पिछले दिनों महाराष्ट्र में शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट ने दशहरा के मौके पर ‘दशहरा रैली’ करके अपनी-अपनी सियासी ताकत दिखाई।जो असल में भाजपा के समर्थन और भाजपा के विरोध की ‘दशहरा रैली’थी।भाजपा के समर्थन से रैली कर रहे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का पूरा ज़ोर इस बात पर था कि वे किसी तरह से अपने आप को बालासाहेब ठाकरे का उत्तराधिकारी साबित करें।तो वहीं उद्धव ठाकरे का पूरा जोर भाजपा विरोध पर था।जो बढ़ता ही जा रहा है।अब उन्होंने कहा कि भाजपा ने वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन के लिए हमसे संपर्क किया था क्योंकि देश में नोटबंदी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता के बीच अपनी पकड़ खो दी थी।वो जानते थे महाराष्ट्र में बालासाहेब ठाकरे के नाम केअलावा कोई और विकल्प नहीं है,इसलिए वो हमारा नाम मिटाना चाहते हैं।उद्धव ठाकरे ने अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए यह भी कहा कि यह हमारी आखिरी लड़ाई है,जिसे हमें उनकेखिलाफ जीतना है, जो हमें छोड़कर गए थे।इससे पहले भी मेरे अपने भाई राज ठाकरे और बालासाहेब के करीबी लोगों ने हमें धोखा दिया था, लेकिन हमने सभी को हरा दिया था।अब यहआखिरी लड़ाई है, जिसको जीतना है,फिर हमारे सामने महाराष्ट्र में कोई नहीं टिक सकता है।
दरअसल,यह बात उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र में हो रहे उपचुनाव के लिए नए चुनाव चिन्ह के विकल्पों को लेकर बुलाई बैठक के दौरान कहीं है। क्योंकि बीते 8 अक्टूबर को चुनाव आयोग ने आदेश जारी करके शिंदे और ठाकरे गुटों से 10 अक्टूबर दोपहर एक बजे तक अपने-अपने चुनाव चिन्ह आयोग में पेश करने को कहा है। दोनों पक्ष फ्री सिंबल्स में से अपनी पसंद प्राथमिकता के आधार पर बता सकेंगे।आयोग ने अपने फरमान में दोनों धड़ों को ये छूट जरूर दी है कि दोनों अपने नाम के साथ चाहे तो सेना शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं। बीते 8 अक्टूबर को जारी किए गए अपने आदेश में चुनाव आयोग ने कहा है कि शिवसेना धनुष और तीर’ चुनाव चिन्ह के साथ महाराष्ट्र में एक मान्यता प्राप्त राज्य पार्टी है। शिवसेना के संविधान के प्रावधानों के अनुसार, शीर्ष पर स्तर पर पार्टी में एक प्रमुख और एक राष्ट्रीय कार्यकारिणी है। आयोग आयोग ने कहा 25 जून, 2022 को उद्धव ठाकरे की तरफ से अनिल देसाई ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में कुछ विधायकों द्वारा पार्टी विरोधी गतिविधियों के बारे में सूचित किया था। उन्होंने ‘शिवसेना या बालासाहेब’ के नामों का उपयोग कर किसी भी राजनीतिक दल की स्थापना के लिए अग्रिम आपत्ति जताई थी।
इस दौरान उद्धव ठाकरे ने आपने पार्टी कार्यकर्ताओं ने शांत रहने का भी अनुरोध किया है। इस पर उद्धव ठाकरे गुट के विधायक भास्कर जाधव ने कहा कि चुनाव आयोग ने जानबूझकर योजना बनाई और इस तरह के आदेश दिया क्योंकि हमें किसी भी कार्रवाई के लिए समय नहीं देना है। हमारे सभी विकल्प बंद कर दिए गए हैं। हमारे पास कल तक का समय है। उद्धव ठाकरे एक विकल्प की तलाश में हैं, कल यानी 10 अक्टूबर तक इन विकल्पों के लिए आवेदन करेंगे।
जिसके बाद उद्धव ठाकरे गुट ने अपने चुनाव चिन्ह के लिए सुझाव भेजा है, उनमें त्रिशूल, उगते सूरज या मशाल हैं। इसके साथ ही उद्धव ठाकरे गुट ने पार्टी के तीन संभावित नाम शिवसेना (बालासाहेब ठाकरे), शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और शिवसेना (बालासाहेब प्रबोधंकर ठाकरे) भी चुनाव आयोग को बताए हैं। वहीं, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट की मुख्यमंत्री आवास ‘वर्षा’ पर मीटिंग हुई, जिसमें चिन्ह और पार्टी के नामों पर चर्चा हुई। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक,पार्टी के चुनाव चिन्ह और पार्टी के नाम पर फैसले लेने का पूरा अधिकार कार्यकारिणी को दिया गया है। इसके अलावा, तय किया गया कि शिंदे गुट चुनाव आयोग को पत्र लिखकर अपनी आधिकारिक भूमिका रहेगी। लेकिन इस दौरान तलवार, तुतारी और गदा को बतौर चिह्न रखे जाने पर चर्चा की गई। शिवसेना प्रबोधंकर ठाकरे और शिवसेना बालासाहेब ठाकरे नाम के सुझाव भी रखे गए। लेकिन एकनाथ शिंदे गुट की तरफ से आधिकारिक घोषणा होनी बाकी है।
इस पर राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि मुख्यमंत्री के रूप में एकनाथ शिंदे के 3 महीने के कार्यकाल में जनता पर खासा असर नहीं दिख रहा है। बल्कि वेदांता फॉक्सकॉन प्रोजेक्ट महाराष्ट्र से गुजरात चले जाने से उनको नुकसान हुआ है। ऊपर से अभी तक शिव सेना पर नियंत्रण को लेकर निर्णायक तौर पर कुछ नहीं हुआ है। चुनाव आयोग को इस बारे में फैसला करना है। उसके बाद महाराष्ट्र में नगर निगम का चुनाव होना। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक नेताओं को तो यह पता है कि शिंदे की कुर्सी नगर निकाय चुनावों तक है। बीएमसी के साथ-साथ पुणे, ठाणे जैसे बड़े शहरों के चुनाव होंगे।भाजपा को उस समय तक शिंदे की जरूरत है।असल में भाजपा को शिंदे के जरिए ही शिव सेना को निबटाना है। मुंबई और ठाणे मे यह काम शिंदे कर सकते है। क्योंकि एक बार बीएमसी पर से उद्धव ठाकरे गुट का कब्जा खत्म होगा तो फिर शिव सेना का अपने पैरों पर खड़ा होना मुश्किल हो जाएगा। सो, निगम चुनाव तक शिंदे को बनाए रखना है और उसके बाद भाजपा को कमान अपने हाथ में लेनी है। वैसे अभी भी सत्ता के वास्तविक सूत्र देवेंद्र फड़नवीस के हाथों में ही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, उनके करीबियों का कहना है कि 3 से 6 महीने में वे फिर से महारष्ट्र के मुख्यमंत्री बन जाएंगे और एकनाथ शिंदे उनके डिप्टी होंगे। शिंदे भी इस बात को समझ रहे है। लेकिन उनको शिकायत नहीं है, क्योंकि वे जानते हैं कि उद्धव ठाकरे के साथ रहते वे कभी मुख्यमंत्री नहीं बन पाते।