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खतरे में सोरेन की सत्ता

झारखण्ड की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से सियासी तापमान सातवें आसमान पर है। एक ओर जहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर सीएम रहते हुए अपने नाम से पत्थर खदान के बाद परिवार के नाम पर जमीन लेने के आरोप चलते उनकी कुर्सी खतरे में है वहीं दूसरी तरफ भ्रष्टाचार के आरोप में ईडी द्वारा गिरफ्तार आईएएस पूजा सिंघल को लेकर राज्य में सियासी तूफान खड़ा हो गया है।

दरअसल, झारखण्ड के गवर्नर रमेश बैस ने हेमंत सोरेन पर सीएम रहते अपने नाम से माइनिंग का ठेका लेने के मामले में संविधान के प्रावधानों के तहत चुनाव आयोग से राय मांगी है। चुनाव आयोग को इस मामले की तहकीकात करके राज्यपाल को सलाह देना होगा। अगर चुनाव आयोग ने आरोपों को सही ठहराते हुए राज्यपाल को अपनी राय भेजी तो सीएम सोरेन को विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य ठहराया जा सकता है, जिसकी वजह से उनकी कुर्सी भी जा सकती है।

राज्यपाल ने चुनाव आयोग से मांगी राय के जबाब में चुनाव आयोग ने कहा है कि ‘हम जिला खनन विभाग की ओर से हेमंत सोरेन को रांची जिले के अंगारा ब्लॉक में 0. 88 एकड़ जमीन के लिए जून, 2021 में दिए गए खनन पट्टे (लेटर ऑफ इंटेंट) के मुद्दे को समग्र रूप में देखेंगे।

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9 और धारा 8ए के तहत पद पर रहते हुए सरकारी ठेकों और सप्लाई को लेकर भ्रष्ट आचरण पाए जाने पर एक निर्वाचित प्रतिनिधि की अयोग्यता का प्रावधान है।’ चुनाव आयोग इस मामले को संविधान के उन प्रावधानों के तहत भी देखेगा, जिसमें संवैधानिक पद पर रहते हुए ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के तहत अयोग्य करार दिया जा सकता है। हेमंत सोरेन पर सदस्यता रद्द होने का खतरा समय के साथ बढ़ता ही जा रहा है। यह खतरा चुनाव आयोग के द्वारा जारी नोटिस के बाद और बढ़ गया है। रांची के अनगड़ा में पत्थर खदान लीज मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9ए के तहत सदस्यता रद्द होने की संभावना है। अनगड़ा खदान लीज का खुलासा पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने किया था। सवाल उठने लगे हैं कि अगर हेमंत सोरेन की सदस्यता जाती है, तो क्या राज्य में हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार भी चली जाएगी?

गौरतलब है कि राज्य की 82 विधानसभा सीटों में जेएमएम विधायकों की संख्या 30 है जबकि उसके सहयोगी दल कांग्रेस के विधायकों की संख्या 17 है। वहीं सरकार में शामिल राजद विधायक की संख्या एक मात्र है। इतना ही नहीं माले विधायक विनोद सिंह का समर्थन भी हेमंत सोरेन सरकार के साथ है, यानी बहुमत के लिए जरूरी 41 के मुकाबले गठबंधन वाली सरकार के पास 49 विधायकों का आंकड़ा है। इसके उलट बीजेपी के पास बाबूलाल मरांडी को जोड़ते हुए 26 विधायक हैं जबकि उसकी सहयोगी आजसू के पास 2 विधायक हैं। सदन में 2 निर्दलीय विधायक और 1 एनसीपी के विधायक भी हैं। इन सभी को मिला दें तो आंकड़ा 31 तक पहुंचता है लेकिन यही से शुरू होती है असल राजनीति। हेमंत सोरेन की सदस्यता जाने के साथ सबसे पहले गठबंधन के अंदर नए नेता का चुनाव की अहम भूमिका होगी। उस नेता के नाम पर सबकी सहमति भी सबसे बड़ी चुनौती होगी। इस दौरान जेएमएम के नाराज विधायक लोबिन हेम्ब्रम और विधायक सीता सोरेन के रुख पर भी सबकी नजर रहेगी।

गठबंधन की परीक्षा यही खत्म नहीं होती कांग्रेस विधायकों की एकजुटता भी इस आंकड़े को मजबूत बनाने में अहम भूमिका अदा करने वाले हैं। समय-समय पर बागी रुख अपनाने वाले कांग्रेस विधायकों के टूटने की भी संभावना जताई जा रही है। अगर यह सब कुछ ठीक भी रहा तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता जाने के बाद राजभवन की भूमिका बढ़ जाएगी। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को लेकर पहल जरूर होगी और अगर राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा नए नेता की अगुवाई वाली सरकार से पहले कर दी जाती है तो गठबंधन वाली सरकार सत्ता से दूर हो जाएगी। हालांकि यह सब कुछ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के द्वारा चुनाव आयोग को जवाब भेजने और चुनाव आयोग के द्वारा अगला कदम उठाए जाने के बाद तय हो पाएगा।

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