सोशल मीडिया ने जनसंचार में एक नई क्रांति की है। पहले अखबारों की जो खबरें लोगों को घंटों में मिलती थी , वे आज चाँद सेकेंड में दुनिया के हर कोने तक पहुँच रही हैं। सूचनाओं के आदान -प्रदान के लिए सोशल साइट्स दुनियाभर में लोकप्रिय हुई हैं, लेकिन इस लोकप्रियता के साथ ही इन साइट्स के चलते तमाम विवाद भी पैदा होते रहे हैं। यही वजह है कि कई देशों ने इनके खिलाफ कानून बने तो कहीं इन्हें प्रतिबंधित किया गया। कई जगहों पर इनके पक्षपातपूर्ण और भेदभावपूर्ण रवैए पर अंकुश लगाने की मांगें उठ रही हैं। इनके खिलाफ जुर्माने की भी बातें हो रही हैं।
इस बीच फ्रांस में डेटा निजता की निगरानी करने वाली इकाई सीएनआईएल ने गूगल पर 10 करोड़ यूरो (12.1 करोड़ डॉलर) और अमेजन पर 3.5 करोड़ यूरो (4.2 करोड़ डॉलर) का जुर्माना लगाया है। दोनों पर ये जुर्माना देश के विज्ञापन कुकीज नियमों का उल्लंघन करने के लिए लगाया गया है।
नेशनल कमीशन ऑन इंफोर्मेटिक्स एंड लिबर्टी (सीएनआईएल) ने एक बयान में कहा कि दोनों कंपनियों की फ्रांसीसी वेबसाइट ने इंटरनेट उपयोक्ताओं से विज्ञापन उद्देश्यों के लिए ट्रैकर्स और कुकीज को पढ़ने की पूर्वानुमति नहीं ली। ये कुकीज और ट्रैकर्स व्यक्ति के कंप्यूटर में खुद बखुद सहेज ली जाती हैं।
बयान में कहा गया है कि गूगल और अमेजन उपयोक्ताओं को यह बताने में भी विफल रहीं कि वे इस काम के लिए इन कुकीज का उपयोग करेंगी और किस तरह उपयोक्ता इनके लिए मना कर सकते हैं।
लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक भी लगातार विवादों में बनी है।इसको लेकर किसी न किसी मुद्दे पर दुनिया के अलग- अलग देशों से आवाज उठती रहती है। फेसबुक से अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप सरकार की तनातनी तो सबसे अधिक चर्चा में रही थी। फेसबुक कई बार डोनाल्ड ट्रंप पर कार्रवाई कर चुका है। कई बार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पोस्ट को विवादित और गुमराह करने वाली बताकर कार्रवाई कर चुका है। इससे डोनाल्ड ट्रंप को भारी अपमान भी सहना पड़ा था। इससे पहले ट्रंप की कई फेसबुक पोस्ट को ब्लॉक कर चुका है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर नकेल कसने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिया था जिसके जरिए सरकारी एजेंसियों को फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर नजर रखने के लिए ज्यादा शक्ति मिल रही है।
अमेरिका में हुए दंगों को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फेसबुक पर एक विवादास्पद पोस्ट डाला था। इस पर फेसबुक ने ट्रंप की पोस्ट पर कार्रवाई की थी और फेसबुक के कई कर्मचारियों ने ट्रंप का जमकर विरोध किया था।
बता दें कि अमेरिका की संघीय सरकार और 48 राज्यों ने फेसबुक पर लैंडमार्क एंटी ट्रस्ट अधिनियम के तहत मुकदमा दायर किया है। इसमें फेसबुक पर बाजार की प्रतिस्पर्धा को खत्म करने के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया लगाया गया है। अमेरिका फेसबुक के स्वामित्व वाले इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप के स्पिनऑफ के लिए जोर दे रहा है।
अमेरिकी सरकार का कहना है कि फेसबुक को इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप से अलग होना चाहिए। गौरतलब है कि यह विवाद मार्क जकरबर्ग के फेसबुक शुरू करने के 16 साल बाद आया है।
उस समय के बाद से अब तक फेसबुक 2.7 करोड़ उपयोगकर्ताओं के साथ दुनिया का सबसे बड़ा सोशल नेटवर्क बन गया है और इसकी मार्केट वैल्यू लगभग 800 बिलियन डॉलर की है। वहीं मार्क जकरबर्ग दुनिया के पांचवें सबसे अमीर व्यक्ति बन गए हैं।
Google से भी रहा है अमेरिका का विवाद
इससे पहले अमेरिकी सरकार की ओर से कानून विभाग ने अमेरिकी चुनावों से ठीक पहले अक्टूबर में गूगल (Google) पर मुकदमा दायर किया था। इसमें गूगल कंपनी पर पूरे ऑनलाइन सर्च और विज्ञापन बाजार पर कब्जा करने का आरोप लगाया था। फेसबुक और गूगल से एक ओर जहां आम लोगों और सोशल मीडिया को फायदा हुआ है, लेकिन वहीं दूसरी ओर इससे जर्नलिज्म (Journalism) को बहुत ज्यादा नुकसान भी हुआ है। इस नुकसान की भरपाई के लिए ऑस्ट्रेलियाई सरकार Google और Facebook पर बहु-मिलियन डॉलर का जुर्माने लगाने की तैयारी में जुट गई है। ऑस्ट्रेलियाई संसद में पेश प्रस्तावित कानून का पालन करने में विफल रहे तो इन मीडिया दिग्गजों को इनकी पत्रकारिता के चलते बहुत भारी जुर्माना देना पड़ेगा।
ऑस्ट्रेलियाई संसद के कोषाध्यक्ष जोश फ्राइडेनबर्ग ने तथाकथित न्यूज मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म मेनडेटरी बार्गेनिंग कोड की शुरुआत करते हुए इस बात का खुलासा किया कि ऑस्ट्रेलिया वह पहला देश होगा जो इन डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को पत्रकारिता संबंधी सामग्री के लिए न्यूज़ मीडिया को मुआवजा देगा। फ्राइडेनबर्ग ने संसद को बताया कि हम पारंपरिक मीडिया कंपनियों को प्रतिस्पर्धा या तकनीकी व्यवधानों की कठिनाइयों से बचाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं बल्कि हम एक समान स्तर का माहौल तैयार हो जहां बाजार की शक्ति का गलत इस्तेमाल न किया जा सके और मूल समाचार सामग्री निर्माण का उचित मुआवजा दिया जाये ।
इससे पहले की सांसद अगले साल इस संबंध में वोट दे, एक सीनेट समिति द्वारा इन कानूनों के मसौदे की जांच की जाएगी। कोड के उल्लंघन करने पर इन डिजिटल कंपनियों को 10 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर ($ 7.4 मिलियन) का जुर्माना देना होगा या फिर ऑस्ट्रेलिया में अपने वार्षिक कारोबार के 10% के बराबर धन भरना होगा। यदि ये डिजिटल प्लेटफॉर्म और एक न्यूज़ बिजनेस तीन महीने की बातचीत के बाद भी किसी समाचार के लिए एक कीमत पर सहमत नहीं होते तब उस स्थिति में कम से कम दो वर्षों में भुगतान करने के लिए बाध्यकारी निर्णय लेने के लिए एक तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल नियुक्त किया जाएगा, तब पैनल आमतौर पर प्लेटफॉर्म या न्यूज़ बिजनेस के फाइनल ऑफर को पूर्ण रूप से स्वीकार करेगा। इस बिल में यह निर्दिष्ट नहीं किया गया है कि भुगतान कैसे किया जाएगा. डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और मीडिया व्यवसाय में इस्तेमाल की जाने वाली न्यूज़ सामग्री की मात्रा के आधार पर एकमुश्त या रेगुलर भुगतान पर सहमत हो सकते हैं. फेसबुक और Google ने कहा है कि वे टिप्पणी करने से पहले कानून के मसौदे को पढ़ेंगे। फेसबुक ने इससे पहले चेतावनी दी थी कि वह भुगतान करने के बजाए ऑस्ट्रेलियाई समाचार सामग्री को ब्लॉक कर देगा। गूगल भी पहले ही कह चुका है। प्रस्तावित कानूनों के परिणामस्वरूप Google Search और YouTube की स्थिति बदतर हो जाएगी. स्वयं पर खतरा मंडराएगा और यूजर का डाटा बड़े समाचार बिजनेस को सौंपा जा सकेगा।
ऑस्ट्रेलियाई सरकार इस बात से चिंतित है कि गूगल ऑनलाइन विज्ञापन का 53% हिस्सा ले रहा है जबकि फेसबुक उन ख़बरों को बिना कोई भुगतान किये 28% हिस्सा ले रहा है जो वो अपने यूजर्स के साथ शेयर करता है। देश के सबसे बड़े मीडिया संगठनों में से एक न्यूज़ कॉर्प ऑस्ट्रेलिया के कार्यकारी अध्यक्ष माइकल मिलर ने इस कानून का स्वागत किया है।इससे पहले भारत में भी सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट को लेकर देश की दो बड़ी पार्टियां सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी कांग्रेस में घमासान मचा था और विपक्षी पार्टी कांग्रेस का आरोप था कि सोशल मीडिया पक्षपात पूर्ण रवैया अपना रहा है।