केंद्र के प्रति नाराजगी और एंटी इनकंबेंसी को भुनाकर तमिलनाडु में 10 साल बाद एक बार फिर डीएमके की वापसी हुई है। 40 सालों में पहली बार दोनों पार्टियां अपने प्रमुख चेहरों जयललिता और करुणानिधि के बिना चुनाव लड़ रही थीं। डीएमके ने स्टालिन के नेतृत्व में तो, जयललिता के विरासत के झगड़े के बीच अन्नाद्रमुक ने ई पलानिस्वामी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा। ईपीएस की बड़ी सफलता सिर्फ यह रही कि वह जातिगत समीकरण बिठाकर न सिर्फ परंपरागत गढ़ पश्चिमी तमिलनाडु बचाने में सफल रहे बल्कि जयललिता की विरासत पर दावा पुख्ता करने में भी सफल रहे।
भाजपा से गठबंधन कर ईपीएस को भले ही 4 साल सरकार चलाने में मदद मिली, लेकिन चुनाव में यह नुकसानदेह साबित हुआ। अल्पसंख्यक मुस्लिम और ईसाई मतदाताओं ने उससे दूरी बना ली। विपक्षी दलों ने ईपीएस को भाजपा की रिमोट कंट्रोल सरकार साबित कर भाजपा के प्रति नाराजगी को जमकर भुनाया। कमल हसन टीटीवी दिनाकरण और अभिनेता विजयकांत की पार्टी भले ही 1 सीट भी न जीत पाई हो, लेकिन कई सीटों पर यह अन्नाद्रमुक को नुकसान पहुंचाने में जरूर सफल रही।
शशिकला को पार्टी से निकालने के चलते जहां दबंग थेवर और नाडार पार्टी से दूर हुए वहीं, 14 तटवर्ती जिलों में डीएमके अल्पसंख्यक ईसाई मछुआरों को साधने में ज्यादा सफल रही। डीएमके ने अडाणी पोर्ट, वेदांता समूह तथा केंद्र सरकार के बंदरगाह प्रोजेक्ट के विरोध को भी जमकर भुनाया। भाजपा ने उत्तर प्रदेश और बिहार की तर्ज पर तमिलनाडु में जातिगत मुद्दों को हवा देकर एक नए जातीय समीकरण का दांव खेला था, लेकिन वह कारगार साबित नहीं हुआ। जबकि कमल हासन की मक्कली नीधि मियाम (एमएनएम) को 2.52 प्रतिशत वोट मिले, टी टी वी धिनकरन की अम्मा मक्कल मुनेत्र कषगम (एएमएमके) को 2.35 प्रतिशत वोट मिले।
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उदारहण के लिए धिनकरन की एमएमके ने एआईएडीएमके की कम से कम 20 सीटों पर नुकसान पहुंचाया, जिसका फायदा डीएमके को हुआ। कमल हासन की एमएनएम पार्टी, जिस पर प्रतिद्वंद्वियों द्वारा आरएसएस की बी-टीम होने का आरोप लगाया गया था, वह कई जगहों पर एआईएडीएमके की तुलना में डीएमके के लिए एक खतरा था। एक और छोटी पार्टी नाम टैमिलर काची (एनडीके) जिसने कई सीटों पर अंतर रखा। हालांकि यह एक भी सीट जीतने में नाकाम रही, लेकिन पार्टी ने 2016 में पिछले विधानसभा चुनावों में 1 प्रतिशत से और 2019 के संसदीय चुनावों में 4 प्रतिशत से अपने वोट शेयर में सुधार किया। इसने कई सीटों पर डीएमके और एआईएडीएमके दोनों की गणना को बिगाड़ दिया। तमिलनाडू के नतीजें साफ दिखाते है कि पारंपरिक एआईएडीएमके वोट बैंक से अपने वोटों को आकर्षित करने वाले एएमएमके ने एआईएडीएमके की संभावनाओं को चोट पहुंचाई, विशेष रूप से करीब-करीब 20 सीटों पर।
नेवेली में, जहां डीएमके ने 977 वोटों के अंतर से जीत हासिल की, एएमएमके ने 2,230 वोट हासिल किए। कटपडी में, जहां डीएमके को 746 वोटों के अंतर से जीत मिली, वहीं एएमएमके को 1,066 वोट मिले। 2011 में एएमएमके और उसके सहयोगी कैप्टन विजयकांत की डीएमडीके मुख्य विपक्षी पार्टी थी, जो इस बार वोट शेयर (0.43%) में लगभग शून्य हो गई। कराइकुडी में, जहां कांग्रेस ने भाजपा नेता एच राजा को 21,589 वोटों के अंतर से हराया, वहीं एएमएमके ने 44,864 वोट हासिल किए, जबकि मयिलादुथुराई में, जहां कांग्रेस ने 2,742 वोटों के अंतर से जीत हासिल की, धिनारनारायण की पार्टी को 7,282 वोट मिले। मन्नारगुडी में डीएमके ने 37,393 मतों के अंतर से जीत दर्ज की। एएमएमके को 40,481 वोट मिले, जबकि पूर्व सत्ताधारी एआईएडीमके को 49,779 वोट मिले। हिरूपोर, शंकरनकोविल, सत्तुर अन्य सीटों में से थे जहाँ एएमएमके ने अन्नाद्रमुक की हार में भूमिका निभाई थी।
यहां तक कि जब एआईएडीएमके गठबंधन 2016 में 40.88 प्रतिशत के मुकाबले इस बार 39 प्रतिशत से अधिक वोट पाने में कामयाब रहा। हालांकि डीएमके जीत चुकी है। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में उसके वोट शेयर में गिरावट आई है जो पार्टी के लिए चिंता का विषय बन हुआ है। 2019 के लोकसभा चुनावों में, उसने 39 में से 38 सीटें जीतीं, जिसमें 52 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार यह घटकर 45-46 फीसदी पर आ गया।