरम ने अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया है. इसके बाद इन राज्यों पर 50-50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया। पीठ ने कहा कि जुर्माने की रकम का भुगतान करने के साथ ही यह 7 राज्य 4 सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं ।
जुर्माने की यह राशि उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति के यहां जमा करवानी होगी । जिसका इस्तेमाल किशोरों से संबंधित मामलों में किया जाएगा ।
याद रहे कि देश की शीर्ष अदालत ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अपील पर सुनवाई के दौरान 4 जनवरी, 2018 को मानवाधिकार संरक्षण कानून, 1993 के प्रावधानों के तहत मानवाधिकार अदालतें गठित करने और विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति के बारे में सभी राज्यों को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था । जिसका पालन नहीं किया जा सका।