उत्तर प्रदेश में इस बार परिवर्तन की बयार बह रही है। जिस तरह से समाजवादी पार्टी के साथ हुए रालोद सहित अन्य पार्टियों के गठबंधन को लोग सराह रहे हैं और अखिलेश यादव को पसंद कर रहे हैं उससे योगी आदित्यनाथ की सरकार फिर से आनी मुश्किल लग रही है। उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी प्रमुखता से सामने आ रही है। इससे लग रहा है कि इस बार प्रदेश में भाजपा सरकार की राह कठिन है। 2017 का विधानसभा चुनाव भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर चेहरे पर लड़ी थी लेकिन इस बार प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री योगी का चेहरा चर्चांओं में है। गौरतलब है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री चेहरे में कहीं नहीं दिखाई दिए थे। लेकिन जब प्रदेश में बहुमत आया तो अचानक योगी आदित्यनाथ प्रकट हुए और मुख्यमंत्री बने। शुरुआत में कहा गया कि उत्तर प्रदेश में ‘डबल इंजन’ की सरकार होगी और विकास कार्य अभूतपूर्व होंगे। लेकिन ‘डबल इंजन’ की सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह उत्तर प्रदेश पर ध्यान देने की बजाय दूसरेप्रदेशों पर ही केंद्रित रहे। कहा गया कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी योगी को पसंद नहीं कर रही है।
भाजपा के चुनावी एजेंडा में मुख्यमंत्री योगी का व्यक्तित्व उत्तर प्रदेश में मुख्य मुद्दा है तो अखिलेश उनके सबसे प्रबल प्रतिद्वंद्वी बने हुए हैं। यह बात उत्तर प्रदेश के गावों और शहरों के साथ ही गली नुक्कड़ों की गपशप में साफ नजर आ रही है। इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी बड़े नेता के रूप में सामने आ सकते हैं। जाटों के साथ ही गुर्जर मतदाताओं और किसान मतों के बल पर जयंत चौधरी इस बार सपा के गठबंधन में करिश्माई परिणाम लाएंगे। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस अब भी खेल से बाहर ही दिखाई देती है। लेकिन सबसे चौंकाने वाले परिणाम बसपा को लेकर आ सकते हैं। मायावती की बसपा पार्टी अब गंभीर प्रतिद्वंद्वी नहीं रह गई है।
बसपा सुप्रीमो मायावती का चुनावी अभियान अभी तक बहुत सीमित दिख रहा है। अब जब वह निकली भी हैं तो मायावती का जोर अपनी बात कहने पर ही सीमित है, जबकि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी बीजेपी और योगी पर सवाल तो उठा रही हैं लेकिन उनकी भाषा में वह आक्रामकता नहीं है। हालांकि महिलाओं के बीच प्रियंका गांधी लोकप्रिय हैं। देखने में आ रहा है कि मुख्यमंत्री योगी और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश की भाषा की जो आक्रामकता है, उसके चलते ही अब तक चुनावी अभियान इन्हीं दो के बीच केंद्रित दिख रहा है। हालांकि पिछले दिनों रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी भी अपनी भाषा में भाजपा के प्रति व्यंग्यात्मक शैली दिखाकर जनता में चर्चा में आ गए हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विशेषकर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल का गठबंधन मजबूती से सामने आ रहा है। हालांकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा कैराना के पलायन और मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर मतदाताओं के बीच धार्मिक कार्ड खेलते हुए नजर आ रही है। जिसमें जनता कोई रुचि नहीं दिखा रही है। फिलहाल, उत्तर प्रदेश का यह चुनाव मुद्दा विहीन है। मुद्दों की बात कोई नहीं कर रहा है। सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस की जीत और हार के बीच की इस बहस में कई ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब जनता को नहीं मिल पा रहा है। सवाल यह हैं कि जनता के मुद्दे क्या हैं? जनता की समस्या क्या है? उनके लिए प्राथमिकता क्या हैं?
उत्तर प्रदेश में इस बार भाजपा अपराध के मुद्दे पर जनता के बीच जा रही है, जबकि दूसरे मुद्दे गौण होकर रह गए हैं। योगी सरकार बनने के बाद माफिया और अपराधी पर लगाम लगाने के लिए जिस प्रकार का अभियान चला भाजपा उसकी याद लोगों को दिलाने की कोशिश में जुटी हैं। दूसरी तरफ विपक्ष उन पर ठोको राज चलाने की बात कर रहा है। इसे भी योगी अपनी सफलता ही बता देते हैं और विपक्ष पर माफिया को संरक्षण देने की बात करते हैं। एनसीआरबी के वर्ष 2021 में आए आंकड़े देखे तो कहानी कुछ और ही सच बयां कर रही हैं। वर्ष 2019 की तुलना में 2020 में अपराध के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई थी। वह भी तब जब कोरोना का लॉकडाउन लगा हुआ था। प्रदेश में 66,01,285 गैरजमानती अपराध के मामले दर्ज किए गए। ये ऐसे मामले रहे, जिसमें अपराधी की गिरफ्तारी के लिए पुलिस को किसी वारंट की जरूरत नहीं होती है। इस तरह देखा जाए तो अपराध के मामलों में उत्तर प्रदेश आगे रहा। बिकरू में जिस प्रकार से 9 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई वह भी प्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर गया।
उत्तर प्रदेश में 7 चरणों में चुनाव होना है। जिसमें पहले चरण का चुनाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनाव से जन मुद्दे गायब रहे हैं। यहां कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाकर ध्रुवीकरण कराने का प्रयास किया गया है। 2013 में हुए मुजफ्फर नगर के दंगों की यादें ताजा कराई गई हैं। भाजपा की ओर से बताने का प्रयास हो रहा है कि पहले की तस्वीर क्या थी और योगी सरकार में क्या बदलाव हुए हैं। भाजपा की ओर से गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, राजनाथ और मुख्यमंत्री योगी ने कमान संभाल रखी है। अमित शाह ने कैराना से प्रचार की शुरुआत की और पलायन का मुद्दा लोगों को याद दिलाया। इसके बाद बुलंदशहर, अलीगढ़ में माफिया अपराधी कानून व्यवस्था को लेकर विपक्ष को घेरते दिखे।
उत्तर प्रदेश की चुनावी चर्चा में इस बार अल्पसंख्यकों की चिंताएं आमतौर पर कम ही दिखाई दे रही हैं। सब जानते हैं कि अल्पसंख्यक वोट ज्यादातर उसी पार्टी को जाते हैं जो भाजपा को हराता हुआ दिखता है। इस समय अल्पसंख्यक मतों की तरफ अधिकतर पार्टियों का ध्यान न के बराबर है। न सिर्फ राजनीतिक पार्टियां बल्कि धर्मनिरपेक्ष नेता और लोग भी इधर की तरफ से चुप्पी साधे हैं। निश्चित तौर पर यह इस बात का संकेत है कि राज्य में धर्मनिरपेक्ष शक्तियां किस तरह कमजोर हैं।
उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों को बाबर, औरंगजेब और जिन्ना के कामों के जवाब शुरू से देने होते हैं। भाजपा ने तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक नारा भी चलाया है ‘गन्ना और जिन्ना।’ जिसके जरिए वह किसानों और अल्पसंख्यक मतदाताओं को विभाजित करने की रणनीति में जुटी है।