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बड़ी भूमिका में छोटी पार्टियां

राज्यों के विधानसभा चुनावों में उतरी क्षेत्रीय पार्टियों का भी अपना ठोस जनाधार है। यही वजह है कि राष्ट्रीय पार्टियां उन्हें अपने गठबंधन का हिस्सा बनाने को विवश हैं

राज्यों के विधानसभा चुनावों में छोटी- छोटी क्षेत्रीय पार्टियां आज काफी महत्वपूर्ण हो गई हैं। राष्ट्रीय पार्टियों को इनके साथ गठबंधन के लिए विवश होना पड़ रहा है। पश्चिम बंगाल में अब्बास सिद्दिकी की ‘इंडियन सेक्युलर पार्टी’ (आईएसएफ) विधानसभा चुनाव में लेफ्ट और कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा है। जाहिर है कि आईएसएफ को लेफ्ट और कांग्रेस ने इसी लिए अपने गठबंधन में शामिल किया है कि राज्य में 30 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। इन मतों की अहम भूमिका है। बिहार चुनाव में पांच सीटें जीतने के बाद ओवैसी ने भी अपनी पार्टी एआईएमआईएम को बंगाल में लड़ाने का ऐलान किया है। इंडियन नेशनल लीग के जमीरूल हसन ने भी राज्य में चुनाव लड़ने का मन बना लिया है।

असम में छोटे दल चुनाव परिणाम पर बड़ा असर डाल सकते हैं। राज्य में बीजेपी नेतृत्व वाला गठबंधन कांग्रेस नेतृत्व वाले गठबंधन के साथ सीधी टक्कर में दिख रहा है। एक तीसरा मोर्चा स्थानीय पार्टियों एजेपी और आरडी का है। इन गठबंधनों के साथ असम की छोटी क्षेत्रीय पार्टियों की मौजूदगी का असर इस पूर्वोत्तर राज्य के चुनाव पर गहरा देखने को मिल सकता है। सबसे पहले बात करते हैं कि कौन सी क्षेत्रीय छोटी पार्टी इस चुनाव में बीजेपी का समर्थन कर रही है। इस पार्टी का नाम है, यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल)। यह असम के बोडोलैंड क्षेत्र की पार्टी है और पिछले साल बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) में बीजेपी के साथ इसने हाथ मिलाया था। पार्टी के मुखिया आल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के पूर्व अध्यक्ष प्रमोद बोरो हैं जिन्हें केंद्र और बोडो समूहों के बीच शांति समझौतों में अहम भूमिका के लिए जाना जाता है।

यूपीपीएल इस बार के चुनाव में बीजेपी के साथ है और आठ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। रोचक बात यह है कि पार्टी प्रदेश की तीन सीटों पर बीजेपी के साथ दोस्ताना मुकाबला भी करेगी।
असम में कांग्रेस गठबंधन की बात की जाए, तो छोटी क्षेत्रीय पार्टी के रूप में उसके पास बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट यानी बीपीएफ का साथ है। बीपीएफ बोडोलैंड क्षेत्र की एक प्रभावशाली पार्टी है और पूर्व में बीजेपी की साझीदार रह चुकी है। इसके मुखिया हेगरामा मोहिलारी हैं जिन्होंने इस बार कांग्रेस का हाथ थामने का फैसला किया है। असम की विधानसभा में बीपीएफ के पास 12 सीटें हैं। इस पार्टी की अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि पिछले साल दिसंबर में बीटीसी में 40 सीटों पर हुए चुनाव में बीपीएफ ने सबसे अधिक 17 सीटें जीती थीं। इस चुनाव में दूसरे नंबर पर यूपीपीएल थी जिसे 12 सीटें मिली थीं, जबकि बीजेपी को नौ और कांग्रेस को एक सीट मिली थी।

कांग्रेस के खेमे में आंचलिक गण मोर्चा (एजीएम) भी एक ऐसी ही क्षेत्रीय पार्टी है जो असम चुनाव पर असर डाल सकती है। राज्यसभा सांसद अजित कुमार भूयन के नेतृत्व वाली एजीएम इस बार कांग्रेस गठबंधन की तरफ से दो सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बीजेपी और कांग्रेस के अलावा असम में एक तीसरा मोर्चा भी सक्रिय है। असम जातीय परिषद (एजेपी) और राइजोर दल (आरडी) ने मिलकर एक गठबंधन इस बार असम के चुनाव में बनाया है। यह दोनों ही पार्टियां सीएए विरोधी आंदोलन की देन हैं।

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