29 मार्च को बाहरी दिल्ली के बादली इलाके में एक सीवर में वायर का काम करने गए एमटीएनएल के तीन कर्मचारियों समेत चार लोगों की दम घुटने से मौत हो गई । मृतकों में एक रिक्शा ड्राइवर भी शामिल था, जो इन तीनों को बचाने के लिए शिविर में उतरा था । लेकिन सीवर की जहरीली गैस की चपेट में आने से उसकी भी मौत हो गई ।

देश की राजधानी दिल्ली में जहां केजरीवाल सरकार ने गटर की सफाई के लिए नए नए संयंत्र लगाए हैं वहां ऐसी हालत है कि हर सप्ताह ऐसी घटना घट जाती है। जिससे पता चलता है कि देश में 9 साल पहले लागू हुए मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट के बावजूद भी बेमौत गटर में लोग मर रहे हैं।
गौरतलब है कि मैन्युअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत देश में सीवर सफाई के लिए किसी भी व्यक्ति को उतारना गैरकानूनी है। इसके बावजूद भी सफाई कर्मियों को गटर में उतारा जाता है और जब उनकी मौत हो जाती है तो आंकड़ों को बहुत कम दर्शाया जाता है।

राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 3 सालों में करीब 400 लोग गटर में सफाई करने के लिए उतरते समय मौत के मुंह में समा गए। 2019 में 110 लोग मारे गए। 2018 में 68 तो 2017 में 193 लोग गटर की जहरीली गैस का शिकार हो गए।

पिछले 3 सालों में सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 54 मौतें हुई है। बीते 10 सालों में देश में 635 सफाई कर्मियों की सीवर सफाई में उतरने के दौरान मौत हो चुकी है।
एक सर्वे के अनुसार आज भी देश में गटर साफ करते हुए हर साल करीब 100 लोगों की मौत हो जाती है।
इस संबंध में उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव रजनीश दुबे ने सभी निकायों को लेटर जारी कर दिए है और प्रदेश के निकाय और पालिकाओं को मैनुअल सीवर सफाई पर तत्काल रोक लगाने के आदेश दिए जा चुके हैं।
दिल्ली सरकार में गटर की सफाई का काम मशीनों के द्वारा कराए जाने के दावे किए जाते रहे हैं। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने करीब डेढ़ सौ गाड़ियां इस काम के लिए खरीदी है। यह गाड़ी उन लोगों को किस्तों पर दी जाती है जिनके परिजन गटर की सफाई करते हुए काल के गाल में समाए हो।
पूरे देश में केरल सरकार इस मामले में एक मिसाल बनने की ओर अग्रसर है। केरल सरकार ने 4 साल पहले गटर की सफाई रोबोट से कराने की योजना बनाई थी। हालांकि यह योजना अभी जमीन पर नहीं उतरी है।

इस संबंध में सफाई कर्मचारी प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान से सीवर साफ करने वालों को कोई फायदा नहीं हो रहा है। नियम के तहत इन्हें सीवर लाइन में उतारने की सख्त मनाही है। सिर्फ मशीन से ही सफाई का नियम है। लेकिन इन्हें आज भी बिना किसी सुरक्षा और उपकरण के गटर में उतारा जा रहा है। 

वर्ष 2000 से 1760 लोगों की गटर-सीवर साफ करते हुए मौत हो चुकी है। यानी औसतन हर वर्ष 97। हर केस पर संबंधित मुख्यमंत्री, मंत्री, राज्यपाल और स्थानीय प्रशासन को पत्र लिखे गए हैं।

जिम्मेदारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की जाती रही है। लेकिन ऐसे मामलों में आज तक एक भी जिम्मेदार को सजा नहीं हुई है। इस पर कई संस्थाओ ने केन्द्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक कई आरटीआई फाइल की है। लेकिन पता चला है कि किसी भी राज्य की पुलिस ने इस मामले में एक भी चार्जशीट फाइल नहीं की। उल्टा सरकार के पास पूरा डेटा भी नहीं है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इन सालों में केवल 323 मौतें हुई हैं।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से मार्च 2014 में एक आदेश दिए गए। इन आदेशों के मुताबिक सीवर में मौत होने पर संबंधित परिवार को ₹10 की सहायता दिए जाने के प्रावधान हुए। इस आदेश के बावजूद लोगों को सहायता राशि नहीं मिली। इसके पीछे का कारण बताया जा रहा है कि गटर में उतरने वाले सफाई कर्मी टेंपरेरी तौर पर होते हैं। वह एक ठेकेदार के अंतर्गत काम करते हैं । जिनका कोई ब्योरा सरकार के पास नहीं होता है।
