दृश्य एक
चुनाव से पूर्व प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव अपने भतीजे और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को 7 मार्च तक उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की वकालत करते नजर आते थे। शिवपाल सिंह यादव कई रैलियों और समारोह में यह कहते सुने गए कि 2022 के इस विधानसभा चुनाव में वह अपने भतीजे अखिलेश यादव को यूपी का सीएम देखना चाहते हैं।
दृश्य दो
चुनाव के बाद इटावा में शिवपाल सिंह यादव ने अपने समर्थकों के साथ एक बैठक की। मौजूदा हालातों को देखते हुए उन्होंने समर्थकों के विचार जाने और पूछा कि उन्हें अब आगे क्या करना चाहिए। शिवपाल के समर्थकों ने स्पष्ट कह दिया कि उनका हर निर्णय उनके लिए सर माथे पर है। वह कोई भी निर्णय लेंगे तो वे उनके साथ होंगे।
दृश्य तीन
लखनऊ के पांच कालिदास स्थित मुख्यमंत्री आवास पर शिवपाल सिंह यादव और सीएम योगी आदित्यनाथ के बीच हुई बैठक से अचानक सियासी हलकों में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। करीब 20 मिनट चली इस बैठक ने लखनऊ के राजनीतिक तापमान को बढ़ाने का काम कर दिया। इस बैठक के बाद मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक कुनबे में फूट पड़ने के आसार नजर आ रहे हैं। तीनों दृश्यों को राजनीति के लिहाज से देखें तो पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल यादव नई राजनीतिक संभावनाएं तलाशते नजर आ रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं को देखते हुए यह संभावनाएं उन्हें भाजपा में ज्यादा नजर आ रही है। पूर्व में ही मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव सपा छोड़ भगवा चोला धारण कर चुकी है। अब इसी राह पर शिवपाल सिंह यादव भी चलते नजर आ रहे हैं।
आखिर क्या वजह है कि शिवपाल सिंह यादव जिस भतीजे को 1 महीने पहले तक मुख्यमंत्री बनाने का सपना पाले हुए थे अचानक वह पाला बदलते क्यों दिखाई दे रहे हैं। अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के बीच तल्खी तो बहुत दिनों से दिखाई दे रही थी। लेकिन पिछले दिनों जब अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी से जीत कर आए विधायकों को विधानमंडल दल की बैठक में बुलाया तो उन्होंने शिवपाल यादव को न्यौता नहीं भेजा। शिवपाल सिंह यादव को यह नागवार गुजरा। उन्होंने कहा भी कि वह पिछले 2 दिन से विधानमंडल दल की इस बैठक का इंतजार कर रहे थे। लेकिन उन्हें नहीं बुलाया गया। बैठक में न बुलाए जाने पर शिवपाल ने अपने आप को अपमानित महसूस किया। इसके बाद शिवपाल को अखिलेश यादव के खिलाफ जाने का एक और मौका मिल गया। बहरहाल 30 मार्च को शिवपाल सिंह यादव उत्तर प्रदेश के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ से जा मिले। बात यहीं पर नहीं रुकी बल्कि उन्होंने देश के गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात करने की भी इच्छा जाहिर कर दी। इससे यह संदेश गया कि शिवपाल सिंह यादव भाजपा में नजदीकी बढ़ा रहे हैं।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो फिलहाल शिवपाल सिंह यादव को अपनी इतनी चिंता नहीं है जितनी वह अपने पुत्र आदित्य यादव की कर रहे हैं। मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी का सिरमौर बन जाने के बाद शिवपाल सिंह यादव के मन में अपने पुत्र आदित्य यादव को राजनीति के शिखर पर न पहुंचाने का मलाल सताए जा रहा है। शिवपाल सिंह यादव चाहते हैं कि उनके पुत्र आदित्य यादव राजनीति की मुख्यधारा में आए। इसके चलते ही वह फिलहाल भाजपा से सेटिंग करने में लगे हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि समाजवादी पार्टी में सम्मान न मिलने की कसक और बेटे को राजनेता बनाने की चषक ने ही शिवपाल सिंह यादव को भाजपा खेमे की ओर जाने को मजबूर कर दिया है। चर्चा यह भी है कि शिवपाल सिंह यादव या तो भाजपा में जाएंगे या फिर वह अपनी पार्टी को एनडीए का हिस्सा बनाएंगे। इसके बाद भाजपा उन्हें राज्यसभा भेज सकती है। इसके लिए शिवपाल यादव को अपनी विधानसभा सीट जसवंतनगर खाली करनी पड़ेगी। इस सीट पर वह अपने बेटे आदित्य यादव को चुनाव लड़ा सकते हैं।
शिवपाल सिंह यादव के सामने भाजपा राज्यसभा के अलावा लोकसभा जाने का दूसरा। विकल्प भी रख सकती है। क्योंकि आजमगढ़ से अखिलेश यादव लोक सभा सांसद थे। लेकिन उन्होंने अपनी विधायकी को प्रमुखता देते हुए लोकसभा से इस्तीफा दे दिया है। फिलहाल अखिलेश सिंह यादव विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में है। इसी के साथ ही आजमगढ़ लोकसभा सीट अखिलेश यादव के इस्तीफा देने के बाद खाली हो जाएगी। हो सकता है कि भाजपा शिवपाल सिंह यादव को आजमगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़ाए। हालांकि यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है कि वह भाजपा के जरिए राज्यसभा जाएंगे या लोकसभा? राजनीतिक सूत्रों की मानें तो गत 24 मार्च को अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव की आखिरी मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात में शिवपाल सिंह यादव ने अखिलेश यादव से सपा संगठन में बड़ी भूमिका मांगी थी। लेकिन अखिलेश यादव ने उन्हें अपनी पार्टी प्रसपा का आधार बढ़ाने की सलाह दे डाली। मतलब यह है कि अखिलेश यादव नहीं चाहते कि समाजवादी पार्टी में एक बार फिर शिवपाल यादव का आगमन हो। समाजवादी पार्टी पर अखिलेश यादव का फिलहाल एकछत्र राज है।
2012 में जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार आई तब मुलायम सिंह यादव के बाद शिवपाल सिंह यादव सीएम पद के प्रबल दावेदार थे। लेकिन तब रामगोपाल यादव का साथ मिलने के बाद अखिलेश यादव को मजबूती मिली और वह सीएम बन गए। शिवपाल की अखिलेश से नारजगी की शुरुआत करीब छह साल पहले उस समय हुई जब सपा की बागडोर मुलायम सिंह यादव के हाथ से निकलकर अखिलेश यादव के पास चली गई। मुलायम के सपा मुखिया रहते शिवपाल सपा में हमेशा नंबर दो की हैसियत में रहे। उनका सम्मान होता रहा। लेकिन सपा की कमान अखिलेश के हाथ में आने के बाद सम्मान न मिलने की वजह से यह दूरियां बढ़ती गईं। शिवपाल का अपना राजनीतिक घर ही पराया हो गया।
2017 के विधानसभा चुनाव से पहले ही अखिलेश यादव सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके हैं। तब अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव में जबरदस्त कलह देखने को मिली थी। उस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने अपने भाई शिवपाल और पुत्र अखिलेश को मिलाने और उनके बीच पैदा हुई खाई को दूर करने की बहुतख कोशिश की थी। लेकिन उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली थी। इसके बाद शिवपाल सिंह यादव समाजवादी पार्टी से अलग हो गए और उन्होंने समाजवादी प्रगति पार्टी यानी सप्रग नाम से अलग पार्टी बना ली। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी शिवपाल ने अपनी पार्टी के कुछ प्रत्याशी उतारे। लेकिन वह जीत नहीं पाए। 2022 के विधानसभा चुनाव में शिवपाल सिंह यादव अपनी पार्टी के प्रत्याशियों को प्रदेश की सभी सीटों पर उतारना चाहते थे। लेकिन अखिलेश यादव से हुए उनके समझौते के चलते मात्र एक सीट पर ही उन्हें संतोष करना पड़ा। यह सीट थी जसवंत नगर। जहां से शिवपाल सिंह यादव खुद विधानसभा का चुनाव लड़े। शिवपाल सिंह यादव इस सीट से विधायक बन गए। पूर्व में जब सभी विधायकों की शपथ हुई तो उसमें छह विधायक शपथ ले ले पाए थे। जिनमें से एक शिवपाल सिंह यादव भी थे। लेकिन बाद में शिवपाल सिंह यादव ने 29 मार्च को हुए दोबारा शपथ ग्रहण समारोह में शपथ ली।