अली और उनका परिवार उस सूची में शामिल कर लिया गया था, जिसमें वो लोग हैं जिन्होंने साबित कर दिया था कि वे भारतीय नागरिक हैं।लेकिन उनके शामिल होने को उनके पड़ोसी ने ही चुनौती दे दी और अली को फिर से अपनी नागरिकता सिद्ध करने के लिए बुलाया गया था, अगर इसमें वे असफल होते तो उन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाता। उन्हें डर था कि उन्हें डिटेंशन सेंटर में भेज दिया जाएगा और उनका नाम अंतिम सूची से बाहर कर दिया जाएगा।
चालीस लाख लोगों ने इस रजिस्टर को पहली बार अपडेट किया जा रहा है. इसमें उन लोगों को भारतीय नागरिक के तौर पर स्वीकार किया जाना है जो ये साबित कर पाएं कि वे 24 मार्च 1971 से पहले से राज्य में रह रहे हैं. ये वो तारीख है जिस दिन बांग्लादेश ने पाकिस्तान से अलग होकर अपनी आज़ादी की घोषणा की थी।
भारत सरकार का कहना है कि राज्य में ग़ैर क़ानूनी रूप से रह रहे लोगों को चिह्नित करने के लिए ये रजिस्टर ज़रूरी है। बीते वर्ष जुलाई में सरकार ने एक फ़ाइनल ड्राफ़्ट प्रकाशित किया था जिसमें 40 लाख लोगों का नाम शामिल नहीं था जो असम में रह रहे हैं. इसमें बंगाली लोग हैं, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं।
इस सप्ताह की शुरुआत में प्रशासन ने घोषणा की थी कि पिछले साल एनआरसी में शामिल किए लोगों में से भी एक लाख और लोगों को सूची से बाहर किया जाएगा और उन्हें दोबारा अपनी नागरिकता साबित करनी होगी 31 जुलाई को एनआरसी की अंतिम सूची जारी होगी, इसलिए रजिस्टर से बाहर किए गए लोगों में से आधे लोग खुद को सूची से बाहर किए जाने के ख़िलाफ़ अपील कर रहे हैं।
1980 के दशक के अंतिम सालों से ही रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया के साथ ही सैकड़ों ट्रिब्यूनल स्थापित किए जा रहे हैं. वे नियमित रूप से संदेहास्पद मतदाता या ग़ैरक़ानूनी घुसपैठियों को विदेशियों के रूप में पहचान कर रहे हैं जिन्हें देश के निकाला जाना है। नागरिक रजिस्टर और ट्रिब्यूनल ने असम के विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान वाले अल्पसंख्यकों में एक भय पैदा कर दिया है.और कहा यह भी जा रहा है क़ि इसके भय से 51 लोग आत्महत्त्या कर चुके हैं। असम के संकट के केंद्र में बाहर से आने वाले कथित घुसपौठियों पर वो बहस है जिसकी वजह से मूल आबादी और बंगाली शरणार्थियों के बीच जातीय तनाव पैदा हो गया है।
आबादी की शक्ल बदलने, ज़मीनों और आजीविका की कमी और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने इस बहस में आग में और घी डालने का काम किया है कि राज्य में किसे रहने का अधिकार है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि 2015 में जबसे सिटिज़न रजिस्टर को अपडेट करने की शुरुआत हुई है, सूची से बाहर जाने की स्थिति में नागरिकता छिन जाने और डिटेंशन सेंटर में भेजे जाने के डर से बहुत से बंगाली हिंदू और मुस्लिम लोगों ने खुदकुशी कर ली है।
सिटिज़न फॉर जस्टिस एंड पीस संगठन के ज़ामसेर अली ने असम में आत्महत्या के ऐसे 51 मामलों की सूची बनाई है. उनका दावा है कि इन आत्महत्याओं का संबंध, नागरिकता छिनने की संभावना से उपजे सदमे और तनाव से है। इनमें से अधिकांश आत्महत्याएं जनवरी 2018 के बाद हुईं, जब अपडेट किए हुए रजिस्टर का पहला ड्राफ़्ट सार्वजनिक किया गया।
नागरिक अधिकार कार्यकर्ता प्रसेनजीत बिस्वास इस रजिस्टर को एक बहुत बड़ी मानवीय आपदा क़रार देते हैं जो धीरे -धीरे विकराल बनती जा रही है और जिसमें लाखों नागरिक राज्यविहीन बनाए जा रहे हैं और उन्हें प्राकृतिक न्याय के सभी तरीक़ों से वंचित किया जा रहा है। असम पुलिस स्वीकार करती है कि ये मौतें अप्राकृतिक हैं, लेकिन उसका कहना है कि इन मौतों को नागरिकता पहचान को लेकर चल रही प्रक्रिया से जोड़ने के लिए उनके पास पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं।
पिछले साल जबसे एनआरसी का फ़ाइनल ड्राफ़्ट प्रकाशित हुआ है तबसे इस तरह के मामले बढ़े हैंजिन लोगों ने खुदकुशी की उन्हें या तो संदेहास्पद मतदाता घोषित कर दिया गया था या एनआरसी सूची से उन्हें बाहर कर दिया गया था,जो बहुत दुखद है। नागरिक अधिकार कार्यकर्ता ज़ामसेर अली के अनुसार, असम के बारपेटा ज़िले में एक दिहाड़ी मज़दूर 46 साल के सैमसुल हक़ ने पिछले नवंबर में आत्महत्या कर ली क्योंकि उनकी पत्नी मलेका ख़ातून को सूची में शामिल नहीं किया गया था।
साल 2005 में मलेका को संदेहास्पद मतदाता घोषित कर दिया गया था लेकिन बारपेटा के फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में वो ये मामला जीत गईं. इसके बावजूद उनका नाम वोटर लिस्ट या एनआरसी में शामिल नहीं हो पाया,कुछ मामलों में एनआरसी की छाया ने कई पीढ़ियों पर अपना असर डाला है।
इसी साल मार्च में असम के उडालगिरी ज़िले में एक दिहाड़ी मज़दूर 49 साल के भाबेन दास ने खुदकुशी कर ली, उसके परिवार का कहना है कि क़ानूनी लड़ाई के लिए लिए गए कर्ज़ को वो अदा नहीं कर सके थे।
दास के वकील ने एनआरसी में शामिल किए जाने की अपील की थी, इसके बावजूद उनका नाम जुलाई में जारी की गई सूची में शामिल नहीं हो पाया,इस परिवार में एनआरसी को लेकर ये दूसरी त्रासदी थी, क्योंकि 30 साल पहले उनके पिता ने भी खुदकुशी कर ली थी क्योंकि उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहा गया था। हालांकि उनकी मौत के कुछ महीने बाद ही ट्रिब्यूनल ने उन्हें भारतीय घोषित कर दिया था। खरुपेटिया कस्बे में जब स्कूल टीचर और वकील निरोड बारन दास अपने घर में मृत पाए गए थे, तो उनके दोस्तों और रिश्तेदारों का कहना है कि उस समय उनके शव के पास तीन दस्तावेज मिले थे।
एक एनआरसी नोटिफ़िकेशन जिसमें उन्हें विदेशी घोषित किया गया था, एक सुसाइड नोट, जिसमें कहा गया था कि उनके परिवार का कोई भी व्यक्ति इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है और पत्नी को लिखा गया पत्र जिसमें दोस्तों से लिए गए छोटे कर्ज़ को अदा करने की बात कही गई थी। उनके भाई अखिल चंद्र दास ने कहा, “साल 1968 में वो ग्रेजुएट हुए थे और 30 सालों तक पढ़ाया. उनके स्कूल के सर्टिफ़िकेट से साबित होता है कि वो विदेशी नहीं थे. उनकी मौत के लिए एनआरसी लागू करने वाले अधिकारी ज़िम्मेदार हैं।
पूर्वोत्तर में नागरिकता विधेयक को लेकर हो रही राजनीतिक गहमागहमी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भाजपा हमेशा असम के हितों की रक्षा करेगी। उन्होंने तीन जनजातीय स्वायत्त परिषदों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देने के लिए ट्विटर के माध्यम से राज्य के लोगों को धन्यवाद करते हुए कहा कि राज्य में तीन जनजातीय स्वायत्त परिषद के चुनावों में भाजपा को मजबूत समर्थन के लिए मैं असम की बहनों और भाइयों का आभार व्यक्त करता हूं। भाजपा असम के विकास और समृद्धि के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। बहरहाल, पूर्वोत्तर में भाजपा के कई सहयोगी दल नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 के खिलाफ हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी की अंतिम सूची बनाने के लिए 31 जुलाई तक की समय सीमा तय की है। असम की राज्य सरकार तेजी से ये सूची तैयार कर रही है।