सल्ट उपचुनाव का परिणाम चाहे जो भी आए, मगर इस चुनाव ने कांग्रेस के अंदरूनी मतभेदों को न सिर्फ उजागर किया है, बल्कि और गहरा दिया है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या कांग्रेस सल्ट की तरह भविष्य में भी खेमेबाजी में ही उलझी रहेगी? क्या चुनावी समर में कार्यकर्ता इमानदारी से अपनी भूमिका निभाते हुए शहीद हो जाएंगे और दिग्गज एक-दूसरे पर आरोप मढ़कर पल्ला झाड़ते रहेंगे? कांग्रेस महासचिव, कार्य समिति के सदस्य और पूर्व सीएम रह चुके हरीश रावत के खिलाफ शिष्टाचार की मर्यादा लांघ आरोप लगाने वाले प्रदेश उपाध्यक्ष रणजीत रावत पर कोई कार्यवाही न करना राज्य प्रभारी देवेंद्र यादव, प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह एवं नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश की भूमिका पर सवालिया निशान लगा रहा है
उत्तराखण्ड की सल्ट विधानसभा सीट के उपचुनाव ने प्रदेश की राजनीति खासकर कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में ज्वार पैदा कर दिया है। यह उपचुनाव 2022 के विधानसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी के बीच न सिर्फ राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई का अखाड़ा बना, बल्कि इसने कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति की तल्खियों को एक झटके में उघाड़ दिया। भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई लड़ने के साथ कांग्रेसी नेता आपस में भी लड़ते नजर आए। सल्ट में पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत की चुनावी जनसभाओं से चंद घंटे पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व विधायक रणजीत रावत ने जिस प्रकार हरीश रावत पर व्यक्तिगत हमला बोला उसने कांग्रेस की राजनीति के अंतर्विरोधों को खुलकर सामने ला दिया। प्रदेश संगठन के पदाधिकारी द्वारा राष्ट्रीय संगठन के महासचिव पर एक महत्वपूर्ण चुनाव के समय ये हमला शायद अप्रत्याशित नहीं था। लेकिन जो अप्रत्याशित था, वह है प्रभारी देवेंद्र यादव, प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष डाॅ इंदिरा हृदयेश की चुप्पी। ये हमला निश्चित तौर पर कांग्रेस प्रत्याशी को लाभ पहुंचाने की नीयत से तो नहीं किया गया था।
प्र्रदेश संगठन के मुखिया प्रीतम सिंह और निर्वाचित विधायकों की नेता डाॅ. इंदिरा हृदेश को शायद यहां पर अनुशासन भंग होता नजर नहीं आया क्योंकि शायद निशाने पर हरीश रावत थे। सल्ट विधानसभा का उपचुनाव निश्चित तौर पर नए प्रभारी देवंेद्र यादव ने एक रणनीति के तहत लड़वाया जिसमें बड़े नेताओं से लेकर छोटे कार्यकर्ताओं की भी जवाबदेही तय की गई थी। ऊपर से कांग्रेस एक छाते के अंदर समग्र रूप से एक नजर आई। लेकिन उस छाते में छेद करने वाले कम नहीं थे। जैसा कि प्रदेश कांग्रेस का चरित्र है, वही पुरानी कहानी नजर आई जहां कार्यकर्ता अपनी भूमिका इमानदारी से निभाते नजर आए लेकिन क्या नेता भी अपनी भूमिका इमानदारी से निभा सके, ये तो 2 मई को चुनाव परिणामों से पता चलेगा। लेकिन अभी इतना तय है कि सल्ट उपचुनाव का परिणाम भाजपा या कांग्रेस जिसके भी पक्ष में हो कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति को एक हद तक प्रभावित करेगा। मतगणना के शेष बचे समय में सभी नेताओं को परिणाम का इंतजार है और वो तैयार बैठे हैं कि चुनाव परिणाम को किस प्रकार पार्टी के अंदर के विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल करना है।
सल्ट विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के अंदर टिकट की मारामारी के चलते ये अंदाज पहले से था कि जिसे टिकट नहीं मिलेगा वो आक्रामक रहेगा, लेकिन ये अंदेशा किसी को नहीं था कि ये आक्रमण व्यक्तिगत स्तर तक पहुंच जाएगा। हरीश के प्रति रणजीत रावत की तल्खी पिछले कुछ समय से जरा ज्यादा ही नजर आ रही थी। एक बार उन्होंने हरीश रावत का मानसिक संतुलन खोने और उन्हें आराम करने की सलाह दी थी फिर हरीश रावत के कोरोना से संक्रमित होने पर उनके अस्पताल में भर्ती होने पर सवाल उठाए थे। लेकिन 15 अप्रैल को हरीश रावत की सल्ट उपचुनाव में जनसभाओं से एक घंटा पूर्व हरीश रावत को डरा हुआ हरीश रावत बता कई प्रकार के व्यक्तिगत हमले किए। ऐन-चुनाव से पहले उनका हरीश रावत पर प्रहार किसके राजनीतिक नफे-नुकसान के लिए था इसका उत्तर वो ही दे सकते हैं, लेकिन ये उस कांग्रेस के फायदे के लिए तो कतई नहीं था जिस कांग्रेस की मजबूती का वो दावा करते हैं। गाहे-बगाहे कांग्रेस प्रत्याशी गंगा पंचोली के लिए रणजीत रावत एवं उनके समर्थकों के बयान कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने वाले ही थे।
रणजीत रावत के पुत्र व सल्ट के ब्लाॅक प्रमुख विक्रम रावत को टिकट दिलाने के लिए प्रीतम गुट ने कहीं भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इसकी पृष्ठभूमि बनाते हुए आर्येद्र शर्मा और रणजीत रावत के प्रति सहानुभूति रखने वाले रानीखेत के विधायक एवं सदन में उपनेता करन माहरा को सल्ट का पर्यवेक्षक बनाया गया था। जिन्होंने अपनी संस्तुति विक्रम रावत के पक्ष में दी थी। सूत्र बताते हैं कि एक बैठक में विक्रम रावत की जबरदस्त पैरवी करते हुए यहां तक कहा गया कि गंगा पंचोली को टिकट न मिलने की दशा में पार्टी में सिर्फ गंगा पंचोली का नुकसान पार्टी को झेलना पडे़गा, लेकिन विक्रम को टिकट न मिलने की दशा में रणजीत रावत की नाराजगी कांग्रेस को 15 से 20 सीटों पर नुकसान पहुंचा सकती है। वो बात अलग है कि हरीश रावत पर हमला करते-करते रणजीत रावत अप्रत्यक्ष रूप से उन स्वर्गीय गोविंद सिंह माहरा एवं स्व. पूरन सिंह माहरा को सल्ट में कांग्रेस के कमजोर होने का जिम्मेवार ठहरा बैठे जिनकी राजनीतिक विरासत आज करण माहरा संभाले हुए हैं। ऐन चुनाव से पूर्व हरीश रावत पर रणजीत रावत का हमला पार्टी के दिग्गजों को भले ही विचलित न कर पाया हो और हरीश रावत के विरोधियों को भले ही खुश होने का मौका दे गया हो, लेकिन इसने नए प्रभारी देवंेद्र यादव के उन प्रयासों को पलीता लगा दिया जो 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी को खड़ा करने की अपनी मुहिम में सल्ट में पार्टी को एक रखने का प्रयोग कर रहे थे।
राजनीति जहां संभावनाओं का खेल है, वहीं इसका विरोधाभाषी स्थाई चरित्र है जहां कुछ भी स्थाई नहीं है। 2017 से पहले के परिदृश्य को देखें और उसमें आज की परिस्थिति को मिलाकर देखें तो कांग्रेस की आंतरिक राजनीति 2017 के मुकाबले आज शीर्षासन करती नजर आती है। तब के मुकाबले आज बिल्कुल विपरीत परिदृश्य। हरीश रावत के खास रहते 2017 तक रणजीत रावत के निशाने पर जो लोग थे, आज उन्हीं लोगों के साथ रहकर रणजीत के निशाने पर हरीश रावत हैं। राजनीति में निष्ठाओं के विचलन का ये ताजातरीन उदाहरण है। नई राजनीति का दिलचस्प पहलू कि न यहां दोस्त स्थाई है न दुश्मन, क्योंकि विचारधाराएं अब कोई मायने नहीं रखती। दुश्मन का दुश्मन आपका दोस्त। भले ही उसने आपको कितना ही अपमानित किया हो, लेकिन उसके द्वारा आपके दुश्मन का अपमान आपके अपमान को भुला देता है। कभी राजधानी देहरादून के सचिवालय के चतुर्थ तल में हरीश रावत द्वारा सर्वशक्तिमान बनाकर बैठाए गए व्यक्ति से प्रताड़ित आज उन्हीं की शरण में हैं। 2017 में कांगे्रस की पराजय के लिए जिस बदनामी को जिम्मेदार ठहराते थे आज उसी बदनामी को ओढ़कर कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व मिशन 2022 को फतह करने की मंशा रखता है। हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, सतपाल महाराज जैसे नेताओं के साथ दुव्र्यहार किसी से छुपा नहीं था। मंत्रियों की अक्सर शिकायत रहती थी कि हमारे क्षेत्र में किन योजनाओं की जरूरत है हमें वो सलाहकार के माध्यम से भेजने को कहा जाता है।

राजनेता कभी-कभी स्मृति विलोप का भी शिकार हो जाते हंै या फिर कुछ घटनाओं को याद करना नहीं चाहते। 19 जनवरी 2016 और 24 फरवरी की दो घटनाएं स्मरण रखनी चाहिए। 19 जनवरी 2016 को तत्कालीन वित्तमंत्री डाॅ इंदिरा हृदयेश के ड्रीम प्रोजेक्ट अंतरराट्रीय स्टेडियम की प्रगति का जायजा लेने तत्कालीन खेल मंत्री दिनेश अग्रवाल के साथ मुख्यमंत्री के औद्योगिक सलाहकार रणजीत पहुंचते हैं और इंदिरा हृदयेश को न तो आमंत्रित किया जाता है, न ही विश्वास में लिया जाता है। इस पर इंदिरा हृदयेश अपनी नाराजगी का सार्वजनिक इजहार करती हैं। 24 फरवरी 2016 को खली के कार्यक्रम की रूपरेखा रणजीत रावत को सौंपी जाती है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में हुए इस कार्यक्रम में रणजीत द्वारा इंदिरा हृदयेश को अलग-थलग कर दिया जाता है। यहां तक कि उन्हें कार्यक्रम के पास के लिए भी सीमित कर दिया जाता है। उनके इस अपमान के चलते उनके समर्थक रणजीत रावत विरोधी नारों के साथ हल्द्वानी की सड़कंे जाम कर देते हैं। जिसका कोपभाजन तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को भी होना पड़ता है। दिन भर की गहमागहमी और हाईवोल्टेज ड्रामे के बाद हरीश रावत, डाॅ इंदिरा हृदयेश को स्वयं मनाने आते हंै वरना इंदिरा हृदयेश तो कार्यक्रम के बहिष्कार पर अड़ी थीं। उस वक्त जब रणजीत रावत से इंदिरा जी की नाराजगी की बावत पूछा गया तो उनका साफ कहना था कि ये इंदिरा हृदयेश की विधानसभा सीट का मामला नहीं है इसलिए उनकी नाराजगी का क्या औचित्य। कभी पुरानी घटनाएं भविष्य के लिए नजीर भी बन जाती हंै। खासकर उन लोगों के लिए जिनके गठबंधनों की डोरी किसी को गिरानेभर के लिए जुड़ी हो।
हरीश रावत के विरुद्ध रणजीत रावत के बयानों की आवाज शीर्ष नेताओं तक तो नहीं पहुंची या फिर उन्होंने उसे अनसुना कर दिया, लेकिन उसकी गूंज आम कार्यकर्ताओं तक जरूर पहुंची। रामनगर के पूर्व ब्लाॅक प्रमुख एवं वर्तमान में ज्येष्ठ प्रमुख संजय नेगी ने प्रदेश नेतृत्व से रणजीत रावत के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की मांग कर राजनीति को गरमा दिया है। निचले स्तर से कार्यकताओं की आवाज तो उठ ही रही है। 2 मई को सल्ट उपचुनाव का परिणाम इन विवादों का पटाक्षेप शायद ही करे। जनता का निर्णय जो भी हो कांग्रेस का एक तबका गंगा पंचोली की जीत के दावों पर सवाल खड़ा कर रहा है। एक वरिष्ठ नेता कहते सुने गए कि गंगा पंचोली की जीत में संदेह है, चुनाव पैसों से लड़ा जाता है और पैसा खर्च करने वालों को पार्टी ने टिकट दिया नहीं। शायद ये पहाड़ के मतदाताओं के विवेक पर भी सवाल खड़े करता है। रणजीत रावत के खिलाफ उठती अनुशासन की कार्रवाई की मांग के बीच कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि जब मेयर चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों के खिलाफ कथित रूप से काम करने के आरोपों के चलते प्रदेश महामंत्री को पार्टी निकाल सकती है, तो अब पार्टी के बड़े नेताओं की चुप्पी उनकी दोहरी मानसिकता दिखाती है।
न नोटिस-न जांच, पार्टी से किया बाहर


31 मार्च 2020 की रात सोशल मीडिया फेसबुक पर वायरल हुई एक पोस्ट ने उत्तराखण्ड कांग्रेस की राजनीति में हलचल मचा दी थी। हरीश रावत को उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनने पर हार्दिक बधाई देती हुई यह पोस्ट पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और उनके गुट के लोगों को असहज कर गई थी। कहा तो यहां तक गया कि प्रीतम सिंह और उनके समर्थक कांग्रेसियों के रात भर फोन बजते रहे थे। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हरीश रावत के प्रदेश अध्यक्ष बनने की इस खबर के चलते पार्टी के दो लोगों पर रातोंरात कार्यवाही कर दी गई। जिनमें पहले नंबर पर रामनगर निवासी कुलदीप शर्मा तथा दूसरे नंबर पर हल्द्वानी की माला वर्मा थीं। दोनों पर फर्जी खबर को सोशल मीडिया पर प्रचारित करने के आरोप लगे। साथ ही पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया।
अपनों के सामने लड़ो चुनाव, पाओ ईनाम


एक तरफ सोशल मीडिया पर दो लाइन लिख देने की सजा पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित और साथ में प्राथमिक सदस्यता भी खत्म। दूसरी तरफ अपनी पार्टी के प्रत्याशी के सामने बगावत करो, नामांकन भरो, चुनाव लड़ो और बाद में पार्टी का पदाधिकारी बनकर ईनाम भी पाओ। ऐसा ही होता है उत्तराखण्ड कांग्रेस में याद कीजिए वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव। जिसमें सहसपुर विधानसभा क्षेत्र से पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय थे। लेकिन पार्टी के ही नेता आर्येन्द्र शर्मा ने उनके सामने नामांकन भर दिया। परिणाम किशोर उपाध्याय की हार के रूप में सामने आया। लेकिन पार्टी ने आर्येन्द्र शर्मा को बाहर का रास्ता दिखाने के बजाय एक साल बाद ही पदाधिकारी बनाकर ईनाम दे दिया। ऐसा ही ईनाम महेश शर्मा को दिया गया। शर्मा ने कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव प्रकाश जोशी के सामने न केवल दावेदारी की, बल्कि बाद में बगावत कर चुनाव लड़ा। उन्हें भी इनाम स्वरूप पार्टी ने एक साल बाद ही प्रदेश का महामंत्री बना दिया। हद तो तब हो गई जब तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के सामने गदरपुर की महिला नेत्री शिल्पी अरोड़ा ने किच्छा से नाॅमिनेशन कर दिया। हालांकि बाद में शिल्पी को बिठा दिया गया। लेकिन उन्हें भी इसके फलस्वरूप पार्टी संगठन के मुखिया ने आईटी सेल का प्रदेश अध्यक्ष बनकर प्रतिष्ठित कर दिया।
अब तक होता यह आया था कि जब भी पार्टी के किसी नेता पर कार्यवाही की जाती है उससे पहले उसको एक नोटिस भेजा जाता है। लेकिन नैनीताल सेवा दल कांग्रेस के जिलाध्यक्ष कुलदीप शर्मा और महिला मोर्चा की प्रदेश पदाधिकारी माला वर्मा को पार्टी की तरफ से कोई नोटिस भेजकर उन्हें अपनी तरफ से सफाई देनेे का मौका तक नहीं दिया गया। यही नहीं बल्कि किसी समर्पित कार्यकर्ता और पदाधिकारी को निष्कासित करने से पहले पार्टी की अनुशासन समिति के द्वारा एक जांच कराई जाती हैै। लेकिन कुलदीप शर्मा और माला वर्मा के मामले में ऐसा करना उचित नहीं समझा गया। यह तो तब है जब सोशल मीडिया पर हरीश रावत के पार्टी अध्यक्ष बनने की यह खबर पहली अप्रैल की रात ‘अप्रैल फूल’ मनाने के मकसद से चलाई गई थी। माला वर्मा और कुलदीप शर्मा का कसूर सिर्फ यह था कि वह दोनों हरीश रावत के समर्थक थे। यह पहली बार नहीं है जब हरीश रावत के किसी समर्थक पर पार्टी द्वारा कार्यवाही की गई हो, बल्कि इससे पहले पार्टी के प्रदेश महामंत्री खजान पाण्डेय को पार्टी से बाहर कर दिया गया था। खजान पाण्डेय पर आरोप था कि उन्होंने नगर निकाय चुनावों में हल्द्वानी से मेयर पद के पार्टी प्रत्याशी सुमित हृदयेश के खिलाफ बयानबाजी की। खजान को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप के साथ पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इसके अलावा पार्टी के नैनीताल नगर अध्यक्ष रहे मारूति शाह, चमोली से सेवादल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे संजय रावत, रुद्रप्रयाग से पार्टी के अनुसूचित मोर्चा जिलाध्यक्ष रहे कुंवर लाल आर्य आदि को भी नगर निकाय चुनावों में पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में निष्कासित किया जा चुका है।
बात अपनी-अपनी
क्या करना चाहिए यह हमें न समझाएं
सल्ट में हम सबने मिलकर काम किया है। मैं वहां पूरे 15 दिन रहा हूं। हमारी पार्टी प्रत्याशी जीत रही हैं। आप 2 मई को पार्टी प्रत्याशी का परिणाम देख सकते हैं। जो लोग यह कह रहे हैं कि रणजीत रावत और विक्रम रावत पार्टी प्रत्याशी के साथ नहीं रहे उन्हें मैं यह बताना चाहता हूं कि विक्रम रावत प्रचार में स्वयं मौजूद थे। अखबार में छपी इस बात का प्रमाण है कि रणजीत रावत और विक्रम रावत के फोटो प्रत्याशी के पोस्टर में छपे थे। रणजीत रावत ने जो कहा उनकी वह बयानबाजी पर्सनल थी। इसका पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। हमें यह मामला अनुशासन समिति को देना है या इस पर जांच बिठाएंगे, यह हमारा इंटरनल मामला है। इस पर आप हमें नियम-कानून न बताएं तो बेहतर है। मगर पूर्व में ऐसा हुआ है कि जिस तरह आप बता रहे हैं कि निकाय चुनाव के दौरान विवादास्पद बयानबाजी के चलते खजान पाण्डेय सहित कई नेताओं को हटाया गया तो आप हमें इसके प्रमाण दीजिए, हम इसके बाद विचार करेंगे कि आगे हमें क्या निर्णय लेना है।
देवेंद्र यादव, प्रभारी उत्तराखण्ड कांग्रेस
अहसान फरामोश हैं रणजीत
जिस व्यक्ति को हरीश रावत जी ने नेता बनाया, जमीन से उठाकर राजनीति के मुकाम तक पहुंचाया, यही नहीं बल्कि अपना सलाहकार बनाकर पावरफुल बनाया वह आज हरीश रावत जी पर लांछन लगाकर अपनी ओछी राजनीति का परिचय दे रहे हैं। हरीश रावत जी ने अपने 45 साल के राजनीतिक करियर में किसी के लिए कोई अपशब्द नहीं बोला, अगर कोई उनके बारे में अनाप-शनाप बोलेगा तो कार्यकर्ताओं को बुरा लगना स्वाभाविक है। जो हरीश रावत जी पर आरोप लगा रहे हैं, वह खुद गुनाहगार हैं, बल्कि कहा जाएगा कि वह अहसान फरामोश हैं।
हरीश धामी, विधायक धारचूला
अनुशासन समिति करे तय
हमने बार-बार कहा है कि कांग्रेस के लिए कोई भी दल चुनौती नहीं है, अगर कांग्रेस के लिए चुनौती है तो वो कांग्रेस के ही लोग हैं। इसके चलते ही कांग्रेस में कई बार फूट पड़ चुकी है। चाहे वह 1969 का मामला हो या 1977 का, जब हेमवती नंदन बहुगुणा को अलग किया गया। अगर तब बहुगुणा को अलग नहीं करते तो कांग्रेस मजबूती से आगे बढ़ती। कांग्रेस की ऐसी ही आपसी फूट हमें उत्तराखण्ड में नुकसान पहुंचा रही है। 2017 में कांग्रेस नेताओं ने महज 55 दिन में 550 लोकतंत्र बचाओ आंदोलन किए। लेकिन जब विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस अपने आपको नहीं बचा पाई। सल्ट में पिछले दिनों जो कुछ हुआ, उसका मुझे पहले से ही पता था। सल्ट में कांग्रेस को खड़ा करने में रणजीत रावत का योगदान उल्लेखनीय है। हमने कहा था कि सल्ट से हरीश रावत को चुनाव लड़ाया जाए। इतना ही नहीं, बल्कि हमने भाजपा को भी सुझाव दिया था कि वह अपने सीएम को सल्ट से चुनाव लड़ाए। सल्ट से गंगा पंचोली को लड़ाया गया। अगर गंगा को ही सल्ट से चुनाव लड़ाया जाना था तो रणजीत रावत को पहले ही मना कर दिया जाता। आज जो कुछ सल्ट में हुआ है, उसके लिए हम खुद जिम्मेदार हैं। हम पार्टी के लिए खुद ही चुनौती बन जाते हैं। रही बात विवादास्पद बयान की तो इसके लिए हमारी अनुशासन समिति है। अगर पार्टी को लगता है कि रणजीत रावत ने कुछ गलत किया है, तो यह मामला निश्चित तौर पर अनुशासन समिति के पास जाना चाहिए।
किशोर उपाध्याय, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कांग्रेस
अपने कहे पर अडिग हूं
मैंने पहले ही कहा था कि गंगा पंचोली का क्षेत्र में भारी विरोध है। लेकिन कुछ लोगों ने अपने राजनीतिक हित साधने के लिए इसका उल्टा कर दिया। इसके चलते मैं सल्ट गया ही नहीं। सल्ट की हार-जीत में न कुझे क्रेडिट दिया जाएगा और न ही डेबिट। वह दूसरी बात है कि हमारी पार्टी प्रत्याशी ने घर-घर जाकर मेरा ही नाम लिया। एक तरफ तो मेरे नाम पर, मेरे विकास पर पार्टी प्रत्याशी ने वोट मांगे और दूसरी तरफ मेरा पोस्टर और बैनर में न नाम लिखा गया और न ही फोटो छापा गया। जिन सड़कों से गुजर कर वोट मांगे गए वह मेरे ही द्वारा बनाई गई थी। लेकिन सल्ट के इस अभूतपूर्व विकास को मतदातादाओं को बताया तक नहीं गया। रही बात जीतने-हारने की तो प्रत्याशी की जीत-हार में मेरा नाम नहीं, बल्कि उनका ही जाएगा जो नेतृत्व कर रहे थे। मैंने जो भी किसी के लिए बयान दिया है मैं आज भी उस पर अडिग हूं। इसकी सच्चाई अगर जाननी है तो अभी भी गार्ड और सफाईकर्मी वहां मौजूद हैं उनसे पूछ लो। वह बता देंगे कि मैंने जो कहा है वह सच है। अगर मैंने कुछ गलत बोला होता तो मेरे खिलाफ अब तक जांच बैठा दी जाती। अनुशासन समिति के पास मामला पहुंचा दिया जाता। लेकिन मैंने ऐसा कुछ कहा ही नहीं है जिससे पार्टी को यह कदम उठाना पड़े।
रणजीत रावत, पूर्व विधायक सल्ट
राम और श्याम की जोड़ी थी
यह कांगे्रस की पुरानी प्रथा है। मेरे नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस के नेता क्या-क्या कह रहे थे यह आप सब जानते हैं। पार्टी का एक नेता मेरे खिलाफ खुलेआम चैराहों पर विरोध करता देखा गया। हालांकि बाद में उसके खिलाफ कार्यवाही हुई थी, लेकिन मैंने लोकसभा चुनाव में सभी पूर्वाग्रहों से दूर रहकर पार्टी हित में काम किया जिसका नतीजा यह निकला कि कांग्रेस को हल्द्वानी में सबसे ज्यादा मत मिले थे। सल्ट में रणजीत रावत के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। पहले उनके बेटे का पद छीना गया और बाद में टिकट भी काट दिया गया। आक्रोशपूर्ण कुछ बातें अगर हुई हैं तो उन्हें पार्टी के विरोध में नहीं देखा जाना चाहिए। वैसे भी हरीश रावत जी और रणजीत रावत जी की जोड़ी राम और श्याम की जोड़ी के रूप में चर्चित रही है। मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि सल्ट में हमारी पार्टी प्रत्याशी को महिला होने का फायदा मिला है। भाजपा से मतदाताओं की नाराजगी दिखी। हमारी पार्टी के प्रभारी देवेंद्र यादव ने सल्ट में 15 दिन रहकर चुनाव को संघर्षपूर्ण बना दिया।
सुमित हृदयेश, युवा कांग्रेस नेता
मैं इस बारे में कुछ नहीं बोलूंगा।
दिनेश अग्रवाल, पूर्व कैबिनेट मंत्री
मैं इस बारे में कोई टिप्पणी करना उचित नहीं समझता हूं।
गोविंद सिंह कुंजवाल, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष
इस बारे में मुझसे कुछ न बुलवाओ तो बेहतर है।
करण माहरा, विधायक रानीखेत