लोकतंत्र में यह संभव नहीं है कि आप जिस विचार को रखें उस पर सौ फीसदी लोग सहमत हो जाएं। लोकतंत्र की खूबसूरती यही है कि उसमें असहमतियों की भी जगह होती है। जो विरोध कर रहे हैं, जरूरी नहीं है कि वे सत्तारूढ़ पार्टी और उसकी विचारधारा के भी समर्थक हों। किसी भी विरोध-प्रदर्शन में विपक्षी पार्टियों की भी अहम भूमिका होती है। अगर ये पार्टियां आज स्पष्ट कर दें कि वे सरकार का समर्थन करती हैं तो कल विरोध-प्रदर्शन समाप्त हो जाएंगे।
शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोगों को भरोसा है कि विपक्षी पार्टियां उनका साथ देंगी, लेकिन वो कितना लड़ेंगे यह साफ नहीं दिखता। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ शाहीन बाग में कालिंदी कुंज-नोएडा मेन रोड का घेराव करके बैठे लोगों को एक महीने से अधिक का समय हो गया है। सत्याग्रह पर बैठी महिलाओं का कहना है कि सीएए कानून वापस लेने तक वे यहां से हिलेंगी भी नहीं। किसी ने जोर-जबरदस्ती उठाने की जुर्रत भी की तो यहीं जान दे देंगी। ‘दि संडे पोस्ट’ से बात करते हुए एक स्थानीय महिला यास्मीन ने कहा कि राज्य और केंद्र सरकार का कोई भी प्रतिनिधि उनसे मिलने नहीं आया है।
विपक्षी पार्टियों ने आंदोलनकारियों से मुलाकात कर समर्थन दिया है। 22 जनवरी को सीएए रद्द करने के लिए कोर्ट में दाखिल याचिका की सुनवाई है। उसका फैसला आने के बाद ही सत्याग्रह के विषय में नए सिरे से फैसला लिया जाएगा। उनके मुताबिक ओखला, जामिया नगर के अलावा छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र से आई महिलाओं ने भी उन्हें समर्थन दिया। इसी बीच बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के परपोते राजरंजन आंबेडकर भी पहुंचे। सीएए और एनआरसी के खिलाफ देशभर में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए शाहीन बाग फुटओवर ब्रिज के पास एक प्रतीकात्मक इंडिया गेट बनाया गया है। इस पर मारे गए लोगों के नाम भी दर्ज किए गए हैं। शाहीन बाग में आंदोलनकारियों के लिए निःशुल्क चिकित्सा शिविर चलाया जा रहा है।
उधर एक और बहस भी चल रही है। दरअसल, इस प्रदर्शन की वजह से दिल्ली से नोएडा जाने वाला रास्ता जाम है और इसी समस्या पर दिल्ली हाईकोर्ट में जब मामले की सुनवाई हुई तो अदालत ने प्रशासन को कानून के मुताबिक काम करने को कहा है। सात जनवरी को दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई, जिसमें अदालत ने केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस से कहा है कि वह बड़ी पिक्चर देखें और आम लोगों के हित में काम करें। हालांकि कोर्ट ने अपने आदेश में शाहीन बाग पर जारी धरने को खत्म करने की बात साफ तौर पर नहीं की है।
अदालत में जब इस मामले की सुनवाई हुई तो दिल्ली सरकार की ओर से पक्ष रखा गया कि वह इस मामले में पक्षकार नहीं है और दिल्ली की कानून व्यवस्था उनके हाथ में नहीं हैं। हालांकि हाईकोर्ट ने केंद्र-पुलिस को इसमें एक्शन लेने को कह दिया है। अदालत की ओर से न तो प्रदर्शन खत्म करने का आदेश दिया गया है और न ही सड़क को तुरंत खोलने का आदेश दिया गया है। इस समय शाहीन बाग में सड़क खाली कराने के लिए पुलिस पर किस कदर दबाव है, इसे इसी से समझा जा सकता है कि 13 जनवरी के दिन स्थानीय थाना प्रभारी प्रदर्शन स्थल पर जाकर लोगों से रास्ता खोल देने के लिए मिन्नत करते रहे।
उन्होंने कहा कि इधर आप चैबीस घंटे सड़क पर हो, उधर हम भी सड़क पर ही बैठे हुए हैं। कम से कम एक तरफ की सड़क खुल जाए तो बड़ी संख्या में लोगों को हो रही परेशानी दूर हो जाएगी। शाहीन बाग इलाके में सड़क पर चल रहे प्रदर्शन में शामिल होने के लिए पंजाब से भी लोग पहुंचे, साथ ही भारतीय किसान यूनियन ने भी शाहीन बाग में पहुंचकर प्रदर्शनकारियों का हौसला बढ़ाया। इसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। वहीं, एक प्रदर्शनकारी ने बताया कि इससे पहले करीब 40-50 पुलिसकर्मी धरनास्थल से बैरिकेडिंग हटाकर रोड खोलने भी पहुंचे थे। लेकिन लोगों की भीड़ देखकर उन्हें वापस जाना पड़ा।
इस विरोध-प्रदर्शन के दौरान कभी भाईचारे की मिसाल पेश की गई तो कभी लोहड़ी का त्यौहार धूमधाम से मनाया गया। विरोध-प्रदर्शन में प्रदर्शनकारी शाहरुख खान की चुप्पी पर चुटकी भी ले रहे हैं। लोग नागरिकता संशोधन कानून पर शाहरुख खान की चुप्पी को लेकर उन्हीं का गाना गा रहे हैं। कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर भी दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में नागरिकता कानून और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल हुए।
अय्यर ने केंद्र की मोदी सरकार पर हमला बोला और कहा ‘‘उन्होंने ‘सबका साथ और सबका विकास’ के वादे पर चुनाव लड़ा, मगर उन्होंने ‘सबका साथ और सबका विनाश’ किया।
नागरिकता संशोधन और एनआरसी के खिलाफ 15 दिसंबर से जारी प्रदर्शन में हिस्सा लेकर मणिशंकर अय्यर ने कहा कि उन्हें चुनाव में बहुमत मिला, क्योंकि उन्होंने कहा था कि हम ‘सबका साथ और सबका विकास’ करेंगे, मगर उन्होंने क्या किया? उन्होंने ‘सबका साथ और सबका विनाश’ किया। आप ही ने उनको प्रधानमंत्री बनाया है, आप ही उनको सिंहासन से उतार सकते हो।’ उन्होंने प्रदर्शन में मदद का प्रस्ताव भी दिया।’’
अय्यर ने कहा, “मैं व्यक्तिगत तौर पर जो भी कर सकता हूं, वह करने के लिए तैयार हूं। जो भी कुर्बानियां देनी हों, उसमें मैं भी शामिल होने को तैयार हूं। अब देखें किसका हाथ मजबूत है, हमारा या उस कातिल का?” इधर नई दिल्ली से भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने नागरिकता कानून के खिलाफ शाहीन बाग में चल रहे विरोध-प्रदर्शन को लेकर कड़े शब्दों का प्रयोग किया है। उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि शाहीन बाग के लोग खुद ही घर चले जाएं तो बेहतर है। जानकारी के मुताबिक मीनाक्षी दिल्ली स्थित भाजपा कार्यालय में एक प्रेस काॅन्फ्रेंस के जरिए वर्तमान हालात पर अपनी बात रखने पहुंची थीं। उन्होंने इस दौरान विपक्ष को आड़े हाथों लिया।
नोएडा से दिल्ली आने-जाने वाले इस रास्ते से रोजाना करीब ढाई लाख वाहन निकलते हैं, जिन्हें पिछले एक महीने से दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। अब अदालत ने जब कानून व्यवस्था लागू करने के लिए गेंद दिल्ली पुलिस-केंद्र सरकार के पाले में डाली है, तो प्रशासन के पास कुछ ही विकल्प बचते हैं। केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ शाहीन बाग पर 15 दिसंबर से प्रदर्शन हो रहा है। यहां पर हजारों की संख्या में महिलाएं, स्टूडेंट और अन्य प्रदर्शनकारी लगातार डटे हुए हैं। यहां बीते दिनों से कुछ नेता भी लगातार प्रदर्शनकारियों के पास जाकर वहां पर संबोधित कर रहे हैं।
फिलहाल नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध में शाहीन बाग की महिलाओं का सत्याग्रह जारी है। सर्द रात की परवाह किए बिना सैकड़ों महिलाएं सड़क पर अपने छोटे-छोटे मासूम बच्चों के साथ धरने पर बैठी हैं। धरना-प्रदर्शन में मौजूद महिलाएं परिवार, घरेलू कामकाज एवं अन्य जिम्मेदारियों के बीच सामंजस्य बैठाते हुए लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। धरने-प्रदर्शन को अपने अधिकारों की लड़ाई बताकर वे अपनी मांगों को लेकर भी काफी सख्त दिख रही हैं।
महिलाओं का कहना है गांधी जी के रास्ते पर चलते हुए उनका सत्याग्रह जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि जब तक सरकार उनकी बात नहीं सुनेगी तब तक प्रदर्शन जारी रहेगा। दिल्ली ही नहीं देश के दूसरे राज्यों से भी आकर महिलाएं प्रदर्शन में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। पहले दिन से प्रदर्शन का नेतृत्व कर रही शाहीन कौसर ने बताया कि रोज धरने-प्रदर्शन की शुरुआत संविधान की प्रस्तावना से की जाती है। अंग्रेजी और हिंदी में सभी लोग एक साथ संविधान की प्रस्तावना पढ़ने के बाद उसकी रक्षा करने की शपथ लेते हैं।
22 सितंबर 2019 को दिल्ली के रामलीला मैदान में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जारी विरोध-प्रदर्शनों पर प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार चुप्पी तोड़ते हुए कहा था कि इसको लेकर विपक्ष अफवाहें फैला रहा है और यह कानून केवल किसी को नागरिकता देने के लिए है न कि नागरिकता छीनने के लिए।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ‘‘मैंने यह कानून कोई रातों-रात नहीं बना दिया है, यह कानून नागरिकता छीनने के लिए नहीं है, बल्कि देने के लिए है। सीएए उन अल्पसंख्यकों के लिए है जिन पर पाकिस्तान में अत्याचार हुआ है। क्या हमें उन्हें नागरिकता नहीं देनी चाहिए? क्या हम इन्हें मरने के लिए पाकिस्तान भेज दें?” लेकिन सवाल यह उठता है कि देश के प्रधानमंत्री के बयान के बावजूद वर्तमान सरकार मुस्लिम समुदाय के लोगों में इस कानून को लेकर विश्वास क्यों नहीं जीत पा रही है?
साथ में: नीतू टिटाण, राहुल कुमार