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साल के अंत में होने वाले गुजरात, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों और अगले साल होने वाले नौ राज्यों के चुनावों के साथ-साथ भाजपा नेतृत्व ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति पर अमल करना शुरू कर दिया है। पार्टी ने पिछले चुनाव में हारी हुई लगभग 141 लोकसभा सीटों की जिम्मेदारी अपने विभिन्न मंत्रियों को सौंपना शुरू कर दी है। हर मंत्री अगले दो साल तक इन सीटों पर जाकर लगातार काम करेंगे और जीत में बदलने की रणनीति बनाएंगे। इनमें उत्तर प्रदेश की 14 लोकसभा सीटें भी शामिल हैं।


मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के तीन साल पूरे होने पर ही पार्टी ने लोकसभा चुनाव की रणनीति को आकार देना शुरू कर दिया था। इसके तहत उसने पिछली बार यानी 2019 के लोकसभा चुनाव में हारी हुई सीटों को अपना अगला बड़ा लक्ष्य बनाया है। इसके लिए उसने उत्तर प्रदेश में हारी हुई 14 सीटों के लिए पार्टी ने चार समूह बनाए हैं। इनमें सपा, बसपा कांग्रेस के कब्जे वाली सीटें शामिल हैं।


वेस्ट यूपी के सहारनपुर, नगीना और बिजनौर की सीटों की जिम्मेदारी रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को सौंपी गई है। रायबरेली, मऊ घोसी, श्रावस्ती और अंबेडकर नगर की जिम्मेदारी केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर संभालेंगे। केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह मुरादाबाद, अमरोहा, संभल और मैनपुरी का काम देखेंगे। राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी को जौनपुर, गाजीपुर एवं लालगंज की जिम्मेदारी सौंपी गई है।


अन्य प्रमुख मंत्रियों में स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया को पंजाब की लुधियाना, संगरूर और हिमाचल प्रदेश की मंडी सीट की जिम्मेदारी सौंपी गई है। जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पंजाब की आनंदपुर साहिब सीट की जिम्मेदारी संभालेंगे। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव महाराष्ट्र की बुलढाणा और औरंगाबाद की सीटों पर जीत की रणनीति बनाएंगे।


केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडे तेलंगाना की नलगोंडा, महबूबनगर और नगरकुरनूल की जिम्मेदारी संभालेंगे। केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला तेलंगाना की आदिलाबाद, पेडापल्ली, मेंढक और जाहिराबाद एवं राज्य मंत्री प्रहलाद पटेल को छत्तीसगढ़ की रायगढ़ और झारखंड की गिरिडीह सीट का काम सौंपा गया है।


वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण महाराष्ट्र की बारामती और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा एवं छत्तीसगढ़ की कोरबा की सीटों का काम देखेंगे। अन्य राज्यों की सीटों के लिए भी केंद्रीय मंत्रियों को जिम्मेदारी सौंपी जा रही है। अश्विनी चौबे को केरल की त्रिशूर सीट की जिम्मेदारी सौंपी गई है।


यूपी में 2024 के महामुकाबले के लिए एनडीए के इन घटक दलों ने पीएम मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और सीएम योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में अभी से अपने-अपने दांव चलने शुरू कर दिए हैं। दूसरी तरफ अखिलेश की राजनीतिक मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद आजम खान भी अखिलेश को कोई राह दिखाने की बजाए अपनी ही दिक्कतों में उलझे और उन दिक्कतों के लिए अखिलेश को जिम्मेदार मानते हुए उन पर तंज कसते नजर आ रहे हैं।


रामपुर और आजमगढ़ में उपचुनाव में मिली हार के बाद अखिलेश यादव ने पार्टी की ओवरहालिंग शुरू की जरूर है लेकिन फिलहाल इसका कोई फायदा नजर नहीं आ रहा है। उल्टे चाचा शिवपाल यादव और ओमप्रकाश राजभर से दूरियों का समाजवादी पार्टी को नुकसान साफ दिख रहा है। केशव देव मौर्य भी सपा से नाराज चल रहे हैं। कुल मिलाकर अखिलेश के सारे प्रयोग एक-एक कर फेल होते नजर आ रहे हैं।


राजनीतिक विश्लेषक तो यहां तक कहने लगे हैं कि सपा की राजनीति चरमरा गई है। यूपी सियासत में अब उनके पास कोई समीकरण नहीं बचा है। अखिलेश ने पार्टी इकाइयों को भंग करके खुद को एक्शन मोड में दिखाने की कोशिश अवश्य की है लेकिन सपा के लिए नई संभावनाओं पर काम करते नजर नहीं आ रहे हैं। आगे का रास्ता क्या होगा, 2024 में बीजेपी का मुकाबला कैसे करेंगे इसकी कोई रणनीति फिलहाल नहीं दिखती है।

उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी के उत्थान के पीछे सबसे बड़ा आधार मुस्लिम-यादव वोटों को बताया जाता था लेकिन 2017 के बाद से लगातार यह फॉर्मूला नाकाम होता नजर आ रहा है। दरअसल बीजेपी ने यादव वोटों को अपने पाले में लाने के लिए पिछले एक दशक में काफी काम किया है। समाजवादी पार्टी की राजनीति को एक परिवार तक सीमित बताकर और समाज के बीच बीजेपी कैडर की एक नई लीडरशिप खड़ी कर पार्टी कुछ हद तक इसमें कामयाब भी रही है।

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