12 मार्च 1999 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के थाना सहसों के चौकीदार देवी चरण के घर मुखबिरी के शक में डाकू सलीम गुर्जर ने धावा बोला था। वह उनकी कक्षा 5 में पढ़ने वाली 13 साल की बेटी सुरेखा को अगवा करके ले गया था। जंगल में ले जाकर सलीम ने उससे शादी कर ली। बात 2004 की है। जब वह सलीम के बेटे की मां बनने वाली थी, तभी मध्यप्रदेश के भिंड जिले की पुलिस और सलीम के गैंग के बीच मुठभेड़ हो गई। गर्भवती होने के कारण सुरेखा मौके से भाग ना सकी और पुलिस के हाथ लग गई। अगले ही दिन पुलिस अभिरक्षा में भिंड के जिला अस्पताल में सुरेखा ने एक बेटे को जन्म दिया था। 2006 में सलीम का एनकाउंटर हो गया था।
1999 से लेकर 2006 तक सुरेखा के बागी जीवन के दौरान जब गांव में पंचायत चुनाव हुआ करते थे, तब सब डकैत गांव-गांव घूमकर अपने मनमाफिक लोगों को जिताने के लिए फरमान जारी करते थे और गांव के लोगों को सख्त हिदायत दी जाती थी कि उनके चुने हुए प्रत्याशियों को वोट नहीं किया तो उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा। तब उन डकैतों की टोली में सुरेखा भी हुआ करती थी। 2006 के बाद सुरेखा नेआपराधिक जीवन से मुक्ति पाने के बाद 14 साल जेल में बिताए।
जेल से आने के बाद समाज की मुख्य धारा से जुड़ने के कारण गांव के लोग अब सुरेखा का सम्मान करते है। इस सम्मान की बदौलत ही वह अब गांव की प्रधान बनने का सपना संजोए हुए है। फिलहाल वह बदनपुर से चुनाव लड़कर गांव का प्रतिनिधित्व करना चाहती है। हालाँकि सुरेख के तब के और अब के जीवन काल में जमीं आसमान का अंतर आ गया है। उस दौरान लोगो को वह और उनका गैंग बंदूक के बल पर प्रधान बना दिया करता था। लेकिन अब वह बंदूक के बल पर नहीं बल्कि लोगो के दिलो पर राज करके यह ताज पाना चाहती है। जिसके मद्देनजर सुरेखा हाथ जोड़कर लोगो से वोट देने की अपील कर रही है।