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ओबीसी आरक्षण से सियासत की संजीवनी तलाशने में जुटी सपा 

उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण मुद्दे को लेकर समाजवादी पार्टी किसी तरह की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती है,वो सड़क से लेकर न्यायालय तक लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है। भाजपा के खिलाफ गांव-गांव और घर-घर जाकर माहौल भी बना रही है। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश ओबीसी मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए समाजवादी पार्टी ने उच्चतम न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया है।

 

न्यायालय में याचिका दायर कर मांग की है कि बिना आरक्षण के किसी भी कीमत पर निकाय चुनाव न कराया जाए। इस याचिका को समाजवादी पार्टी के नेता डॉ. राजपाल कश्यप ने दायर द्वारा दायर की गई है। इसमें मांग की गई है कि संविधान में दिए गए अधिकारों का किसी भी कीमत पर हनन नहीं होना चाहिए। भारतीय संविधान का हवाला देते हुए अपील की गई है कि ओबीसी आरक्षण का पालन किए बिना किसी भी सूरत में निकाय चुनाव न कराया जाए, क्योंकि इससे पिछड़े वर्ग के लोगों के हितों की अनदेखी होगी। इस तरह से आरक्षण को बचाने के लिए समाजवादी पार्टी सड़क से लेकर कानूनी लड़ाई तक लड़ रही है। मैनपुरी उपचुनाव में मिली जीत के बाद से अखिलेश यादव के हौसले बुलंद है। और अब उनके हाथों ओबीसी आरक्षण का मुद्दा लग गया है,जिसके जरिए भाजपा को बड़े आसानी से घेर सकती है। न्यायालय के फैसला के बाद से  ही ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर सपा आक्रमक रुख अपनाकर भाजपा के चिंता में डाल रखा है। अखिलेश यादव से लेकर शिवपाल यादव सहित पूरी समाजवादी पार्टी ने सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक मोर्चा खोल रखा है। आरक्षण के मुद्दे अखिलेश और उनकी पार्टी फ्रंटफुट पर खड़ी हुई नजर आ रही थी। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके यह तक कह दिया है कि  भाजपा ने अभी तो पिछड़े वर्ग के आरक्षण का हक छीना है और बाबा साहब डॉ. अंबेडकर के द्वारा दिए गए दलितों के आरक्षण को भी छीन लेगी। भाजपा सरकार बाबा साहब के दिए संविधान को भी खत्म करने की साजिश कर रही है।

उत्तर प्रदेश में भाजपा ओबीसी समुदाय के सहारे सत्ता के वनवास खत्म करने में सफल रही थी,साल 2017-2017 विधानसभा और 2014-2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ओबीसी जातियों के दम पर जीत दर्ज की थी। साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की अभी से तैयारी कर रही है।  ऐसे में कोर्ट के निर्णय ने भाजपा के लिए सियासी चिंता बढ़ा दी है तो सपा के लिए राजनीतिक संजीवनी की तरह है। निकाय चुनाव पर न्यायालय का फैसला आते ही प्रदेश में भाजपा के ओबीसी चेहरा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से लेकर मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी डैमेज कन्ट्रोल में जुट गए। ये तीनों ही नेता सरकार और संगठन की तरफ से ओबीसी समुदाय की आवाज बनकर खड़े हो गए और साफ कर दिया है कि प्रदेश में बिना ओबीसी आरक्षण के निकाय चुनाव नहीं होंगे। इसके बावजूद सपा इसे लेकर भाजपा को घेरने में जुटी है ,क्योंकि सपा पता है कि बिना ओबीसी का विश्वास जीते उसकी सत्ता में वापसी नहीं हो सकती है।

उत्तर प्रदेश की सियासत मंडल कमीशन के बाद ओबीसी समुदाय के इर्द-गिर्द सिमट हुई है। उत्तर प्रदेश की सभी राजनीतिक दलों ओबीसी को केंद्र में रखते हुए अपनी राजनीतिक एजेंडा सेट कर रही हैं,क्योंकि उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा वोटबैंक पिछड़ा वर्ग का है। 52 फीसदी पिछड़ा वर्ग की आबादी है, जिसमें 43 फीसदी गैर-यादव बिरादरी का है।ओबीसी की 79 जातियां हैं, जिनमें सबसे ज्यादा यादव और दूसरे नंबर कुर्मी समुदाय की है। भाजपा ने गैर-यादव ओबीसी के सहारे प्रदेश में अपनी जगह बनाई है और सपा को सत्ता से बाहर होना पड़ा है। अखिलेश यादव को लगता है कि यही मौका है,जब भाजपा को ओबीसी विरोधी कठघरे में खड़े कर पिछड़े वर्ग के विश्वास को दोबारा से जीत सकते हैं। न्यायालय का फैसला आते ही सपा ने मोर्चा खोल रखा है और भाजपा  को ओबीसी विरोधी बताने में जुटी है, जिसके लिए सड़क से उच्चतम न्यायालय तक मशक्कत कर रही हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में भाजपा  का सारा सियासी आधार ओबीसी पर ही टिका है और वो खिसका तो सत्ता की राह मुश्किल हो जाएगी।

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