‘हमारे पास 272 सांसदों का समर्थन हैं। और बहुत से सांसदों का हमारे साथ आना तय है।’
इससे ठीक 4 दिन पहले, 17 अप्रैल को वाजपेयी सरकार लोकसभा में एक वोट से विश्वास मत हार कर सत्ता से बाहर हो चुकी थी। सोनिया गांधी ने 21 तारीख को राष्ट्रपति से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा तो कर दिया, राजनीति के दंगल में मात्र एक बरस पहले उतरी सोनिया लेकिन दो भारी भूल कर बैठीं। उन्होंने अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता और उस समय लोकसभा में पार्टी के नेता शरद पवार को हाशिए में रखने की पहली बड़ी भूल की। दूसरी भूल समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव को न समझ पाने की थी। दोनों ही भूलें कांग्रेस और सोनिया पर भारी पड़ी। इतनी भारी कि शरद पवार ने उनके विदेशी मूल को मुद्दा बना कांग्रेस छोड़ डाली। पवार के साथ पार्टी छोड़ने वालों में स्व . राजीव गांधी के विश्वस्त रहे पीएम संगमा और तारीक अनवर भी थे। इस बात को आज 21 बरस बीत चुके हैं। देश की नदियों में खासा पानी बह चुका है। कांग्रेस का इकबाल लगभग समाप्त है और केंद्र में प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा काबिज है। नहीं कुछ बदला तो वह है शरद पवार और सोनिया गांधी के बीच पनपा एक-दूसरे के प्रति गहरा अविश्वास। सोनिया गांधी शायद ही कभी भूल पाएं कि देश के सबसे ताकतवर पद प्रधानमंत्री और उनके बीच मात्र चंद कदमों की दूरी को वे शरद पवार के चलते नाप पाने में सफल नहीं हो सकी थीं। पवार भी यह भूलने को तैयार शायद ही हों कि उन्हें तमाम योग्यता के बावजूद पीएम की कुर्सी सोनिया गांधी के चलते नसीब नहीं हुई। ऐसे आपसी रिश्तों वाला अतीत आज एक बार फिर प्रेत समान सामने आ खड़ा है।
कांग्रेस का इकबाल लगभग समाप्त है और केंद्र में प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा काबिज है। नहीं कुछ बदला तो वह है शरद पवार और सोनिया गांधी के बीच पनपा एक-दूसरे के प्रति गहरा अविश्वास। इस बार सोनिया और कांग्रेस कमजोर विकेट पर हैं, तो शरद पवार भी बढ़ती उम्र के चलते बैकफुट पर। इसके बावजूद भाजपा को मात देने, मोदी-शाह को थामने के लिए विपक्ष की आस बन शरद पवार का उभरना जहां एक तरफ इस मराठा क्षत्रप की राजनीतिक साम्र्थय को दर्शाता है तो दूसरी तरफ गांधी परिवार के दिनांदिनोंदिन कमतर होते प्रभामंडल को।
विपक्षी दलों के नेताओं को साध- बांध सकते हैं शरद
तो इसके पीछे एक बड़ा कारण वे गैर यूपीए, गैर एनडीए नेता हैं जिन्हें शरद पवार साधने की कुवत रखते हैं। इन नेताओं में तृणमूल की ममता बनर्जी, तेलगु देशम के चन्द्र बाबू नायडू, तेलंगाना राष्ट्र समिति के .के .चन्द्र शेखर राव और सपा-बसपा का शीर्ष नेतृत्व शामिल है। इतना ही नहीं उड़ीसा के सीएम नवीन पटनायक भी शरद पवार का सम्मान करते बताए जाते हैं।
कांग्रेस नेतृत्व लेकिन असहज है
पिछले दिनों राहुल गांधी की राजनीतिक शैली पर पवार की टिप्पणी ने इन नेताओं को चैंकन्ना करने का काम किया है। उनकी आशंका और प्रबल हो गई है कि शरद पवार को विपक्षी दलों का नेतृत्व राहुल-प्रियंका के भविष्य पर कुठाराघात करने समान होगा। दूसरी तरह राहुल की कार्यशैली और उनकी अनुभवहीनता से संशकित विपक्षी नेता ‘शरद-लाओ-मोदी भगाओ’ नीति पर काम करने में जुट गए हैं।