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शर्मसार देश और लाचार मणिपुर

जब भी हमारे लबों पर मणिपुर का नाम आता है आंखों के सामने प्रकृति की गोद में समाए इस राज्य की तस्वीर उभर आती है। लेकिन बीते ढाई महीनों से जारी जातीय हिंसा की आग में जल रहे इस राज्य से अब एक खौफनाक और मानवता को शर्मसार करने वाला वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में दो महिलाओं को भीड़ द्वारा नग्न अवस्था में ले जाते हुए देखा जा सकता है। इस घटना से जहां पूरा देश शर्मसार है वहीं मणिपुर बेबस और लाचार नजर आ रहा है

पिछले करीब ढाई महीनों से जातीय हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर से अब एक खौफनाक और मानवता को शर्मसार करने वाला वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में दो महिलाओं को भीड़ द्वारा नग्न अवस्था में ले जाते हुए देखा जा सकता है। वीडियो राज्य की राजधानी इंफाल से 35 किलोमीटर दूर के कंगपोकपी जिले का है जो 4 मई का बताया जा रहा है। इस घटना ने पूरे देश को एक बार फिर शर्मसार कर दिया है।

इस मामले को लेकर पीएम मोदी ने भी दुख जताया है और सख्त कार्रवाई की बात कही है, वहीं सुप्रीम कोर्ट भी स्वतः संज्ञान ले चुका है। घटना को लेकर मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह का बयान सामने आया है। जिसमें उन्होंने कहा कि ऐसा अपराध करने वालों को बक्सा नहीं जाएगा। मगर मणिपुर जिस तरह हिंसा में झुलसा हुआ है उससे कई सवाल खड़े हो गए हैं। बड़ा सवाल यह है कि इतने समय से जारी हिंसा पर काबू क्यों नहीं पाया जा सका है? जानकारों का कहना है कि हिंसा पर नियंत्रण का पूरी तरह न हो पाना सुशासनिक पहलू की कमजोरी को तो दर्शाता ही है साथ ही सुलगते मणिपुर ने इस बात को भी जता दिया है कि लोगों का सरकार से भरोसा भी उठने लगा है। गौरतलब है कि पूर्वोत्तर भारत में सात राज्य हैं। जिन्हें ‘सात बहनें’ या ‘सेवन सिस्टर्स’ के नाम से जाना जाता है। इन्हीं सात बहनों में से एक है मणिपुर। चीन से सटी पहाड़ियों-घाटियों और मैदानों के बीच बसे 160 से ज्यादा जनजातियों वाले पूर्वोत्तर के सबसे खूबसूरत दर्शनीय भू-भाग में से एक है मणिपुर। इसलिए जब भी हमारे लबों पर मणिपुर का नाम आता है तो आंखों के सामने प्रकृति की गोद में समाए उस राज्य की तस्वीर उभर आती है जिसने देश को मैरीकॉम, मीराबाई चानू जैसी गौरवशाली बेटियां दी हैं। देश को इस राज्य की बेटियों ने विश्व स्तर पर न केवल गौरवान्वित महसूस कराया, बल्कि विश्व पटल पर भारत को इतराने का मौका भी दिया। लेकिन आज वही मणिपुर सिसक रहा है। यहां हुए कृत्यों पर पूरा देश शर्मसार है और मणिपुर बेबस और लाचार। इस बेबसी और शर्मिंदगी का कारण है वह वीडियो जो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल है। वीडियो में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके सड़क पर परेड करवाई जा रही है। इस वीडियो ने एक तरफ जहां शासन की नाकामी का नकाब भी उतार फेंका है वहीं दूसरी तरफ राज्य की मौजूदा स्थिति को भी बयां कर दिया है।

अब तक क्या-क्या हुआ
बीबीसी की एक रिपोर्ट अनुसार भीड़ ने एक 50 वर्षीय महिला को कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया था। एक युवा द्वारा महिला के साथ सामूहिक रूप से बलात्कार किया गया था। तीन मई को आधुनिक हथियारों से लैस 800 से लेकर 1000 लोगों ने थोबल जिले में स्थित उन महिलाओं के गांव पर हमला किया। लोगों ने गांव में लूटपाट करने के साथ ही आग लगाना शुरू कर दिया। ऐसी स्थिति में तीनों महिलाएं अपने पिता और भाई के साथ जंगलों की ओर भाग गईं। पुलिस इन महिलाओं को बचाने में कामयाब भी हुई। पुलिस इन लोगों को थाने लेकर जा रही थी लेकिन थाने से दो किलोमीटर पहले ही भीड़ ने उन्हें रोक लिया। प्रदर्शनकारियों ने इन महिलाओं को पुलिस से छीन लिया, जिसके बाद युवा महिला के पिता को मौके पर ही मार दिया गया। एफआईआर के मुताबिक तीनों महिलाओं को भीड़ के सामने निर्वस्त्र होकर चलने के लिए विवश किया गया। युवा महिला के साथ सामूहिक बलात्कार को सरेआम अंजाम दिया गया। एफआईआर के मुताबिक जब इस महिला के 19 वर्षीय भाई ने उसे बचाने की कोशिश की तो उसे भी मार दिया गया।

पुलिस ने क्यों नहीं की कार्रवाई
मणिपुर की इस घटना को लेकर डबल इंजन की सरकार अब घिरी हुई है। वीडियो वायरल होने के बाद एक बार फिर मणिपुर में तनाव बढ़ गया है। लोगों द्वारा पुलिस पर आरोप लगाया जा रहा है कि इस घटना को लेकर 18 मई को जीरो एफआईआर दर्ज करवाई गई थी। ढाई महीने तक इस मामले में पुलिस द्वारा ऐक्शन क्यों नहीं लिया गया। वीडियो वायरल होने से पुलिस पर दबाव बनाए जाने के बाद मुख्य आरोपी को 20 जुलाई को गिरफ्तार किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान

इस घटना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है। कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। इस दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि हिंसा प्रभावित इलाकों में महिलाओं को समान की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। हमें ये बताया जाए कि इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? कोर्ट इस मामले पर अगले हफ्ते 28 जुलाई को सुनवाई करेगा।

हिंसा की वजहें

मैतेई समुदाय के एसटी दर्जे का विरोधः मैतेई ट्राइब यूनियन पिछले कई सालों से मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने की मांग कर रही है। मामला मणिपुर हाईकोर्ट पहुंचा। इस पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था। इस सिफारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है। कोर्ट ने मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने का आदेश दे दिया। अब हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच केस की सुनवाई कर रही है।

अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई
आरक्षण विवाद के बीच मणिपुर सरकार द्वारा अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई ने आग में घी डालने का काम किया। मणिपुर सरकार का कहना है कि आदिवासी समुदाय के लोग संरक्षित जंगलों और वन अभयारण्य में गैरकानूनी कब्जा करके अफीम की खेती कर रहे हैं। ये कब्जे हटाने के लिए सरकार मणिपुर फारेस्ट रूल 2021 के तहत फॉरेस्ट लैंड पर किसी तरह के अतिक्रमण को हटाने के लिए एक अभियान चला रही है। वहीं आदिवासियों का कहना है कि यह उनकी पैतृक जमीन है। उन्होंने अतिक्रमण नहीं किया, बल्कि सालों से वहां रहते आ रहे हैं। सरकार के इस अभियान को आदिवासियों ने अपनी पैतृक जमीन से हटाने की तरह पेश किया। जिससे आक्रोश फैला।

कुकी विद्रोही संगठनों का समझौते तोड़ना

हिंसा के बीच कुकी विद्रोही संगठनों ने भी 2008 में हुए केंद्र सरकार के साथ समझौते को तोड़ दिया। दरअसल, कुकी जनजाति के कई संगठन 2005 तक सैन्य विद्रोह में शामिल रहे हैं। मनमोहन सिंह सरकार के समय, 2008 में तकरीबन सभी कुकी विद्रोही संगठनों से केंद्र सरकार ने उनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए ‘सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन’ एग्रीमेंट किया। इसका मकसद राजनीतिक बातचीत को बढ़ावा देना था। समय -समय पर इस समझौते का कार्यकाल बढ़ाया जाता रहा, लेकिन इसी साल 10 मार्च को मणिपुर सरकार कुकी समुदाय के दो संगठनों के लिए इस समझौते से पीछे हट गई। ये संगठन हैं जोमी रेवुलुशनरी आर्मी और कुकी नेशनल आर्मी। ये दोनों संगठन हथियारबंद हैं। हथियारबंद इन संगठनों के लोग भी मणिपुर की हिंसा में शामिल हो, सेना और पुलिस पर हमले करने लगे।

बेबस मातृ शक्ति
ऐतिहासिक तौर देखा जाए तो उत्तर पूर्वी राज्यों की महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील व संघर्षशील रही हैं। इसमें अगर मणिपुर को देखा जाए तो अधिकतर लोगों को पता होगा कि इसी मणिपुर की महिलाओं ने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़कर नुपी लान (महिलाओं का युद्ध) लड़ा जो दो बार निर्णायक साबित हुआ था। पहली बार साल 1904 में महिलाओं द्वारा हजारों की संख्या में इकट्ठे होकर बर्तानवी सरकार की ओर से मणिपुर के पुरुषों (17-60 वर्ष) पर थोपे गए अवैतनिक बलात मजदूरी का जमकर विरोध किया और आदेश को वापस करवाया था।

दूसरी बार, साल 1939 में जब नुपी लान

महिलाओं का युद्ध शुरू हुआ तो वह ब्रिटिश एजेंट, मणिपुर के महाराजा और मारवाड़ी व्यापारियों द्वारा चावल निर्यात के खिलाफ था, जिसके चलते मणिपुर में भुखमरी जैसे हालात बन गए थे। इस संघर्ष को चलते हुए 3 महीने हो चुके थे जब द्वितीय विश्व युद्ध के कारण वह समाप्त हुआ। पर इस लम्बे संघर्ष के दौरान कई महिलाओं की जान तक चली गई थी। पुनः वर्ष 1970 के दशक में मणिपुर की महिलाओं ने शराब और नशीली दवाओं के बढ़ते चलन के खिलाफ मोर्चा खोल ‘निशा बंदियों’ का खिताब अपने नाम किया। निशा बंदियां कहलाने वाली ये महिलाएं रात को किरोसिन लैंप और लालटेन लेकर रात की अंधेरी सड़कों पर जलती शराब के भट्ठियों और दुकानों को आग के हवाले कर देती थीं। देशभर में इन्हें ‘मीरा पाइबी’ के नाम से जाना जाने लगा। ये महिलाएं अधिकतर मैतेई समुदाय की थीं। मीरा के अर्थ हैं बांस की लाठी जो जलती रहती है। इसके बाद मणिपुर में नागा विद्रोहियों द्वारा स्वतंत्र होने की मांग उठने लगी तब आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (अफस्पा) लाया गया। पूरे मणिपुर को सितम्बर 1981 में अफस्पा के अंतर्गत ले लिया गया। जिसके कारण मणिपुर विद्रोहियों और सेना के बीच संघर्ष की भंवर में फंस गया। अफस्पा के अंतर्गत बिना वारंट छापे और गिरफ्तारियां होने लगीं। तब आरोप लगाया गया कि निर्दोष लोग भी अफस्पा की बलि चढ़ रहे हैं। बिना किसी कारण के नाबालिग लड़कों को उठाया जा रहा और लड़कियों के साथ यौन हिंसा हो रही है। उस समय में मीरा पाइबी सैनिकों की रेड, अत्याचार और गिरफ्तारियों को रोकने के लिये गांव-गांव मशाल लेकर रात्रि-पहरा देती थीं। उस समय वे मानवाधिकारों की रक्षक और शांति की दूत बन गई थीं।

वर्ष 1980 में मणिपुर में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट लागू हो चुका था और कई सैन्य ऑपरेशन चल रहे थे। उस वक्त महिलाओं की पीड़ा को व्यक्त करने के लिए मीरा पाइबी माताओं ने सेना द्वारा थंगजाम मनोरमा के बलात्कार और हत्या के खिलाफ असम राइफल्स के हेडक्वाटर्स पर निर्वस्त्र होकर जो प्रदर्शन किया था उसने देश की अंतरात्मा को झकझोर तो दिया ही था साथ ही अपनी दर्दनाक स्थिति से भी देश- दुनिया को अवगत करा दिया था। इन्हीं महिलाओं में से एक थी चानू शर्मिला इरोम। चानू द्वारा अफस्पा कानून को हटवाने के लिए 14 वर्ष भूख हड़ताल की गई थी। लेकिन आज भी महिलाएं शांति की गुहार लगा रही हैं। क्योंकि किसी भी युद्ध का सबसे बुरा असर महिलाओं के जीवन पर ही पड़ता है।

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