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चहेते अफसरों की चांदी ही चांदी

केंद्र की मोदी सरकार को दूसरी बार सत्ता में काबिज हुए लगभग ढाई साल होने को हैं। कई आरोपों, विवादों के साथ पार्टी सत्ता पर काबिज है। विपक्षी दल लगातार आरोप लगाते रहे हैं कि भाजपा सरकार जानबूझकर संवैधानिक संस्थाओं की साख गिरा रही है। देश में संवैधानिक पदों की अपनी एक गरिमा होती है। बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग भी इस मुद्दे को लेकर कई बार आवाज उठा चुके हैं, लेकिन स्थिति जस की तस है। ताजातरीन मामलों में ईडी एवं सीबीआई निदेशक का कार्यकाल बढ़ाए जाने संबंधी नए अध्यादेश के साथ-साथ केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के पूर्व अध्यक्ष पीसी मोदी को राज्यसभा के महासचिव के रूप में नियुक्ति पर अब विवाद गहराता जा रहा है। 1 सितंबर को इस पद पर पूर्व महासचिव पीपीके रामचार्यलु को नियुक्त किया गया था। वर्तमान सरकार ने दो महीने के भीतर अचानक ही रामचार्यलु को हटाकर पीसी मोदी को राज्यसभा के महासचिव पद पर नियुक्त कर सबको हैरान कर दिया है।
करीब चालीस वर्षों तक राज्यसभा में सेवारत रामचार्यलु का कार्यकाल महासचिव के रूप में सबसे कम रहा। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा हस्ताक्षरित पीसी मोदी को नियुक्त करने के आदेश के बावजूद शीर्ष नेतृत्व पर सवाल खड़े किए जा रहे है।

गौरतलब है कि राज्यसभा का महासचिव पूरे राज्यसभा सचिवालय का प्रशासनिक प्रमुख होता है। राज्यसभा के इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के किसी अधिकारी को महासचिव के पद पर नियुक्त किया गया है। पीसी मोदी खासे विवादित छवि के अधिकारी रहे हैं। कुछ अर्सा पहले है एक वरिष्ठ आयकर अधिकारी पीसी मोदी पर गंभीर आरोप लगा चुके हैं। दरअसल जून 2019 में मुम्बई के मुख्य आयकर आयुक्त ने पीसी मोदी के खिलाफ वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से एक शिकायत की थी जिसमें उन्होंने एक ‘संवेदनशील मामले’ को छिपाने के लिए पीसी मोदी द्वारा उन्हें दबाव में लिए जाने का आरोप लगाया था। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि ‘यह आश्चर्यजनक और चौंकाने वाला निर्णय है। जब सत्र पहले ही बुलाया जा चुका था, तो अचानक यह फैसला क्यों लिया गया, इसके क्या कारण हैं? इसके पीछे क्या उद्देश्य और मंशा है, हमें यह पता लगाना होगा।’

खड़गे ने मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि ‘क्या उन्होंने भारत के उपराष्ट्रपति से परामर्श किया है जो सदन के अध्यक्ष भी हैं, हम नहीं जानते। वह भी हमें पता लगाना होगा। उन्होंने इतनी जल्दी में एक नया महासचिव क्यों नियुक्त किया है? उन्होंने रामाचार्युलु की जगह क्यों ली, जिन्हें सिर्फ दो महीने पहले नियुक्त किया गया था और उनके हस्ताक्षर से राज्यसभा का शीतकालीन सत्र बुलाया गया है?’ तृणमूल कांग्रेस और राजद ने भी सरकार के इस फैसले पर आश्चर्य जताया है। तृणमूल कांग्रेस के मुख्य सचेतक सुखेंदु शेखर राय का कहना है कि मुश्किल से 73 दिन पहले नियुक्त किए गए व्यक्ति को अचानक एक आईआरएस अधिकारी से क्यों बदल दिया गया।’

अभी पीसी मोदी की नियुक्ति पर उठा सवाल थमा भी नहीं था कि केंद्र सरकार ने सीबीआई और ईडी के मुखियाओं का कार्यकाल पांच वर्ष तक किए जाने संबंधी अध्यादेश जारी कर डाला। इस अध्यादेश के तुरंत बाद ही ईडी के वर्तमान प्रमुख का कार्यकाल एक बरस के लिए बढ़ा भी दिया गया। गौरतलब है कि पहले से ही दो बार वर्तमान ईडी डायरेक्टर को सरकार सेवा विस्तार दे चुकी है। कुछ अर्सा पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अब और सेवा विस्तार न दिए जाने की सलाह केंद्र सरकार को दी थी। अब सरकार ने अध्यादेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट की राय को दरकिनार कर नए विवाद को जन्म दे डाला है।

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