नए कृषि कानूनों के खिलाफ देशभर के किसान करीब डेढ़ महीने से आंदोलित हैं। किसान संगठनों और सरकार के बीच कल आठ जनवरी को आठवें दौर की वार्ता फिर बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गई। अगली वार्ता के लिए 15 जनवरी की तारीख पर सहमति बनी है। किसान संगठनों के नेता न तो सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा के लिए तैयार हुए और न ही कोई और विकल्प पेश कर सके।
सरकार की ओर से इन सभी मुद्दों पर विशेषज्ञ समिति के गठन की बात कही गई, जिसे किसान नेताओं ने खारिज कर दिया। वे कृषि कानूनों को रद करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी वाला कानून बनाने की मांग पर अड़े रहे। वहीं सरकार ने कहा कि विभिन्न राज्यों के किसान संगठनों ने कृषि कानूनों का स्वागत किया है। किसान नेताओं को राष्ट्रहित का भी ध्यान रखना चाहिए। इस बीच अब किसानों के इस आंदोलन के समर्थन में कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आज नौ जनवरी को पार्टी महासचिवों और प्रभारियों के साथ किसान आंदोलन को लेकर चर्चा करेंगी। सूत्रों के अनुसार किसान आंदोलन को समर्थन करने की रणनीति बनाने के लिए एक वर्चुअल बैठक बुलाई गई है। कांग्रेस बीते सितंबर में केंद्र द्वारा लागू किए गए नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में किसानों के समर्थन में रही है।
सोनिया गांधी ने इससे पहले एक बयान जारी कर कहा था कि आजादी के बाद से वर्तमान सरकार सबसे अहंकारी सरकार रही है और उसने केंद्र को इन कानूनों को निरस्त करने और राज धर्म का पालन करने की सलाह दी थी।
सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस किसानों के आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ कांग्रेस आक्रामक होने की योजना बना रही है। इस बैठक में सोनिया गांधी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को सड़कों पर उतरने और आंदोलन को तेज करने का आदेश दे सकती हैं।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कल आठ जनवरी को कांग्रेस नेताओं को राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर तीन विवादास्पद कृषि कानूनों का विरोध करते हुए कहा कि कृषि कानूनों को निरस्त करने से कम कुछ भी स्वीकार्य नहीं होगा।