सुप्रीम कोर्ट की हिजाब मामले पर सुनवाई पिछले कई महीनों से जारी है। कर्नाटक के स्कूल और कॉलेज में हिजाब पहनने के ऊपर यह मामला शुरू हुआ था। हिजाब को लेकर काफी समय से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। इस मुद्दे का धार्मिक भावनाओं से जुड़े होने के कारण इसका कोई नतीजा नहीं निकल पाया है। 12 सितम्बर 2022, सोमवार को मुस्लिम पक्ष ने कहा है कि हिजाब की जरूरत को कुरान के बजाए महिला के अधिकार के रूप में देखा जाना चाहिए। इस पर शीर्ष न्यायालय ने भी एडवोकेट से बदलते तर्कों पर जवाब मांगा है। इससे पहले मुस्लिम पक्ष ने हिजाब को इस्लाम में जरूरी बताया था।
कुरान की व्याख्या कोर्ट में मुश्किल सोमवार को मुस्लिम पक्ष के वरिष्ठ वकीलों यूसुफ एच मुछाला और सलमान खुर्शीद ने कहा कि कोर्ट अरबी भाषा में कुशल नहीं है, जिसके चलते वह कुरान की व्याख्या नहीं कर सकता। उन्होंने तर्क दिया कि अदालत की तरफ से हिजाब को महिला के निजता, सम्मान और पहचान सुरक्षित रखने के अधिकार के रूप में देखा जाना चाहिए। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने मामले की सुनवाई की थी। हिजाब मामले पर बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी। इससे पहले पक्ष ने कहा था कि हिजाब इस्लाम में जरूरी है। अब इस्लाम में हिजाब की जरूरत की जांच नहीं चाहते हैं। वकील मुछाला ने कहा, 'निजता मतलब शरीर और दिमाग पर खुद का अधिकार है। अंतरात्मा का अधिकार और धर्म का अधिकार कॉम्प्लिमेंट्री हैं। ऐसे में जब मुस्लिम महिला अगर हिजाब पहनना चाहती है, तो यह उसके सम्मान और निजता को सुरक्षित करने के साथ-साथ सशक्त महसूस कराने वाला पसंद का कपड़ा है।' राजपूत समाज के लोग हो रहे शिकार खुर्शीद का भी कहना है कि मुस्लिम महिला का हिजाब पहनना उसके धार्मिक विश्वास, अंतरात्मा की आवाज, संस्कृति के तौर पर जरूरी या पहचान, सम्मान और निजता रखने की निजी सोच हो सकती है। उन्होंने कहा, 'भारत जैसे सांस्कृतिक विविधता वाले देश में सांस्कृतिक प्रथाओं का सम्मान करने की जरूरत है। मुस्लिम महिलाएं यूनिफॉर्म पहनने के नियम से इनकार नहीं करना चाहती। वे अपनी सांस्कृतिक जरूरत और निजी पसंद के सम्मान में स्कार्फ के तौर पर एक अतिरिक्त कपड़ा पहनना चाहती हैं। शीर्ष न्यायालय शीर्ष न्यायालय ने मुछाला से उनकी अलग-अलग बातों को लेकर तर्क पेश करने को कहा है। कोर्ट के अनुसार, 'पहले आपने इस बात पर जोर दिया कि हिजाब धार्मिक अधिकार है। अब आप तर्क दे रहे हैं कि हिजाब धर्म के लिए जरूरी है या नहीं, इस बात का फैसला करने के लिए कोर्ट को कुरान की व्याख्या नहीं करनी चाहिए। इस मामले की जांच के लिए 9 जजों की बेंच को यह पता करने के लिए भेजा जाना चाहिए कि यह काम जरूरी है या नहीं।'