सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित किए गए पैनल के दो सदस्य आज करीब तीन बजे शाहीन बाग आंदोलन स्थल पर पहुंचे। हालांकि, पैनल में तीन वरिष्ठ अधिवक्ताओं को नामांकित किया गया था। जिनमें एक को छोड़कर दो पहुंचे। इनमें संजय हेगडे और साधना रामचंद्रन शामिल है। पैनल के दोनों वकीलों ने कहा कि वह सबकी सुनेंगे।
एक साथ बोलने पर कुछ स्पष्ट नहीं हो पाएगा। इस दौरान संजय हेगडे ने धरना स्थल पर मौजूद लोगों को सर्वोच्च न्यायालय का आदेश पढकर सुनाया। जबकि साधना रामचंद्रन ने सभी को न्यायालय के आदेशों को संक्षिप्त में सुनाया। साधना रामचंद्रन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आंदोलन करने का आपका हक है। इस पर सुनवाई जरूर होगी। इसका यह मतलब नही कि आपका आंदोलन करने का हक छिन जाएगा।
दोनों वार्ताकारों ने सबसे पहले पहुंचते ही वहां से मीडिया को तुरंत हट जाने के लिए कहा। इससे प्रदर्शनकारियों ने कहा कि जो लोग वीडियो बना रहे हैं वह क्या कर रहे हैं। मतलब सीधा सीधा यह था कि वार्ताकारों को मीडिया पर भरोसा नहीं था। क्योंकि पिछले दौरान मीडिया के द्वारा जो कवरेज की गई उस पर लोगों की ओर से टीका-टिप्पणी की गई और अविश्वसनीय करार दिया गया। यहां तक कि मीडिया द्वारा जिस जामिया के स्टूडेंट के हाथ में पत्थर बताया गया था वह पर्स निकला था। ऐसी रिपोर्टिंग मीडिया की संदेह के दायरे में आ गई और इसके मद्देनजर ही वार्ताकारों ने मीडिया को दूर चले जाने के लिए कहा।
इसके बाद जब दोनों वार्ताकारों ने अपनी बात प्रदर्शनकारियों के सामने रखी तो प्रदर्शन में शामिल सबसे बूढ़ी अम्मा ने कहा कि वह धरना स्थल से तभी हटेगे तब तक कि उनकी मांगे नहीं मानी जाती। यानी कि सीएए निरस्त नहीं किया जा सकता जब तक वह धरना स्थल पर ही डटे रहेंगे। दादी अम्मा ने स्पष्ट कहा कि वह धरना स्थल से एक इन्च भी नही हटेगे।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि दोनों वार्ताकारों के साथ धरने पर बैठे लोगों की मुलाकात किसी बंद कमरे में नहीं बल्कि धरनास्थल पर ही हो रही है। यहां यह भी कहना जरूरी होगा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा है कि देश में किसी को भी विरोध का हक है, लेकिन रास्ता बंद करने के अधिकार के साथ बिलकुल नहीं।
सुप्रीम कोर्ट शाहीन बाग प्रदर्शन के चलते रास्ता बंद होने को लेकर चिंता जता चुका है। कोर्ट ने कहा कि अगर हर कोई सड़क पर उतरने लगेगा तो क्या होगा? कोर्ट ने दूसरे पक्ष को सुनने के दौरान कहा था कि हम ये नहीं कर रहे हैं कि प्रदर्शन नहीं किया जा सकता। बल्कि सवाल ये है कि प्रदर्शन कहां होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पूर्व यह भी कहा था कि लोकतंत्र लोगों की अभिव्यक्ति से ही चलता है, लेकिन इसकी एक सीमा है। अगर सभी सड़क बंद करने लगे तो परेशानी खड़ी हो जाएगी। आप दिल्ली को जानते हैं, लेकिन दिल्ली के ट्रैफिक को नहीं। ट्रैफिक नहीं बंद होना चाहिए। आपको विरोध का अधिकार है, लेकिन सड़क जाम करने का नहीं।
न्यायालय ने ये भी कहा था कि अगर हर कोई पब्लिक रोड को ब्लॉक करने लगे भले ही कारण कोई भी हो, तो क्या होगा? हमारी चिंता इस बात पर है कि प्रदर्शन सड़क पर किया जा रहा है। हमारा मानना है कि इस केस या दूसरे केस में सड़क को ब्लॉक नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि प्रशासन और पुलिस शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शन को खत्म कराने और कालिंदी कुंज-शाहिन बाग सड़क को खुलवाने की कई बार कोशिश की गई, लेकिन नाकाम रहे जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। इस सडक के बंद होने से फिलहाल तीन राज्यों के लोग प्रभावित हो रहे है।