भारत समाचार पत्रों के लिए press council of India का एक नियम होता है और उनके लिए code of ethics है, फिल्म्स के लिए censor board है। वहीं टीवी के लिए प्रोग्राम कोड है और इन सभी का अपना सेल्फ सेगुलेशन मैक्निज्म है। लेकिन सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए कुछ नहीं था। अब सरकार ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया के लिए कानून बना जा रही है। एक तरफ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अभिव्यक्ति की आजादी का दावा करते है तो वहीं अब सरकार इसके ऊपर अंकुश लगाने जा रही है। केंद्र सरकार अगले तीन महीनों के भीतर सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म को नियमित करने के लिए नया कानून लेकर आएंगी। इस बात की पुष्टी केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय और देश के कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर ने एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेस की।
सूचना प्रसारण मंत्रालय के मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने प्रेस कॉन्फ्रेस में कहा कि ” नई टेक्नोलॉजी का एक फल है कि डिजिटल मीडिया न्यूज पोर्टल भी बन गए। वैसे ही ओटीटी प्लेटफॉर्म आ गया। लेकिन एक फर्क रहा, जो प्रेस से आते है उन्हें प्रेस काउंसिल का कोड फोलो करना पड़ता है। लेकिन डिजिटल पोर्टल पर ऐसा कोई बंधन नहीं है। टीवी वालो को प्रोग्राम कोट फॉलो करना पड़ता है। इसलिए सरकार ने समझा कि एक लेवल क्लीन फील्ड होना चाहिए। सभी मीडिया हाउस का एक सम्मान न्याय है। इसलिए डिजिटल हो टीवी हो या प्रिटिंग हो, सभी को कुछ नियमों का पालन करना पड़ेगा। और लोगों की मांग भी बहुत थी।”
मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के इस बयान से साफ जाहिर है कि अब सभी न्यूज पोर्टल और ओटीटी प्लेटफार्म को भी सरकार के द्दारा पारित नियमों का पालन करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि “लोगों की मांग और सेकड़ों पत्र मिले। इस बार सदन में ओटीटी प्लेटफॉर्म से संबंधित 50 सवाल पूछे गए। जावडेकर ने कहा कि हमने ओटीटी प्लेटफॉर्म के मालिको से इस बाबत विस्तरित चर्चा की। मैंने खुद दिल्ली में दो मिटिंगे बुलाई। हमने ओटीटी प्लेटफार्म को कहा कि आप भी टीवी की तरह सेल्फ रेगुलेशन बनाए, लेकिन दुर्भाग्य से हुआ नहीं। हमने दोबारा मीटिंग की और कहा कि आप चाहे तो 100 दिनों के भीतर बना सकते है लेकिन फिर मीटिंग का भी कोई असर नहीं हुआ। इसलिए हमने तय किया सभी मीडिया के लिए इंटस्टिट्यूट मैकनिज्म होना चाहिए। क्योंकि मीडिया की आजादी लोकतंत्र का गहना है। लेकिन हर मीडिया की एक जिम्मेदारी होती है। ओटीटी प्लेटफार्म के लिए तीन तरह का तंत्र होगा।”
पहले नियम के मुताबिक सभी मीडिया हाउस, वेब पोर्टल और ओटीटी प्लेटफॉर्म को अपनी सारी जानकारी बतानी होगी। उनका मीडिया हाउस कहा है क्या वह ओटीटी प्लेटफॉर्म या पोर्टल पर पब्लिश करते है। जावड़ेकर ने कहा कि टीवी और प्रिंट की तरह डिजिटल के लिए भी एक नियामक संस्था बनाई जाएगी, जिसका अध्यक्ष कोई रिटायर्ट जज या प्रख्यात व्यक्ति हो सकता है। उन्होंने कहा, “जैसे ग़लती करने पर टीवी पर माफ़ी मांगी जाती है, वैसा ही डिजीटल के लिए भी करना होगा।” इसके अलावा कंटेंट पर उम्र के मुताबिक़ क्लासिफ़िकेशन करना होगा और पेरेंटल लॉक की सुविधा देनी होगी। उन्होंने कहा कि जहां तुरंत एक्शन की ज़रूरत हो, ऐसे मामलों के लिए सरकारी स्तर पर एक निगरानी तंत्र बनाया जाएगा।
भारत में अभी तक सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए कोई कानून नहीं आया था। लेकिन अब सरकार ने साफ कर दिया है कि आपकी अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाया जाएगा। सरकार ऐसा इसलिए कर रही है क्योंकि पिछले काफी समय से सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट शेयर करने, हिंसा को बढ़ावा देने और अन्य देशों के पोस्ट इस्तेमाल करने जैसी कई शिकायतें आई है। यहां एक तरफ हम सोशल मीडिया पर पहले कुछ भी लिखकर बोलकर या किसी की टिप्पणी को शेयर कर देते थे। लेकिन अब इन सभी चीजों पर सरकार लगाम लगाने जा रही है। देखा जाए तो सरकार अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट रही है। विशेषज्ञ मानते है कि अगर ऐसा कोई कानून आता है तो सरकार कभी भी अपनी आलोचना सुनना पंसद नहीं करेगी, और आलोचना करने वाले या सरकार विरोधी लिखने वाले लोगो के लिए काफी मुश्लिल दौर होगा।
क्या है सरकार की गाइड़लाइन?
वहीं देश के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि ” सोशल मीडिया भारत में अच्छा बिजनेस कर रही है, उन्होंने अच्छा बिजनेस किया है और भारत को मजबूत किया है। लेकिन पिछले कुछ समय में सोशल मीडिया के प्रति गैर-जिम्मेदाराना भूमिका की शिकायतें आ रही है। नई गाइडलाइन के बारें में जानकारी देते हुए कानून मंत्री ने कहा कि सोशल मीडिया को दो श्रेणियों में बांटा गया है। पहली एक इंटरमीडयरी और दूसरा सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया इंटरमीडरी। हम जल्दी इसके लिए यूज़र संख्या का नोटिफिकेशन जारी करेंगे।”
उन्होंने आगे कहा कि अगर सोशल मीडिया पर किसी व्यक्ति पर कथित टिप्पणी से दूसरे व्यक्ति की गरिमा को नुकसान पहुंचता है तो कार्रवाई की जाएगी। अगर किसी महिला की गरिमा को लेकर शिकायत आती है तो उस पर 24 घंटे के भीतर कार्रवाई की जाएगाी। कानून मंत्री ने कहा कि सोशल मीडिया से संबंधित कानून तीन महीनों के भीतर लागू किया जाएगा। सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को एक शिकायत निवारण संस्था बनानी होगी, और उसके ऑफिसर का नाम सार्वजनिक करना होगा। अधिकारी को 24 घंटे के भीतर शिकायत का पंजीकरण करना होगा और 15 दिनों के भीतर उस समस्या का निवारण करना होगा। उन्होंने कहा कि सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया को चीफ़ कंप्लाएंस ऑफिसर, नोडल कंटेन्ट पर्सन और एक रेज़ीडेट ग्रीवांस ऑफ़िसर नियुक्त करना होगा और ये सब भारत में ही होंगे। इसके अलावा शिकायतों के निपटारे से जुड़ी रिपोर्ट भी उन्हें हर महीने जारी करनी होगी।
दरअसल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम आधुनिक युग में अभिव्यक्ति की आजदी के नए माध्यम है। अगर दुनिया में कहीं भी कोई भी गलत घटना होती है तो आप इन प्लेटफॉर्मों के माध्यम से अपनी बात रख सकते है। पूरी दुनिया में यह माध्यम फैले हुए है, और इन्हें चाहने वाले भी करोड़ों है। वैसे तो हर देश में सरकारें सोशल मीडिया पर आजादी का पक्ष लेती हैं लेकिन हिंसा, आतंकवाद, साइबर बुलिंग और चाइल्ड एब्युज जैसे मामलों को बढ़ावा देने वाले कंटेंट को लेकर तमाम देशों ने निगरानी और नियमन के लिए तमाम संस्थाएं बनाई हैं और नियम भी तय किए हैं। हाल ही में अमेरिका के कैपिटल हिल में हुई हिंसा के बाद हजारों की संख्या में फेसबुक, ट्विटर से अकाउंट को हटाया गया। कई लोगों पर कार्रवाई की गई।
अन्य देशों में सोशल मीडिया पर कानून
लेकिन दूसरी तरफ अमेरिका सोशल मीडिया के सेल्फ रेगुलेशन का पक्षधर है। यूरोपीय देशों में देखा जाए तो ब्रिटेन में लंबे समय से सोशल मीडिया कंपनियों के सेल्फ रेगुलेशन पर सरकार का जोर है. लेकिन वहीं दूसरे प्रमुख यूरोपीय देश जर्मनी ने 2018 में NetzDG कानून बनाया। जो कि देश में 20 लाख से ज्यादा यूजर्स वाली सोशल मीडिया कंपनियों पर लागू होता है। आपत्तिजनकर कंटेंट पाए जाने पर उसे 24 घंटे के भीतर हटाना अनिवार्य है। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया ने 2019 में Sharing of Abhorrent Violent Material Act पारित किया. इसमें नियमों के उल्लंघन पर कंपनियों पर आपराधिक जुर्माना, 3 साल तक सजा जेल और कंपनी के ग्लोबल टर्नओवर पर 10 फीसद तक जुर्माने की व्यवस्था है। रूस में बना इमरजेंसी रूल एजेंसियों को ये अधिकार देता है कि वे किसी आपात स्थिति में ‘वर्ल्डवाइड वेब’ को स्विच ऑफ कर सकें। रूस का 2015 का डेटा लॉ सोशल सोशल मीडिया कंपनियों के लिए ये अनिवार्य करता है कि रूस के लोगों से जुड़े डेटा को रूस में ही सर्वर में स्टोर करना होगा। वहीं चीन में गूगल, ट्विटर और व्हाट्सऐप जैसी सोशल मीडिया साइड ब्लॉक है। वहां पर यूजर्स Weibo, Baidu and WeChat जैसे प्लेटफॉर्म डेवलप है।