अपनी मौत से दो दिन पहले ही स्वामी ने बॉम्बे हाईकोर्ट(bombay highcourt) में एक याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत एक ऐसी धारा की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी जो किसी अभियुक्त की ज़मानत की प्रक्रिया को बेहद मुश्किल बना देती है।
जेल में बंद आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टैन स्वामी(STAN SWAMY) के निधन के बाद ये सवाल उठ रहा है कि 84 वर्ष की आयु के व्यक्ति को बार-बार मांगे जाने पर भी क्यों ज़मानत नहीं दी गई?
यूएपीए की धारा 43डी (5) की वजह से स्टैन स्वामी को नहीं मिली ज़मानत
स्वामी की याचिका में यही कहा गया था कि यह धारा UAPA के प्रावधानों के तहत किसी भी अभियु्क्त की ज़मानत को तकरीबन असंभव बना देती है।
स्टैन स्वामी: सबसे बुजुर्ग शख़्स जिन पर लगा आतंकवाद का आरोप
क़ानून के कई जानकार कहते रहे हैं कि धारा 43डी (5) की वजह से “न्याय की प्रक्रिया ही सज़ा बन जाती है।” देशभर में UAPA के तहत गिरफ्तार अनेक अभियुक्त कई वर्ष जेलों में विचाराधीन क़ैदियों की तरह बिताते हैं जबकि उनके मुक़दमे की सुनवाई भी शुरू नहीं हो पाती.।
इस क़ानून के तहत रिहाई कितनी मुश्किल?
इस एक्ट के तहत जिस व्यक्ति पर आतंकवाद से संबंधित आरोप लगे हों उसे ज़मानत पर या निजी मुचलके पर तब तक रिहा नहीं किया जा सकता जब तक कि जमानत याचिका पर सरकारी वकील का पक्ष सुन न लिया जाए।इस एक्ट के तहत अगर अदालत यह मान ले कि जो आरोप लगाए गए हैं वो पहली नज़र में (सुनवाई से पहले ही) सही हो सकते हैं तो ऐसी स्थिति में ज़मानत पर रिहाई नहीं हो सकती।
“क़ानून के जानकारों का कहना है कि सरकारी वकील के विरोध करने पर जमानत ट्रायल कोर्ट से लगभग नामुमकिन हो जाता है।”
ऐसा नहीं है कि UAPA के मामलों में अभियुक्तों को ज़मानत नहीं मिलती, कुछ उदाहरण हैं जब अभियुक्तों को ज़मानत पर रिहा किया गया है। Delhi riots के मामले में गर्भवती सफ़ूरा ज़रगर को तब ज़मानत मिली थी जब सरकारी वकील ने इसका विरोध नहीं किया था, उसके पहले उनकी ज़मानत की याचिकाएँ ख़ारिज कर दी गई थीं।
इसी तरह दिल्ली के दंगों के सिलसिले में यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किए कुल 22 लोगों में से तीन छात्र नेताओं–देवांगना कलिता, आसिफ़ इक़बाल तन्हा और नताशा नरवाल–को 13 महीने जेल में रहने के बाद पिछले महीने ज़मानत मिली है। इनमें से ज़्यादातर मामलों में ज़मानत की याचिकाएँ पहले कई बार ख़ारिज हो चुकी थीं।
इसी वर्ष फ़रवरी में बॉम्बे हाई कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव मामले के आरोपी बीमार कवि और कार्यकर्ता वरवर राव को चिकित्सा आधार पर छह महीने के लिए अंतरिम ज़मानत दी थी। ज़मानत देते वक़्त अदालत ने कहा था कि भीमा-कोरेगांव मामले में अभी सुनवाई शुरू होने में लंबा समय लग सकता है इसलिए अभियुक्त के स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें ज़मानत दी जा रही है।