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शाहनवाज हुसैन को उच्चतम न्यायालय से भी नहीं मिली राहत

दुष्कर्म के मामले में एफआईआर से राहत पाने के लिए भाजपा के वरिष्ठ नेता शाहनवाज हुसैन ने उच्त्तम न्यायालय का रुख किया था। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें बलात्कार का आरोप लगाने वाली एक महिला की शिकायत पर भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने को कहा गया था। हालांकि, शीर्ष अदालत ने मामले में उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ हुसैन की अपील को अगले सप्ताह सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई।


इससे पहले भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट ने एक पुराने मामले में पुलिस को उनके खिलाफ दुष्कर्म समेत अन्य धाराओं में केस दर्ज करने का आदेश दिया था । कोर्ट ने पुलिस को इस मामले में 3 महीने में जांच पूरी करने के लिए कहा है। अदालत के इस आदेश को शाहनवाज हुसैन नेउच्चतम न्यायालय में चुनौती देते हुए फौरन सुनवाई की मांग की थी। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने फिलहाल जल्द सुनवाई से इनकार करते हुए कहा है कि अगले हफ्ते सुनवाई की जाएगी। दिल्ली पुलिस ने निचली अदालत में रिपोर्ट पेश कर कहा था कि भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन के खिलाफ मामला नहीं बनता है लेकिन अब दिल्ली हाईकोर्ट ने केस दर्ज करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने साफ शब्दों में कहा कि, ‘सभी तथ्यों को देखने से स्पष्ट है कि इस मामले में केस दर्ज करने तक में दिल्ली पुलिस की ओर से पूरी तरह से अनिच्छा नजर आ रही है। ऐसे में अब दिल्ली पुलिस भी सवालों के घेरे में है।


क्या है पूरा मामला?

 

वर्ष 2018 में दिल्ली निवासी एक महिला ने दिल्ली के एक निचली अदालत में याचिका दायर कर भाजपा ने शाहनवाज हुसैन के खिलाफ दुष्कर्म की एफआईआर दर्ज करने का आग्रह किया था। एक रिपोर्ट के मुताबिक,महिला ने भाजपा ने शाहनवाज हुसैन पर कथित तौर पर ‘बलात्कार’ करने और फिर जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाया था। इस मामले में अदालत ने शाहनवाज हुसैन को राहत देने से इनकार करते हुए दिल्ली पुलिस को उनके खिलाफ महिला से दुष्कर्म करने के आरोप में तत्काल मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने कहा है कि तथ्यों से लगता है कि दिल्ली पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने के लिए पूरी अनिच्छा प्रतीत होती है। 27 अगस्त को जस्टिस आशा मेनन ने दिल्ली पुलिस को तीन माह के भीतर मामले की जांच पूरी करने और अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के तहत संबंधित अदालत में रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है। साथ ही कहा है कि, वर्ष 2018 में दिल्ली पुलिस आयुक्त से शिकायत प्राप्त होने पर प्राथमिकी दर्ज नहीं करने के लिए पुलिस के पास समझाने के लिए बहुत कुछ है।

जस्टिस मेनन ने निलची अदालत के आदेश के खिलाफ भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन की अपील को आधारहीन बताकर खारिज करते हुए कहा कि ‘ऐसा लगता है मानो दिल्ली पुलिस भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन के खिलाफ पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने में भी पूरी तरह से हिचक रही है। इस केस में न्यायालय ने पुलिस के रवैये पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि ‘निचली अदालत के वर्ष 2018 के उस आदेश में कोई त्रुटि नहीं है, जिसमें प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था।
इसके अलावा उच्च न्यायालय ने इसके क्रियान्वयन पर रोक लगाने संबंधी अपने आदेशों को निष्प्रभावी कर दिया। अदालत ने 17 अगस्त को अपने में कहा है कि ‘मौजूदा याचिका सुनवाई किये जाने योग्य नहीं है। याचिका खारिज की जाती है। अंतरिम आदेश निष्प्रभावी समझा जाए। जांच पूरी की जाए और सीआरपीसी की धारा 173 के तहत विस्तृत रिपोर्ट तीन महीने के भीतर मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत की जाए।

इससे पहले पुलिस ने निचली अदालत में रिपोर्ट पेश कर कहा था कि भाजपा शाहनवाज हुसैन के खिलाफ मामला नहीं बनता। निचली अदालत ने अपने फैसले में पुलिस के तर्क को खारिज कर दिया था अदालत ने कहा था कि महिला की शिकायत में संज्ञेय अपराध का मामला है। न्यायालय ने जुलाई 2018 में शाहनवाज के खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश दिया था। इस फैसले को भाजपा नेता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। अदालत ने 13 जुलाई 2018 को एक अंतरिम आदेश जारी कर निचली अदालत के उस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी , जिसमें दिल्ली पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। हालांकि, अब हाईकोर्ट से भी भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन को झटका लगा है। हालांकि, इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने केस दर्ज करने पर अंतरिम रोक लगा दी थी।

इसमें पूरे घटनाक्रम पर भाजपा नेता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत से कहा था कि दिल्ली पुलिस ने उनके मुवक्किल को क्लीन चिट दे दी है। लूथरा ने अदालत से यह भी कहा था कि अदालत में महिला की शिकायत पर पुलिस के जबाव को रद्द करने की रिपोर्ट माना जाना चाहिए क्योंकि कोई भी आरोप सिद्ध नहीं होता है। इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि कोर्ट ने कहा कि एफ़आईआर किसी भी जांच की शुरुआत की बुनियाद है। जांच के बाद ही पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंच सकती है कि अभियुक्त ने अपराध किया है या नहीं। मौजूदा मामले में, ऐसा लगता है कि पुलिस एफ़आईआर दर्ज करने से बच रही थी।

गौरतलब है कि शाहनवाज हुसैन फिलहाल बिहार से एमएलसी हैं।वे बिहार में जदयू-भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री भी थे। शाहनवाज हुसैन तीन बार सांसद और अटल सरकार में मंत्री भी रहे हैं। ऐसे में उनके खिलाफ मामला बीजेपी के लिए गले की फांस बन सकता है। हाल ही में गुजरात के कैबिनेट मंत्री अर्जुन सिंह चौहान पर भी एक महिला से रेप करने का गंभीर आरोप लगा है, जिसका जवाब भाजपा से देते नहीं बन रहा।

 

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